Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

जब देर से आने के लिए पड़ी थी संजीव कुमार को डांट, एक टेक में मुश्किल सीन पूरा कर बन गए थे नायक

हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता संजीव कुमार ने खुद को किसी दायरे में बंधने नहीं दिया। थिएटर से अभिनय सफर की शुरुआत करने के बाद उन्होंने कई यादगार फिल्में कीं। संजीव कुमार की पुण्यतिथि (छह नवंबर) पर उनके जीवन के टर्निंग प्वाइंट को याद करता आलेख

By Aarti TiwariEdited By: Updated: Sat, 05 Nov 2022 06:59 PM (IST)
Hero Image
बेमिसाल अभिनय के दम पर दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते थे संजीव कुमार ने

 स्मिता श्रीवास्तव।

रोमांस हो या डांस, कामेडी हो अथवा संजीदा, संजीव कुमार हर किरदार सहजता से निभा ले जाते थे। किरदारों के उनके चयन को देखते हुए प्रख्यात चरित्र अभिनेता सत्येन कप्पू ने कहा था कि उसके जैसा रिस्क कौन लेता है! रिस्क लेने की इसी आदत ने संजीव कुमार को बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित किया। हरिहर जेठालाल जरीवाला उर्फ संजीव कुमार की खासियत यह थी कि उन्होंने किरदारों को कभी निभाया नहीं, बल्कि खुद किरदार बन गए। बेमिसाल अभिनय के दम पर उन्होंने दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते। हालांकि करियर के शुरुआती दौर में वह एक अदद हिट फिल्म की तलाश में थे। उन्हें पहली बड़ी सफलता मिली फिल्म ‘खिलौना’ से। इसमें काम करने के पीछे भी दिलचस्प कहानी रही।

गुरुदत्त के निधन से मिली फिल्म

सिनेमा की भाषा में कहा जाता है कि हर किरदार पर लिखा होता है निभाने वाले का नाम। ‘खिलौना’ से पहले फिल्म ‘संघर्ष’ में संजीव कुमार अपनी प्रतिभा साबित कर चुके थे। वर्ष 1970 में रिलीज एल. वी. प्रसाद की ‘खिलौना’ गुलशन नंदा के उपन्यास ‘पत्थर के होंठ’ पर आधारित थी। इसे गुरुदत्त को ध्यान में रखकर लिखा गया था। तब एल. वी. प्रसाद ने सुना कि गुरुदत्त फिल्मकार के. आसिफ की फिल्म में व्यस्त हैं। सो, उन्होंने कळ्छ समय के लिए फिल्म स्थगित करने की सोची। दुर्भाग्य से गुरुदत्त का निधन हो गया। अब एल. वी. प्रसाद अधर में रह गए। काफी मशक्कत के बाद संजीव कुमार को ‘खिलौना’ के उस किरदार के लिए चुना गया।

नायक से अधिक कैमरामैन की फीस

गुलशन नंदा ने ‘खिलौना’ की पटकथा प्रख्यात लेखक आगा जानी कश्मीरी के परामर्श से लिखी थी। फिल्म का नायक एक दर्दनाक घटना की वजह से मानसिक संतुलन खो बैठता है। इसलिए सह-निर्देशक प्रकाश कपूर को कुछ मामलों के गहन अध्ययन के लिए मनोरोग अस्पताल भेजा गया। दिलचस्प बात है कि स्क्रिप्ट तैयार होने में करीब 17 महीने का समय लगा जबकि शूटिंग में लगे केवल सात महीने। हनीफ झावेरी और सुमंत बत्रा द्वारा लिखित संजीव कुमार की बायोग्राफी ‘एन एक्टर्स एक्टर: एन आथोराइज्ड बायोग्राफी आफ संजीव कुमार’ के मुताबिक, संजीव कुमार ने अपने अनुभवों को भी किरदार में डाला। वह सूरत में ऐसे शख्स से मिले, जिसे आग से डर लगता था। इस फिल्म के लिए कई कलाकार कोशिश कर रहे थे, लेकिन एल. वी. प्रसाद ने जितेंद्र को सहयोगी भूमिका में चुना क्योंकि वह और संजीव कुमार फिल्म ‘जीने की राह’ में साथ काम कर चुके थे। शत्रुघ्न सिन्हा को बिहारी का नकारात्मक किरदार मिला। लीना चंद्रावरकर इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाली थीं, लेकिन फीस की वजह से बात नहीं बनी और रोल मिला मुमताज को। फिल्म में सबसे ज्यादा धनराशि (दो लाख रुपए) किसी कलाकार के बजाय कैमरामैन द्वारका दिवेचा को दी गई। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संजीव कुमार के लिए मोहम्मद रफी की आवाज को चुना। फिल्म का गाना ‘खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो’ आज भी यादगार है। आधी फिल्म बनने के बाद निर्देशक को लगा कि शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म के लिए सही चयन नहीं हैं। तब संजीव और मुमताज ने उनका बचाव किया। उनकी यह अटूट निष्ठा बाद में आजीवन दोस्ती में तब्दील हुई।

चमक उठा किस्मत का सितारा

फिल्म प्रदर्शित होने के बाद संजीव कुमार स्टार के तौर पर स्थापित हुए। इस फिल्म की सफलता अकल्पनीय थी।‘खिलौना’ को फिल्मफेयर अवार्ड में छह नामांकन मिले। सर्वश्रेष्ठ फिल्म और मुमताज को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इस फिल्म की सफलता ने संजीव की बड़े ब्रेक की आकांक्षा को पूरा किया। उन्हें कई बेहतरीन भूमिकाओं के आफर मिलने लगे। यही नहीं उन्होंने कार और मुंबई के पाली हिल में अपना घर खरीदा।

अलग और अव्वल

  • संजीव कुमार ने वर्ष 1981 में फिल्म ‘चेहरे पे चेहरा’ से हिंदी सिनेमा का प्रास्थेटिक मेकअप से पहला परिचय कराया था।
  • वह पहले अभिनेता थे जिन्होंने एक ही फिल्म (‘नया दिन नई रात’) में नौ अलग-अलग किरदारों को निभाया था।