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Sholay: 5 दशक बाद भी नहीं बन पाई दूसरी 'शोले', सिनेमा के इतिहास में दर्ज 'गब्बर सिंह' का नाम

शोले (Sholay) इंडस्ट्री की वो कल्ट क्लासिक फिल्म हैं जिसकी जैसी अन्य कोई दूसरी मूवी 5 दशक के लंबे अंतराल के बाद अन्य कोई फिल्ममेकर नहीं बना पाया है। निर्देशक रमेश सिप्पी की शोले की कहानी को सलीम खान और जावेद अख्तर ने लिखा था। फिल्म में धर्मेंद्र अमिताभ बच्चन और अमजद खान जैसे कलाकार अहम किरदारों में मौजूद रहे। आइए मूवी के बारे में और भी कुछ जानते हैं।

By Anant Vijay Edited By: Ashish Rajendra Updated: Sun, 18 Aug 2024 06:00 AM (IST)
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शोले ने रिलीज के 50वें साल में रखा कदम (Photo Credit-Jagran)

 अनंत विजय, नोएडा डेस्क। फिल्म ‘शोले’ (Sholay) में जय-वीरू की जोड़ी ने जो धमाल बड़े पर्दे पर किया था, वास्तविक दुनिया में वही शोर इस फिल्म की लेखक जोड़ी सलीम खान (Salim Khan) और जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने मचा दिया था। बीते 15 अगस्त को ‘शोले’ ने रिलीज के 50वें साल में कदम रखा है। आगामी 20 अगस्त को इस जोड़ी पर डॉक्युमेंट्री आने को तैयार है। हमारे इस आलेख में शोले के बारे में विस्तार से जानते हैं।

शोले जो भड़क न सका

करीब 5 दशक पहले पढ़ा ये शीर्षक दिमाग पर इस कदर अंकित हो गया कि वर्षों बाद आज भी स्मृति में बना हुआ है। जब भी फिल्म ‘शोले’ देखते हैं या इससे जुड़ी कोई चर्चा होती है तो ये शीर्षक कौंध जाता है। स्कूल में था, फिल्मों में रुचि थी। उसी समय फिल्म ‘शोले’ पर एक समीक्षानुमा लेख देखा था। उसमें ये बताया गया था कि यह फिल्म सफल नहीं हो सकी। बाद में ‘शोले’ ने सफलता का इतिहास रच दिया। शोले के हर किरदार खास रहा, विशेषतौर पर सिनेमा के इतिहास में गब्बर सिंह का नाम अमर है।

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इस 15 अगस्त से ‘शोले’ के प्रदर्शन का स्वर्ण जयंती वर्ष प्रारंभ हुआ। एक बार फिर से इस शीर्षक की याद आई। इसी समय पता चला कि सलीम खान और जावेद अख्तर एक बार फिर से साथ आ रहे हैं। सलीम-जावेद की जोड़ी पर प्राइम वीडियो पर तीन भाग में एक डॉक्युमेंट्री आ रही है।

ये सलीम-जावेद की जोड़ी ही थी, जिसने हिंदी सिनेमा के एंग्री यंगमैन को गढ़ा था। ‘शोले’ की कहानी और पटकथा सलीम-जावेद की है। जिसकी समीक्षा में लिखा गया था कि ‘शोले जो भड़क न सका’, वो शोले ऐसा भड़का कि मुंबई (तब बांबे) के मिनर्वा सिनेमाहाल में लगातार पांच वर्षों तक दिखाई जाती रही।

सालों तक सिनेमाघरों में चली शोले

उस दौर को जिन्होंने देखा है, उनका कहना है कि दो साल तो मिनर्वा के बाहर तक टिकट लेने वालों की लाइनें लगा करती थीं। इतना ही नहीं दिल्ली के प्लाजा सिनेमा में फिल्म देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। पंजाब के दर्शकों को दिल्ली लाने के लिए चलने वाली बस का नाम ही शोले एक्सप्रेस रख दिया गया था। शोले’ फिल्म ने अपने प्रदर्शन के पहले सप्ताह में अच्छा बिजनेस नहीं किया था। रिव्यू भी अच्छे नहीं थे।

तब फिल्मों के कारोबार के बारे में बताने वाली फिल्म पत्रिका ‘द ट्रेड गाइड’ में सलीम-जावेद ने अपने नाम से एक विज्ञापन देकर भविष्यवाणी की थी। उन्होंने विज्ञापन में दावा किया था कि वितरण के लिहाज से बनाए गए हर क्षेत्र में यह फिल्म एक करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करेगी। ये इनका आत्मविश्वास था। इसी तरह से इन दोनों से जुड़ा एक और रोचक किस्सा है। एक फिल्म प्रदर्शित होने वाली थी।

इसके पटकथा लेखक सलीम-जावेद ने निर्माताओं से कहा कि पोस्टर पर उनका भी नाम होना चाहिए। निर्माता नहीं माने। पूरे मुंबई में फिल्म के पोस्टर लग गए। सलीम-जावेद ने तय किया कि शहर के हर पोस्टर पर अपना नाम लिखवाएंगे। रातों रात उन्होंने कुछ पेंटर से संपर्क किया। अगले दिन अधिकतर पोस्टर पर सलीम-जावेद का नाम लिखा था। परिणाम ये हुआ कि भविष्य में निर्माता पोस्टर पर पटकथा लेखक के तौर पर इस जोड़ी का नाम लिखने लगे।

सलीम जावेद की जोड़ी का इतिहस

24 फिल्मों में सलीम-जावेद की जोड़ी ने जिस तरह के संवाद लिखे वो भी बेहद लोकप्रिय हुए थे। चाहे फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ और शशि कपूर के बीच का संवाद- ‘आज मेरे पास बिल्डिंग हैं, प्रापर्टी है, बैंक-बैलेंस है, बंगला है, गाड़ी है, क्या है तुम्हारे पास?’

उत्तर मिलता है- ‘मेरे पास मां है।’ या फिल्म ‘शोले’ में अमिताभ का ये पूछना कि ‘तुम्हारा नाम क्या है बसंती?’ अथवा गब्बर का ये कहना कि ‘अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?’ ‘शोले’ के तो कई संवाद बेहद लोकप्रिय हुए, अब भी गाहे-बगाहे लोग दोहराते हैं। संवाद के कैसेट तक बिके थे।

सलीम-जावेद के संवादों की एक और विशेषता है कि वो अश्लील या द्विअर्थी नहीं होते हैं। ‘शोले’ में जब गब्बर बसंती को देखकर कहता है कि- ‘अरे ओ सांभा, ये रामगढ़ वाले अपनी बेटियों को कौन सी चक्की का पिसा आटा खिलाते हैं रे, जरा दारी के हाथ पांव देख, बहुत करारे हैं।’

इस संवाद पर तालियां बजी थीं, किसी को गुस्सा नहीं आया था। सलीम-जावेद एक कथा में कई उपकथा यानी कहानी के भीतर कहानी की कला में पारंगत हैं। शोले’ की कथा में कई गैप हैं, लेकिन उन गैप को उपकथाएं भर देती हैं और दर्शक मनोरंजन की सपनीली दुनिया में चले जाते हैं!

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