सत्याजीत रे के साथ काम करने को बेताब थी ये एक्ट्रेस, बोलीं- फिल्म में झाड़ू लेकर भी खड़ा रहना पड़ा तो कुबूल
सत्यजीत रे आज हमारे बीच होते तो 2 मई 2021 को उम्र के सौ बरस पूरे कर लेते। भारतीय सिनेमा में दादा साहेब फाल्के के बाद सबसे बड़ा नाम रे का है। अगर सत्यजीत रे ना होते तो विश्व पटल पर भारतीय सिनेमा का वो गौरव ना होता जो है।
By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Sun, 02 May 2021 07:53 AM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन।सत्यजीत रे आज हमारे बीच होते तो 2 मई 2021 को उम्र के सौ बरस पूरे कर लेते। भारतीय सिनेमा में दादा साहेब फाल्के के बाद सबसे बड़ा नाम सत्यजीत रे का है। अगर सत्यजीत रे ना होते तो शायद विश्व पटल पर भारतीय सिनेमा का वो गौरव ना होता जो आज है। सत्यजीत रे ने ऑस्कर भी जीता और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी अपने नाम किया। इसके अलावा उन्होंने 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों को और अपने नाम किया।
पहली हिन्दी फिल्म थी 'शतरंज के खिलाड़ी'सत्यजीत रे ने हिन्दी में 'शतरंज के खिलाड़ी' जैसी फिल्म बनाई। जो हिन्दी सिनेमा की यादगार फिल्म है। ये कहानी प्रेमचंद ने लिखी है एक ऐतिहासिक काल में जाकर बसाए अपने कल्पना लोक में। फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ की कहानी प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर आधारित है, ये हू ब हू वही कहानी नहीं है। इसमें सत्यजीत रे ने अपनी तरफ से भी सिनेमाई स्वतंत्रता ली है। कुछ किरदार अलग से जोड़े हैं। कहानी अंग्रेजों के खिलाफ देश में हुए पहले गदर यानी 1857 की लड़ाई से ठीक साल भर पहले की कहानी है। अवध पर तब नवाब वाजिद अली शाह का राज है। उसके दो अमीर (मंत्री) दुनिया से बेपरवाह हैं। दोनों शतरंज के खिलाड़ी हैं।
ऐसे थे शतरंज के खिलाड़ी
शतरंज उनके लिए नशा है। उनको न अपनी फिक्र है, न वतन की फिक्र है और न ही इस बात की फिक्र है कि उनके जनानखाने में क्या हो रहा है? अंग्रेज रेजीडेंट सीने तक चढ़ आया है। वह नवाब के कला प्रेम को उसकी विलासिता बताकर उसका राजपाट कंपनी में शामिल करने को बेचैन है। लेकिन, वक्त उधर नवाब के दोनों अमीरों की बाजी पर ठहरा हुआ है...!
जब सत्यजीत रे के साथ काम करने को बेताब थीं शबाना आजमी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ अपने समय की बेहतरीन फिल्म है। संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ने और अमजद खान के सड़क दुर्घटना में घायल होने के चलते फिल्म कई बार रुकी रही लेकिन मजाल जो किसी कलाकार ने उफ तक की हो। ऐसा था सत्यजीत रे के साथ काम करने का जादू। शबाना आजमी से जब फिल्म के निर्माता सुरेश जिंदल ने कहा कि आपका रोल बहुत बड़ा नहीं है फिल्म में। तो उनका जबाव था, ‘मुझे सत्यजीत रे की फिल्म में झाड़ू लेकर भी खड़ा रहना पड़े तो कुबूल है।’
हर फिल्म से पहले महीनों करते थे रिसर्चसत्यजीत रे के साथ काम करने के अनुभवों पर फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के निर्माता सुरेश जिंदल ने एक किताब लिखी है, ‘माई एडवेंचर्स विद सत्यजीत रे – द मेकिंग ऑफ शतरंज के खिलाड़ी’। इस किताब में सुरेश ने विस्तार से इस पूरी फिल्म के बनने का सिलसिला बताया है। सत्यजीत रे की ये पहली हिंदी फिल्म थी, लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई अलग तरकीब नहीं अपनाई। उनकी तरकीब वही रही। फिल्म शुरू होने से पहले महीनों की रिसर्च। हर तरह की जो भी सूचना सन 1856 की मिल सकती थी, सब सत्यजीत रे जुटा रहे थे। लखनऊ में अमृत लाल नागर के घर पर उनकी और सत्यजीत रे की लंबी मुलाकात की भी सुरेश जिंदल ने अपनी किताब में विस्तार से चर्चा की है। इस रिसर्च का ही नतीजा रही खुद बिरजू महाराज की आवाज में फिल्म की ये पेशकश, ‘कान्हा मैं तोसे हारी....’
अमजद खान के नाम पर नहीं बनी सहमति‘शोले’ रिलीज होने के कोई साल भर बाद यानी कि सन 76 की गर्मियों तक फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ की स्क्रिप्ट पूरी हो चुकी थी। कास्टिंग पर काम शुरू हुआ तो फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के निर्माता और निर्देशक में मतांतर हुआ तो वह थे अमजद खान। कहां ‘शोले’ के गब्बर सिंह का गेटअप और कहां लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह। लेकिन, सत्यजीत रे का ये डर अमजद खान ने अपनी पहले दिन की शूटिंग में ही निकाल दिया। नवाबों की वेशभूषा पहनकर अमजद ठीक वैसे ही लगे जैसे नवाब वाजिद अली शाह फिल्म के निर्देशक सत्यजीत रे ने एक तस्वीर में देखे थे।
फिल्म में अमिताभ बच्चन की आवाज सूत्रधार के तौर पर सुनाई देती है। अगले साल के फिल्मफेयर पुरस्करों में सत्यजीत रे को इस फिल्म के लिए बेस्ट डायरेक्टर का पुरस्कार मिला। दो और पुरस्कार फिल्म ने हासिल किए, बेस्ट फिल्म का क्रिटिक्स च्वाइस अवार्ड और बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार सईद जाफरी के लिए।