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Sholay के 'रहीम चाचा' ने 52 साल की उम्र में किया था डेब्यू, Rajesh Khanna के साथ कीं सबसे ज्यादा फिल्में

हिंदी सिनेमा में ऐसे कई कलाकार हुए हैं जिन्होंने जीवन भर चरित्र किरदार निभाये और अपनी अदाकारी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। इन्हीं में से एक हैं एक हंगल जिन्होंने 200 से ज्यादा फिल्मों में अलग-अलग रोल निभाये थे। उनकी फिल्मी यात्रा कमाल की रही है। जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट के बारे में सोचने लगते हैं एके हंगल का फिल्मी सफर शुरू हुआ था।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Updated: Mon, 26 Aug 2024 05:55 PM (IST)
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शोले में एके हंगल और राजेश खन्ना। फोटो- स्क्रीनशॉट
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा में ऐसे कई कलाकार हुए हैं, जिन्होंने पर्दे पर आजादी की लड़ाई लड़ी और देश के लिए कुर्बानी दी, मगर कम ही अभिनेता ऐसे रहे हैं, जिन्होंने हकीकत में अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने का दम दिखाया हो।

एके हंगल ऐसे ही कलाकारों में शामिल हैं, जो फिल्मों में आने से पहले आजादी की लड़ाई में हिस्सा ले चुके थे। 1929 से आजादी मिलने तक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे हंगल 1936 में पेशावर में थिएटर से जुड़ गये थे और कई नाटकों में शामिल हुए।

राज कपूर के साथ किया डेब्यू

आजादी के बाद एक हंगल मुंबई शिफ्ट हो गये, जहां बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ इप्टा से जुड़ गये। 1965 तक थिएटर में काम करने के बाद 1966 में उन्होंने राज कपूर की फिल्म तीसरी कसम से सिनेमा की दुनिया में करियर शुरू किया था।

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फिल्म में वो राज कपूर के बड़े भाई बने थे। इसके बाद हिंदी सिनेमा का ऐसा चेहरा बन गये, जो अपने सहज और सरल अभिनय के लिए मशहूर था। दिलचस्प पहलू यह है कि फिल्मों में डेब्यू के समय उनकी उम्र 52 साल हो चुकी थी। कलाकारों की कई पीढ़ियों के साथ काम कर चुके एक हंगल सत्तर और अस्सी के दौर में कई कालजयी फिल्मों का हिस्सा बने।  उन्होंने सबसे ज्यादा 16 फिल्में राजेश खन्ना के साथ की थीं।

दोनों की पहली फिल्म बावर्जी थी, जो 1972 में रिलीज हुई थी। ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित फिल्म में एके हंगल ने उस परिवार के बड़े बेटे का रोल निभाया था, जिसमें राजेश खन्ना बावर्ची बनकर जाते हैं। 

शोले के रहीम चाचा बनकर हुए मशहूर

हंगल ने अपने करियर में कई चरित्र किरदार निभाये। कभी डॉक्टर बने, कभी हीरोइन के पिता तो कभी हीरो के भाई। कभी कॉलेज प्रिंसिपल तो कभी वकील, मगर जो शोहरत उन्हें शोले के रहीम चाचा किरदार ने दी, वो किसी से नहीं मिली। इमाम साहब का किरदार उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गया। इस फिल्म में उनकी लाइन इतना सन्नाटा क्यों है भाई... आइकॉनिक साबित हुए और अलग-अलग संदर्भों में आज भी इस्तेमाल की जाती है। 

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एक हंगल ने आखिरी बार अमोल पालेकर निर्देशित पहेली के लिए कैमरे का सामना किया था, जिसमें शाह रुख खान लीड रोल में थे। कलर्स के शो मधुबाला एक इश्क एक जुनून में वो आखिरी बार नजर आये थे, जो 2012 में आया था। 

पद्मभूषण से सम्मानित

पहली फरवरी 1914 को सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में जन्मे एके हंगल ने लगभग 4 दशक के करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया था। 26 अगस्त 2012 को 98 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। हालांकि, अंतिम दिनों में उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। भारत सरकार ने 2006 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था।