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थिएटर की तरह OTT पर भी होगा CBFC का पहरा? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

जिस तरह CBFC थिएटर्स में रिलीज होने वाली फिल्मों की निगरानी करती है उसी तरह ओटीटी के कंटेंट की भी निगरानी करने के लिए एक बेंच स्थापित करने की डिमांड की गई थी जिस पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। अब ओटीटी पर रिलीज होने वाली फिल्मों और सीरीज के कंटेंट में कांट-छांट होगा या नहीं जानिए कोर्ट का फैसला।

By Rinki Tiwari Edited By: Rinki Tiwari Updated: Fri, 18 Oct 2024 01:56 PM (IST)
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ओटीटी पर निगरानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला। फोटो क्रेडिट- इंस्टाग्राम
 एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। कोई भी फिल्म सिनेमाघरों में तभी पहुंचती है, जब उसे सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानी CBFC से हरी झंडी मिलती है। फिल्मों के कांट-छांट के बाद ही मूवी को रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट दिया जाता है। हालांकि, ओवर द टॉप यानी ओटीटी (OTT) को लेकर ऐसे कोई रूल्स नहीं हैं।

चाहे वेब सीरीज हो या फिर कोई फिल्म, अगर वह थिएटर्स की बजाय ओटीटी पर रिलीज हो रही है तो उसे CBFC के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं पड़ती है और ना ही उसमें कोई कांट-छांट होता है। ओटीटी पर गाली-गलौज और इंटीमेसी को खुलेआम दिखाया जाता है। ऐसे में कोर्ट में इसको लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया गया है।

OTT पर भी होगा फिल्टर?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें केंद्र को भारत में ओवर-द-टॉप (ओटीटी) और अन्य प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की निगरानी और फिल्टर करने व वीडियो को विनियमित करने के लिए एक स्वायत्त निकाय स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। 18 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की है।

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सीजेआई ने सुनाया फैसला

पीटीआई के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस तरह के मुद्दे कार्यपालिका के नीति निर्माण क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श की जरूरत होती है। सीजेआई ने कहा-

यह जनहित याचिकाओं की समस्या है। वे सभी अब नीति (मामलों) पर हैं और हम वास्तविक जनहित याचिकाओं को छोड़ देते हैं।

IC 814 का दिया उदाहरण

जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शशांक शेखर झा ने कहा कि उन्हें इसे वापस लेने और शिकायतों के साथ संबंधित केंद्रीय मंत्रालय से संपर्क करने की अनुमति दी जानी चाहिए। हालांकि, सीजेआई ने इसे खारिज कर दिया। जनहित याचिका में नेटफ्लिक्स की सीरीज 'आईसी 814: द कंधार हाईजैक' (IC 814: The Kandahar Hijack) का भी हवाला दिया गया है, ताकि इस तरह के नियामक तंत्र की आवश्यकता को उजागर किया जा सके।

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इसमें कहा गया है कि एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन निकाय - केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) मौजूद है, जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को विनियमित करने का काम सौंपा गया है। सिनेमैटोग्राफ कानून सार्वजनिक स्थानों पर दिखाई जाने वाली व्यावसायिक फिल्मों के लिए एक सख्त प्रमाणन प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करता है। हालांकि, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ऐसी कोई रूपरेखा नहीं है। विवादों से भरे कंटेंट को बिना किसी जांच या संतुलन के बड़े पैमाने पर जनता को दिखाई जाती है।

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