यश चोपड़ा से एक मुलाकात ने बदल दिया था शशि कपूर का 'वक्त', आज भी पसंद की जाती हैं एक्टर की ये फिल्में
18 मार्च 1938 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मे उस बालक को दादी ने बलबीर राज नाम दिया था। हालांकि यह नाम उसकी मां रामसरनी कपूर को ज्यादा पसंद नहीं था। उन्होंने चांद को घंटों तकने वाले अपने बेटे को शशि कहकर बुलाना आरंभ कर दिया। वे चमके भी चांद की तरह। शशि कपूर की जन्मतिथि पर उनके अभिनय सफर की यादों को ताजा करतीं स्मिता श्रीवास्तव की कलम से।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्मी परिवार से होने के बावजूद अभिनेता शशि कपूर की भव्य लॉन्चिंग नहीं हुई थी। पृथ्वीराज कपूर के तीसरे और सबसे छोटे बेटे शशि का पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। उन्होंने फिल्म ‘आग’ से बतौर बाल कलाकार अभिनय करना शुरू किया था। फिल्म ‘आवारा’ में भी वे बतौर बाल कलाकार उपस्थित थे। फिल्म के निर्देशक उनके बड़े भाई राज कपूर थे। इसमें उन्होंने राज कपूर के बचपन की भूमिका अभिनीत की थी। जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तब शशि 13 साल के थे जबकि राज कपूर 27 साल के। फिल्म में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने जज की भूमिका निभाई थी।
शशि के हिस्से में कई छोटी-छोटी भूमिकाएं आई थीं, लेकिन ‘आवारा’ में बाल कलाकार के तौर पर उनकी चमकती आंखें, मोहक मुस्कान और अभिनय ने लोगों का ध्यान खींचा। हालांकि जब शशि ने फिल्म इंडस्ट्री में काम करना तय किया, तब उसकी वजह परिवार की मदद करना था। ‘शशि कपूर: द हाउस होल्डर, द स्टार’ किताब के मुताबिक, शशि कपूर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वह फिल्मों में बतौर कलाकार पैसों के लिए आए थे। उन्होंने कहा था कि मुझे थिएटर पसंद है, लेकिन उसमें पैसा नहीं है।
‘चार दीवारी’ से मिला ब्रेक
शशि का असली संघर्ष तब आरंभ हुआ, जब उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया। वह भले ही पृथ्वीराज कपूर के बेटे थे और उनके दोनों बड़े भाई राज कपूर और शम्मी कपूर स्टार थे, लेकिन शशि की राहें आसान नहीं थीं। फिल्मों में करियर बनाने के इच्छुक लोगों की तरह वह भी निर्माता और निर्देशकों के चक्कर लगाते थे। घंटों स्टूडियो में अपना समय बिताते थे। उन्हें अपनी पोर्टफोलियो की फोटो देते थे। काफी शॉप में जाते थे ताकि निर्माताओं की निगाह में आ सकें। आखिर में उन्हें पहला ब्रेक फिल्म ‘चार दीवारी’ में मिला।बॉक्स ऑफिस फेलियर रहीं ये फिल्में
फिल्म में उनकी नायिका नंदा थीं। नंदा उस समय की लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। वे शशि से उम्र में एक साल छोटी थीं और करीब 25 फिल्में भी कर चुकी थीं। उसमें ‘धूल का फूल’ और ‘कानून’ जैसी हिट फिल्में भी शामिल थीं। राज कपूर के कहने पर उन्होंने नौसिखिया शशि के साथ काम करने का निर्णय लिया। दरअसल, राज ने नंदा से कहा था कि शशि उनका भाई नहीं बेटा है। उम्र में फासले के चलते शशि को राज अपने बेटे की तरह ही मानते थे। शशि भी उन्हें वैसा ही आदर देते थे। बहरहाल ‘चार दीवारी’ फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं दिखा सकी।
फिल्म का संगीत सलिल चौधरी का था। उसके गाने भी लोकप्रिय हुए पर फिल्म खास प्रभाव नहीं जमा सकी। इस फिल्म के बाद शशि को नंदा के साथ दो और फिल्में ‘मेहंदी लगी मेरे हाथ’ और ‘मुहब्बत इसको कहते हैं’ में अभिनय करने का मौका मिला। दोनों फिल्में अलग-अलग समय पर प्रदर्शित हुईं, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर विफल रहीं।
रेस्त्रां में हुई थी यश चोपड़ा और शशि कपूर की पहली मुलाकात
‘चार दीवारी’ में उन्हें भले ही पहला ब्रेक मिला, लेकिन ‘धर्मपुत्र’ उनकी बतौर पहली फिल्म प्रदर्शित हुई। इस फिल्म के मिलने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। फिल्ममेकर यश चोपड़ा ने शशि को बंबई (अब मुंबई) के एक रेस्त्रां में देखा था। उस रेस्त्रां में तब संघर्षरत कलाकार अक्सर जाते थे। उस दौरान यश ने शशि को देखकर अपनी टेबल पर बुलाया। दोनों के बीच बातचीत हुई। यश ने उनसे अपने बड़े भाई बी.आर. चोपड़ा से मिलने के लिए कहा। दरअसल, यश ने उन्हें एक कहानी सुनाई थी, जिसे उनके भाई प्रोड्यूस करने वाले थे। यह फिल्म थी ‘धर्मपुत्र’।
‘धूल का फूल’ की सफलता के बाद आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास पर आधारित यश की यह दूसरी फिल्म थी। यह देश विभाजन के बाद हिंदू-मुस्लिम मतभेद पर थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर विफल रही मगर बाद में इसे राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। असफलता के बावजूद इस फिल्म से यश, शशि और देवेन वर्मा की दोस्ती काफी मजबूत हुई। देवेन ने इस फिल्म में शशि के छोटे भाई की भूमिका अभिनीत की थी।