Move to Jagran APP

Bhupinder Singh Death: कभी संगीत से नफरत करते थे दिग्गज गजल गायक, एक डिनर पार्टी ने पहुंचा दिया मुंबई

Singer Bhupinder Singh Death भूपिंदर सिंह का गायकी का सफर शुरू होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। इसकी शुरुआत दिल्ली से ही हुई थी। लीजेंड्री संगीतकार मदन मोहन की नजर उन पर पड़ी और हिंदी सिनेमा को एक बेहतरीन गजल गायक मिला।

By Manoj VashisthEdited By: Updated: Tue, 19 Jul 2022 08:06 AM (IST)
Hero Image
Ghazal singer Bhupinder Singh Death. Photo- Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात-दिन... जिंदगी की आपा-धापी को इससे बेहतर ढंग से शायद ही किसी नगमे में पेश किया गया हो। 1975 में आयी संजीव कुमार और शर्मिला टैगोर की फिल्म मौसम की इस गजल को गुलजार ने लिखा, जो फिल्म के निर्देशक भी थे। 47 साल बाद भी यह गजल कल आयी जैसी लगती है और भूपिंदर सिंह इस गजल के जरिए हर पीढ़ी की यादों में बसे रहे। सोमवार देर शाम 82 साल की उम्र में भूपिंदर सिंह हमेशा के लिए चले गये। फिल्मी गजलों को लोकप्रिय बनाने में भूपिन्दर सिंह का बड़ा योगदान रहा है। उनकी गायी गजलों की एक लम्बी फेहरिस्त है, जो फैंस के दिलों में बसी है।

डिनर पार्टी में मिला मुंबई का न्योता

फिल्मी प्लेबैक सिंगिंग में उनका सफर शुरू होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। बात 1962 की है। महज 22 साल के भूपिंदर ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली में बतौर गिटारिस्ट काम करते थे। यहीं से उनका करियर शुरू हुआ था। दूरदर्शन के लिए भी संगीत देते थे। ऑल इंडिया रेडियो में प्रोड्यूसर सतीश भाटिया ने एक डिनर पार्टी आयोजित की थी, जिसमें हिंदी सिनेमा के महान संगीतकार मदन मोहन पहुंचे। इस पार्टी में भूपिंदर सिंह ने गाना गाया। नौजवान भूपिंदर की आवाज से मदन मोहन इतने प्रभावित हुए कि मुंबई आने का न्योता दे डाला। मुंबई की ओर बढ़ा भूपिंदर का यह कदम उनके लिए एक सुनहरी शुरुआत साबित हुआ। 

लीजेंड्री संगीतकार मदन मोहन ने दिया ब्रेक

मदन मोहन उस समय चेतन आनंद की क्लासिक फिल्म हकीकत का संगीत बना रहे थे। उन्होंने भूपिंदर सिंह को होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा गाना गाने का मौका दिया। भूपिंदर को मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे जैसे वेटरन गायकों के साथ सुरों की जुम्बिश करने का मौका मिला। फिल्म सफल रही और इसका संगीत भी। भूपिंदर भी पहचाने जाने लगे। फिल्म में उन्होंने जवान का रोल भी अदा किया और गाने में फीचर हुए। इसके बाद लीजेंड्री संगीतकार खय्याम ने उन्हें आखिरी खत फिल्म में सोलो गाने का मौका दिया और यहां से हिंदी सिनेमा को एक ऐसी आवाज मिली, जिसमें डूब जाने को दिल करता है। बाद में उन्होंने किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के साथ भी कुछ डुएट गाये। 

भूपिंदर सिंह का जन्म 6 फरवरी 1940 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके पिता प्रो. नाथा सिंह खुद वोकेलिस्ट और संगीत के शिक्षक थे। बताया जाता है कि एक वक्त ऐसा भी था कि भूपिंदर सिंह को संगीत और वाद्य यंत्रों से नफरत थी। 

भूपिंदर सिंह ने अपनी गजलों का पहला संग्रह 1968 में रिलीज किया था। इस एलपी में तीन गजलें थीं, जिन्हें उन्होंने खुद कम्पोज किया था। उन्हें गजलों में स्पेनिश गिटार, बास और ड्रम्स के इस्तेमाल की शुरुआत करने का श्रेय भी दिया जाता है। 1980 में उन्होंने बांग्लादेशी सिंगर मिताली मुखर्जी से शादी की थी। मिताली के साथ उन्होंने कई परफॉर्मेंसेज दीं। दोनों का एक बेटा है, जिनका नाम निहाल सिंह है। निहाल भी सिंगर हैं।

भूपिंदर सिंह की कुछ यादगार गजलें-

  • होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा- हकीकत
  • किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है- ऐतबार
  • बीती ना बिताये रैना- परिचय
  • दिल ढूंढता है- मौसम
  • नाम गुम जाएगा- किनारा
  • एक अकेला इस शहर में- घरौंदा
  • हुजूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए- मासूम
  • कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता- खय्याम
  • करोगे याद तो हर बात याद आएगी- बाजार
  • जिंदगी जिंदगी मेरे घर आना- दूरियां