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Sarfira में राधिका मदान को नहीं पता थी अक्षय कुमार से जुड़ी ये बात, शूटिंग से पहले मेकर्स ने उड़ा दिए थे होश

टीवी से एक्टिंग करियर शुरू करने वाली राधिका मदान अब फिल्म एक्ट्रेस बन चुकी हैं। हाल ही में उनकी फिल्म सरफिरा रिलीज हुई है। इस फिल्म में राधिका मदान के अपोजिट लीड रोल में अक्षय कुमार हैं। जिनसे जुड़ा एक्ट्रेस ने एक दिलचस्प किस्सा शेयर किया है। राधिका मदान ने भी बताया की सरफिरा से जुड़ी अक्षय कुमार की इस बात ने उनके होश उड़ा दिए थे।

By Vaishali Chandra Edited By: Vaishali Chandra Updated: Fri, 19 Jul 2024 10:17 AM (IST)
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अपने सपनों को लेकर सरफिरी हैं राधिका मदान, (X Image)

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म सरफिरा में अभिनेत्री राधिका मदान के अभिनय को सराहना मिली। राधिका कहती हैं कि उन्हें तब तक टिकट खिड़की के आंकड़े प्रभावित नहीं करते हैं, जब तक उन्हें कास्ट करने वाले निर्माताओं को इससे फर्क नहीं पड़ता है। उनसे सरफिरा फिल्म, अक्षय कुमार के साथ काम करने के अनुभवों समेत कई मुद्दों पर हुई बातचीत के अंश.....

आपको लगातार सशक्त किरदार ही मिल रहे हैं। क्या यह किरदार आपके व्यक्तित्व का हिस्सा है?

जी, बिल्कुल। इन किरदारों के बीच में मैं कच्चे लिंबू, अंग्रेजी मीडियम, सजनी शिंदे का वायरल वीडियो जैसे अलग रोल भी कर लेती हूं। जहां तक सशक्त किरदार की बात है, तो मैं सरफिरी तो हूं ही, इसलिए ऐसी भूमिकाओं की ओर ज्यादा आकर्षित होती हूं। मेरा सफर भी पागलपन से भरा रहा है। जब मैं फिल्मों में आने की बात करती थी, तो लोग मुझे पागल ही कहते थे।

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आपने कहा कि आप सरफिरी है, कैसे?

मेरा पूरा अभिनय का सफर ही देख लीजिए मैं दिल्ली की हूं। कभी एक्टिंग सीखी नहीं है। ऐसे में उठकर यह कह देना कि मुंबई जा रही हूं। फिर यहां आकर कहना कि बड़े-बड़े निर्देशकों के साथ काम करूंगी, इन बातों पर लोग मुझपर हंसते ही थे। मैं अक्सर अपने लिए सुनती हूं कि यह सरफिरी है। मैं अपनी कला और सपनों को लेकर सरफिरी हूं।

सरफिरा फिल्म में आपका किरदार पुरुष और महिला के बीच समानता की बात करता है। फिल्म इंडस्ट्री में कभी असमानताओं से सामना हुआ?

फिल्मों में फीस को लेकर असमानता रही है। जब फिल्म में मैं भी नई थी और हीरो भी नया था तब भी हीरो को ज्यादा पैसे मिलते थे। बाकी मैं उस वक्त पर आई हूं, जब निर्देशक अभिनेत्रियों के लिए अच्छे किरदार लिख रहे थे। मुझे महसूस नहीं हुआ कि महिला को केवल सजावट का सामान बनाकर फिल्म में डाल दिया गया हो।

फिल्म में आपके पात्र को लेकर कैसे अनुभव रहे?

रानी (फिल्म सिरफिरा का पात्र) की भूमिका जब मेरे पास आई थी, तब मैंने सना फिल्म खत्म की थी। वह डार्क रोल था। मैं खुद उसी डार्क जोन में थी। रानी एक ताजी हवा की तरह मेरी जिंदगी में आई। उसने मुझे याद दिलाया कि मैं कौन हूं, जो मैं इतनी भूमिकाओं को करने में भूल गई थी। मेरे भीतर जो आग और जुनून है, वह इसने याद दिलाया। हर किरदार से आप कुछ लेते हैं, कुछ अपना देते हैं।

अक्षय कुमार से पहली पहली मुलाकात कैसी थी ?

मुझे पहले पता नहीं था कि अक्षय सर फिल्म का हिस्सा हैं। पहली मुलाकात एक प्रैंक (मजाक) के साथ हुई थी। मुझे निर्माता के घर बुलाया गया था, यह कहकर कि कोई नया एक्टर होगा, जिसे एक्टिंग नहीं आती है। मुझे कहा गया कि तुम सीखा देना। मैं सोच रही थी कि इतना बड़ा प्रोजेक्ट है, मैं कहां से एक्टिंग सिखाऊंगी, मैं तो खुद ही सीख रही हूं। जब वहां पहुंची, तो अक्षय सर मेरे सामने आ गए और खूब हंसे। मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। मैं अक्षय सर की कॉमेडी फिल्मों की फैन रही हूं। उनकी सारी कामेडी फिल्में मैंने देखी है। आवारा पागल दीवाने, हेराफेरी... सब । उनकी फिल्मों के डायलॉग रटे हुए हैं। कभी-कभी सीन के बीच में मैं उनके डायलॉग बोल देती थी और वो हंसने लग जाते थे। वो कहते थे कि अच्छा याद है। मैं कहती थी हां।

क्या टिकट खिड़की के परिणाम आपको प्रभावित करते हैं?

जब तक कास्ट करने वाले निर्माता टिकट खिड़की के आंकड़ों से प्रभावित नहीं होंगे, तब तक मैं इसे अपने दिल पर नहीं लूंगी। मैं काम को अपना शत प्रतिशत देती हूं। अगर मेरे काम को सराहना मिल रही है, तो बस यही मेरे हाथ में है। जिस दिन निर्माताओं को आंकड़े प्रभावित करने लगेंगे, उस दिन यह मुझे भी प्रभावित करने लगेगा।

क्या कलाकारों पर फिल्मों को चुनते वक्त उसके जरिये सामाजिक संदेश देने की जिम्मेदारी भी होती है?

जिम्मेदारी से ज्यादा, जब भी कोई फिल्म बनती है, चाहे वो सपनों के ऊपर हो या पात्र के सफर पर हो, हर फिल्म का कोई न कोई मुद्दा होता है। वरना फिल्म नहीं बनेगी। फिल्म हमेशा कुछ कहना चाहती है। अगर मैं उससे रिलेट करती हूं तो जरूर करती हूं। ऐसा जरूरी नहीं है कि हमेशा कुछ सकारात्मक या हल्की-फुल्की कॉमेडी में ही फिल्म दिखाई जाए। मैं चाहती हूं कि लोग किसी के सफर, किरदार से जुड़ पाएं। मैं फिल्म को साइन करने से पहले किसी किरदार की जर्नी से ज्यादा प्रभावित होती हूं, बजाय इसके कि इसमें सामाजिक संदेश है या नहीं। फिल्म के मुद्दे में सच्चाई होनी चाहिए।

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