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'तीन गणपति देख लेता है वह...', लोगों की बात सुनकर अंधविश्वास की राह पर चल पड़े थे Sector 36 एक्टर दीपक डोबरियाल

दीपक डोबरियाल फिल्म इंडस्ट्री के उन सितारों में शुमार हैं जो अपने अभिनय से दर्शकों को खड़े होकर तालियां बजाने पर मजबूर कर देते हैं। थिएटर से लेकर फिल्मों में एक्टर बनने का ये सफर उनके लिए कभी भी आसान नहीं रहा है। हाल ही में निठारी हत्याकांड पर बनी फिल्म सेक्टर-36 के पुलिस ऑफिसर की भूमिका अदा करने वाले एक्टर ने बताया कि वह कितने अंधविश्वासी हो गए थे।

By Smita Srivastava Edited By: Tanya Arora Updated: Mon, 23 Sep 2024 12:24 PM (IST)
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सेक्टर 36 एक्टर दीपक डोबरियाल ने बताई संघर्ष के दिनों की बातें/ फोटो- X Account
एंटरटेनमेंट न्यूज,मुंबई डेस्क। फिल्म ओंकारा में निभाए रज्जू तिवारी और तनु वेड्स मनु में पप्पी बनें अभिनेता दीपक डोबरियाल लगातार वैरायटी किरदार निभाते आए हैं। नेटफ्लिक्स पर हाल में रिलीज हुई फिल्म सेक्टर 36 में पुलिसकर्मी के पात्र में उन्हें काफी सराहना मिली। आगामी दिनों में वह फिल्म द फैबल में नजर आएंगे। पेश है रंगमंच की दुनिया से आए दीपक की अभिनय यात्रा के बारे में उनसे खास बातचीत

थिएटर में काम करने से पात्रों में रच-बस जाना आसान होता है...

थिएटर की इसमें भूमिका रही है, लेकिन पात्रों को लेकर समझ मुंबई आकर बढ़ी है क्योंकि सिनेमा कर रहा हूं। थिएटर और सिनेमा की एक्टिंग प्रक्रिया बहुत अलग है। सिनेमा में काम करने के लिए करीब सात साल के लिए थिएटर की चीजों को भूलना पड़ा। । थिएटर में आप समीक्षकों से ढेरों तारीफें बटोर कर आते हैं, लेकिन यहां आने पर पता चलता है कि यह दुनिया ही कुछ और है, फिर यहां का तरीका सीखा। मुंबई से बड़ा कोई टीचर नहीं है।

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मुंबई ने क्या सिखाया?

ऐसा लगता है कि यह शहर बोलता है कि लगे रहो। तुम अपने आप हटोगे इस क्षेत्र से, मैं तुम्हें अपना चुका हूं। ऐसी फीलिंग आती है। शुरुआत में जब काम नहीं मिलता था मैं अंधविश्वासी हो गया था। किसी ने कहा कि जो तीन गणपति देख लेता है फिर मुंबई उसे अपना लेता है तो मैंने वो भी किया। आप देखें तो देश का सबसे बेहतरीन टैलेंट चाहे कलाकार हो, गायक, लेखक या निर्देशक सब मुंबई आते हैं।

sector 36

आपकी प्रतिभा को देर से पहचान मिली ?

जब शुरुआत में काम नहीं मिलता था तो इसका मतलब था कि मैं उसका हकदार नहीं था। जब मिला तो उसका हकदार हूं। अगर आपको अच्छा काम मिल गया और कर नहीं पाए तो काफी निराशा होती है। मैं यह मानता हूं कि मेरा हर निर्देशक के साथ भांगड़ा हुआ है। यही मेरी उपलब्धि है।

मैं इसे बरकरार रखना चाहता हूं। कई बार जब चीजें नहीं मिलतीं तो कलाकार उसे नकारात्मक तौर पर ले लेता है। फिर नाराज हो जाता है। जबकि मैं नए कलाकारों से यही कहता हूं नाराजगी मत रखना, शिकायत मत करना, बहाने मत बनाना। अपने काम को और बेहतर बनाओ। बाकी मुझे सही समय पर सर्वश्रेष्ठ चीजें मिलीं।

सेक्टर 36 में रामलीला का दृश्य है। कभी असल में रामलीला की है?

दिल्ली में हमारी कालोनी में मेरे पिता प्राम्प्टिंग (पीछे से लाइनें बोलना) किया करते थे। वहां देखा था गेटअप वगैरह। पर मैं फिल्म करने से पहले दिमाग में बसी सभी पुरानी यादों या छवि को हटाता हूं। मुझे मेरा अपना पात्र ढूंढना होता है। यहां भी वही किया। उत्तर प्रदेश में पुलिस लाइन में रामलीला होती है। उसकी झलक फिल्म में देखने को मिली होगी।

deepak dobriyal

सेक्टर 36 में एक दृश्य में आपको गुस्सा आता है लेकिन पी जाते हैं। असल जिंदगी में कब ऐसा होता है?

असल जिंदगी में गुस्सा बहुत सारी चीजों पर आता है पर मैं उसे पीता नहीं हूं उसे कुछ अलग रूप देता हूं। पीने का अर्थ यह है कि आप उसे झेल रहे हैं। मैं उसे हंसकर ले लेता हूं कि कुछ अलग देखने का तरीका मिल रहा है। मतलब जैसे कई बार कोई बंदा बहुत चिडचिड़ा है,आपको साथ नहीं बैठना है लेकिन साथ है।

बहुत आसान है नजरअंदाज कर देना, लेकिन अभी मैं उसमें शामिल हो जाता हूं कि अच्छा इन्हें परखा जाए कि इस तरह के क्यों हैं? कहीं-कहीं गुस्सा पी जाने की बात होती है। जब फैमिली फंक्शन हो तो छोटी-छोटी चीजों पर होता है कि यह क्या पहन लिया? रंग मैच नहीं हो रहा, तब थोड़ी चिड़चिड़ाहट होती है, बस इतना ही गुस्सा आता है। इतना ही पीना पड़ता है।

कोई किरदार रहा, जिससे जूझना मुश्किल रहा?

वो पात्र रामू जी (फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा) की के साथ किया था। किरदार फिल्म नाट ए लवस्टोरी का था। वो फिल्म असल हत्याकांड से प्रेरित फिल्म थी। दिक्कत यह थी कि हम उसी बिल्डिंग में शूट कर रहे थे, जहां पर यह घटना हुई थी। हम आठवीं मंजिल पर शूट कर रहे थे, जबकि पहली मंजिल पर वह घटना हुई थी। वैसा ही फ्लैट था। तो वह मानसिक तौर पर थोड़ा परेशान करने वाला था। कई बार होता था कि मन नहीं है, फिर भी काम किया।

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