खौफ के साये में अतरंगी अतीत, पूरी तरह बदल चुके हैं बॉलीवुड फिल्मों के 'भूत'
सिनेमा के बदलते दौर के साथ हॉरर फिल्मों में भूत की शक्ल भी अब काफी बदल चुकी है। पहले के जमाने में जहां प्रोस्थेटिक मेकअप के साथ ही आदमी को भूत बनाया जाता था और लगभग सभी फिल्मों में डरवाने चेहरे एक जैसे दिखते थे वहीं अब मूवीज में भूत काफी अतरंगी से होते हैं जो डराते भी हैं और हंसाते भी लेकिन उनके अतीत की कहानी दर्दनाक होती है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। बदलते सिनेमा और तकनीक के साथ हॉरर फिल्मों में 'भूतों' का रूप भी बिल्कुल बदल चुका है। तुलसी रामसे और श्याम रामसे (रामसे ब्रदर्स) उस दौर में हॉरर फिल्में बनाने के लिए मशहूर थे। उन्होंने साल 1972 में रामसे ब्रदर्स प्रोडक्शन में पहली हॉरर फिल्म 'दो गज जमीन के नीचे' बनाई थी।
इसके बाद वह अंधेरा, दरवाजा, दहशत, पुराना मंदिर और वीराना जैसी कई हॉरर फिल्में लेकर आए, जो उस जमाने की सुपरहिट फिल्में थीं। उनकी फिल्मों में अगर लड़की भूतनी बनती थी, तो उसकी आंखों में लेंस लगाए जाते थे, वहीं आदमियों को भूत बनाने के लिए उनका प्रोस्थेटिक मेकअप किया जाता था।
इसके अलावा फिल्म देखकर लोगों को डर लगे, इसके लिए मेकर्स दरवाजे के साउंड, पानी के गिरने की आवाज और कैमरे के एंगल और लाइटिंग का ध्यान मेकर्स खास तौर पर रखते थे। हालांकि, उनकी फिल्मों की कहानी लगभग एक ही तरह की होती थी और उनके भूत भी।
अब सिनेमा पूरी तरह से बदल गया है और हॉरर फिल्मों के भूत की शक्ल भी। आज के समय में किसी इंसान को नहीं भूत बनाया जाता, बल्कि तकनीकी का फायदा उठाकर मेकर्स वीएफएक्स से हॉरर फिल्मों में भूत तैयार करवाते हैं। इतना ही नहीं, मेकर्स ये भी ध्यान रखते हैं कि भूत क्रिएट करते वक्त वह एहसास पुराना रखे, लेकिन स्टाइल बिल्कुल Gen Z वाला हो, ताकि आज की पीढ़ी भी उससे कनेक्ट हो सके।
अब ऐसे भूत हैं, जिनकी अगर आप अचानक से शक्ल देख लें तो आपके दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं। कैसे सिनेमा के बदलने के साथ फिल्मों में 'भूतों' की सूरत और उनकी कहानी दोनों बदली है, चलिए देखते हैं।
सरकटा
शुरुआत स्त्री 2 से करते हैं, जो इस वक्त बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। इस फिल्म में स्त्री रक्षक है, तो सरकटा भक्षक, जो चंदेरी में रहने वाली आधुनिक सोच वाली लड़कियों को गायब करता है। वह सरकटा कैसे बनता है, इसके पीछे की कहानी को भी बड़ी ही खूबसूरती से दिखाया गया है।
मेकर्स ने उसकी पूरी बॉडी पर फोकस न करते हुए उसके सिर पर सबसे ज्यादा वीएफएक्स का काम किया है। मूवी में दिखाया गया है कि कैसे स्त्री अय्याश राजा के सिर को खंजर से धड़ को अलग करती है और उसके बाद वह पूरे गांव में अपना सिर हाथ में लेकर घूमता है।
मुंज्या
इस लिस्ट में ही दिनेश विजन की दूसरी फिल्म मुंज्या भी है, जिसका भूत सबसे निराला है। बचपन से ही एक लड़की का दीवाना 'गोत्या' शैतान को खुश करने के लिए अपनी बहन की बलि देने जाता है और खुद उसकी ही बलि चढ़ जाती है। वह उसके बाद 'मुंज्या' बन जाता है। इसमें मुंज्या की बड़ी-बड़ी आंखें कभी हंसाती हैं, कभी डराती हैं। वह सिर्फ उन्हीं को दिखता है, जो उसके वंश के होते हैं।
जब बिट्टू गांव आता है और कोंकण के जंगल में जाता है, तो मुंज्या अपने बचपन के प्यार 'मुन्नी' को ढूंढने के लिए उसकी पीठ पर चढ़ जाता है। हालांकि, मुंज्या को फिल्म में थोड़ा रंगीन मिजाज भी दिखाया गया है। वह जैसे ही देखता है कि मुन्नी अब बुड्ढी हो गई है, तो वह बेला के पीछे पड़ जाता है।
काकुदा
सोनाक्षी सिन्हा और रितेश देशमुख स्टारर फिल्म 'काकुदा' का भूत भी सबसे अलग है। कैसे सर्कस में काम करने वाला एक छोटी हाइट का लड़का रतौड़ी गांव में आता है और फिर उसे गांव वाले भा जाते हैं और उसे वहां के लोगों से प्यार हो जाता है । वह उसी गांव में रहने का निर्णय लेता है, इस दौरान उसकी दोस्ती एक विधवा लड़की और उसके बेटे से हो जाती है, जिससे मिलने की अनुमति किसी को नहीं होती।
एक दिन जब विधवा महिला की पीठ में दर्द होता है , तो उसका बेटा काकुदा को बुलाकर लाता है, लेकिन पेलवान मास्टर ये सब देख लेता है और फिर काकुदा के खिलाफ गांव वालों को भड़काता है और गांव वाले उसका घर जला देते हैं और मार की वजह से मैदान में पड़े-पड़े काकुदा भी 13 घंटे में मर जाता है, जिसके बाद उसकी आत्मा भटकती है और हर मंगलवार की रात गांव वाले घर में दो दरवाजे लगाते हैं।
अगर किसी के घर का दरवाजा बंद रह जाता है, तो काकुदा उसको आकर जोरदार लात मारता है और उसका कूबड़ निकल आता है। 13 दिनों में उस इंसान की मौत हो जाती है। फिल्म में काकुदा के भूत को देखकर आपको हल्क का कैरेक्टर याद आ जाएगा।
स्त्री
पहले जब कोई एक्ट्रेस भूतनी का किरदार अदा करती थी, तो पूरा फोकस मेकर्स उसकी आवाज और आंखों पर रखते थे, ताकि लोगों को डर लगे। हालांकि, अब भूतनी भी बदल चुकी है। पहले पार्ट में दिखाया गया है कि कैसे स्त्री की आत्मा चंदेरी गांव में भटकती है और अगर वह किसी आदमी को देख ले, तो वह उसे नंगा कर देती है।
स्त्री की फिल्म में पूरी बॉडी जली हुई दिखाई गयी है। कैसे वह भूत बनकर भटकती है और उसके पास्ट में क्या होता है, इसे बखूबी फिल्म में उतारा गया है। बिना किसी आवाज के भी स्त्री लोगों को डराने में सक्षम है।
हस्तर
'सो जा नहीं तो हस्तर आ जाएगा', ये एक डायलॉग साल 2018 में कई लोगों की जुबान पर रहा। राही अनिल के निर्देशन में बनी फोक हॉरर फिल्म की कहानी काफी यूनिक है। विनायक राव अपने बेटे पांडुरंग को समृद्धि की देवी के बारे में बताता है, जो सोने और अनाज का प्रतीक है। देवी की पहली संतान हस्तर लालची होता है और वह देवी का सारा सोना हड़प लेता है। जब वह अनाज लेने जाता है, तो देवता उसे मार देते हैं, जिसके बाद देवी उसे अपनी कोक में जगह देती हैं, लेकिन सिर्फ इस शर्त पर कि उसे भुला दिया जाएगा।
हालांकि, तुम्बाड़ के लोग उसे ही अपना भगवान मान लेते हैं और उसकी पूजा करने लगते हैं। विनायक बचपन से ही लालची स्वभाव का होता है, अपनी गरीबी मिटाने के लिए वो आटा लेकर वहां जाता है, जहां हस्तर आता है। हस्तर जब अनाज खाता है, तो उसके पीछे से सोना गिरता है, लेकिन अगर अनाज खत्म तो हस्तर इंसान को ही मार देता है।