Shailendra Birth Anniversary: मजबूरी में गीतकार बने शैलेंद्र, ठुकराया था राज कपूर का ऑफर, दर्दनाक रहा आखिरी पल
Shailendra 100th Birth Anniversary गुजरे जमाने के सबसे बेहतरीन गीतकारों में एक नाम शैलेंद्र का भी है। उनका इंडस्ट्री में आने का कोई प्लान नहीं था। वह एक मंझे हुए कवि थे लेकिन फिर राज कपूर की उन पर नजर पड़ी। कविता में महारथ हासिल करने वाले शैलेंद्र का इंडस्ट्री में कदम रखना महज एक इत्तेफाक था और आज दुनिया उनके गानों की दीवानी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। Shailendra 100th Birth Anniversary: 'अवारा हूं', 'मेरा जूता है जापानी', 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' और 'प्यार हुआ इकरार हुआ', ये वो गानें हैं, जो आज भी लोगों की जुबान पर हैं। इन सुपरहिट गाने के बोल लिखे थे हिंदी सिनेमा के दिग्गज गीतकार शैलेंद्र (Shailendra) ने। वही शैलेंद्र, जिनका नाम 50 से 60 दशक के लगभग हर सुपरहिट फिल्मों के साथ जुड़ा।
शैलेंद्र के गाने के बोल इतने सरल थे कि दर्शकों के दिल को छू लेते थे। चाहे प्यार हो, रोमांस हो या फिर दुख, उनके हर गाने के बोल सागर जितनी गहरी और संजीदा हुआ करती थी। 30 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे शैलेंद्र का पूरा नाम शंकरदास केसरीलाल था। आज शैलेंद्र की 100वीं बर्थडे एनिवर्सरी है। इस खास मौके पर आइए आपको शैलेंद्र से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।
गरीबी में बीता बचपन
शैलेंद्र का बचपन गरीबी में बीता था। बाद में काम के चलते उन्हें अपने परिवार के साथ रावलपिंडी से मथुरा शिफ्ट होना पड़ा था। पढ़ाई में वह बहुत गुणी थे और कविताएं उनके रग-रग में बसती थीं। 1947 में उन्हें सेंट्रल रेलवे में वेल्डिंग अप्रेंटिस की नौकरी मिल गई और वह मुंबई शिफ्ट हो गए। काम के साथ-साथ शैलेंद्र ने कविता लिखना बंद नहीं किया। माटुंगा रेलवे वर्कशॉप में काम करने के दौरान वह मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भाग भी लिया करते थे।
इसी दौरान इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) मुंबई में एक्टिव हो गया था और किस्मत से शैलेंद्र भी इसका हिस्सा बन गए। उन्होंने कविताएं लिखने के साथ-साथ इप्टा के लिए कुछ गाने भी रिकॉर्ड किए थे। शुरुआती समय में शैलेंद्र को उस तरह की लोकप्रियता हासिल नहीं हुई थी, जिसके वह हकदार थे।
राज कपूर का ऑफर ठुकरा बैठे थे शैलेंद्र
साल 1947 में जब भारत-पाकिस्तान में दंगे हो रहे थे, उस वक्त शैलेंद्र ने एक कविता लिखी थी- जलता है पंजाब। जब उन्होंने ये कविता इप्टा में सुनाई तो राज कपूर भी वहां मौजूद थे। उन्हें शैलेंद्र की ये कविता बहुत पसंद आई। उस वक्त बतौर डायरेक्टर राज कपूर 'आग' फिल्म बना रहे थे और उन्होंने अपनी मूवी में शैलेंद्र की कविता लेने का फैसला किया। उन्होंने शैलेंद्र से इसके राइट्स मांगे, मगर उन्होंने मना कर दिया।
कहा जाता है कि जब उनकी पत्नी प्रेग्नेंट थीं, तब आर्थिक तंगी की वजह से शैलेंद्र को राज कपूर का ऑफर याद आया। जब वह राज कपूर के पास गए, तो उस वक्त वह 'बरसात' फिल्म बना रहे थे। उन्होंने इसके लिए उन्हें दो गाने लिखने के लिए कहा और महज 500 रुपये में शैलेंद्र ने 'बरसात में हमसे मिले तुम' और 'तिरछी नजर' जैसे गाने लिखे। फिल्म के साथ-साथ ये गाना भी जबरदस्त हिट हुआ था और फिर शैलेंद्र और राज कपूर की दोस्ती पक्की हो गई।
शानदार रहे शैलेंद्र के 17 साल
शैलेंद्र ने 17 साल के करियर में तकरीबन 900 गाने लिखे। उन्होंने सबसे ज्यादा गाने राज कपूर के लिए लिखे थे। वह कई बड़े और नए संगीतकारों के साथ भी काम कर चुके थे। शैलेंद्र ने अपने करियर में हर तरह के गाने लिखे। उनके गानों में रोमांस भी दिखा, दर्द भी और समाज के प्रति बगावत भी।
'क्या से क्या हो गया', 'दोस्त दोस्त ना रहा', 'जिंदगी ख्वाब है', 'सजन रे झूठ मत बोलो', 'जाओ रे जोगी', 'मुड़-मुड़ के ना देख', 'सुहाना सफर' और 'आज फिर जीने की' जैसे चर्चित गानों के बोल शैलेंद्र के ही थे।
तीसरी कसम के बाद टूट गए थे शैलेंद्र
कवि और गीतकार के रूप में प्रसिद्ध हुए शैलेंद्र ने बतौर फिल्म मेकर साल 1963 में 'तीसरी कसम' से शुरुआत करने का फैसला किया। इस फिल्म में राज कपूर और वाहिदा रहमान अहम भूमिका में थे। फिल्म इंडस्ट्री की क्लासिक कल्ट मानी गई।
मूवी को बेस्ट फिल्म का नेशनल अवॉर्ड भी मिला, लेकिन कमाई के मामले में फिल्म फ्लॉप रही। इस फिल्म की फ्लॉप ने शैलेंद्र को इस कदर फाइनेंशली तोड़ा कि वह शराब में डूब गए। आखिरकार 14 दिसंबर 1966 को महज 43 साल की उम्र में लिवर सिरोसिस होने की वजह से शैलेंद्र इस दुनिया को छोड़ गए।