Move to Jagran APP

सिनेमा में राजनीति का रण: 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' से लेकर 'द दिल्ली फाइल्स' तक, ये फिल्में होने वाली हैं रिलीज

आज शुक्रवार को बस्तर द नक्सल स्टोरी फिल्म रिलीज हो गई है। इस मूवी में छत्तीसगढ़ में माओवादी उग्रवाद का मुद्दा उठाया गया है। सिर्फ यही नहीं जल्द ही कुछ और फिल्में हैं जो रिलीज होने वाली हैं। इसमें स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक्सीडेंट आर कांस्पिरेसी गोधरा द साबरमती रिपोर्ट शामिल हैं। ये सभी फिल्में भी सत्य घटना पर आधारित हैं।

By Rajshree Verma Edited By: Rajshree Verma Updated: Fri, 15 Mar 2024 03:27 PM (IST)
Hero Image
फिल्म आर्टिकल 370 और बस्तर- द नक्सल स्टोरी (Photo Credit: X)
बॉलीवुड विशेष: एक हिंदुस्तानी को कश्मीर जाने के लिए परमिट चाहिए। वहां तिरंगा लहराना पाप है...ये पूरा देश अनुच्छेद 370 का विरोध करता है..., फिल्म 'मैं अटल हूं' में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पात्र ने उपरोक्त कथन के जरिए भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया। इसी पर आधारित फिल्म आर्टिकल 370 ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कारोबार किया।

आज प्रदर्शित हो रही फिल्म 'बस्तर- द नक्सल स्टोरी' में छत्तीसगढ़ में माओवादी उग्रवाद का मुद्दा उठाया गया है। यही नहीं, लोकसभा चुनावों की सरगर्मियों के मध्य प्रदर्शित होने वाली आगामी फिल्मों 'रजाकार', 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर', 'एक्सीडेंट आर कांस्पिरेसी गोधरा', 'द साबरमती रिपोर्ट' व 'इमरजेंसी' के केंद्र में हैं भारतीय राजनीति के अहम मुद्दे।

यह भी पढ़ें: Bastar The Naxal Story Review: नक्सलियों की कार्यप्रणाली और अत्याचारों को असरदार चित्रण, अदा की बेहतरीन अदाकारी

चुनावी माहौल में इन फिल्मों को लेकर प्रियंका सिंह की पड़ताल... आज प्रदर्शित हो रही बस्तर-द नक्सल स्टोरी फिल्म में छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादी उग्रवाद का सच टटोलने का प्रयास किया गया है, जबकि वर्ष 1948 के हैदराबाद की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म रजाकार में वहां के तत्कालीन निजाम के शासन में हिंदुओं की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए भारतीय रियासतों के एकीकरण में मुख्य भूमिका निभाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल को नायक के तौर पर दर्शाए जाने की बात कही जा रही है।

वहीं, 22 मार्च को प्रदर्शित होने वाली फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' में भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोड़ने वाले वीर सावरकर की कहानी के माध्यम से राष्ट्रवाद को हवा देने का प्रयास है। इन फिल्मों को कुछ लोग खास एजेंडे को सामने रखने की कवायद बता रहे हैं। हालांकि, फिल्मकार ऐसी किसी मंशा को खारिज करते हैं। सावरकर का पात्र निभा रहे रणदीप हुड्डा कहते हैं कि ऐसे नायकों की कहानियां राजनीतिक विरोध को नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प से लक्ष्य की ओर बढ़ने का उत्साह जगाती हैं।

आगामी दिनों में सिख विरोधी दंगों पर आधारित फिल्में 'द दिल्ली फाइल्स' और 'जेएनयू' प्रदर्शित होंगी। वर्ष 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती ट्रेन में लगी आग में अयोध्या से लौटते कारसेवकों के जल जाने की घटना पर आधारित फिल्में रणवीर शौरी अभिनीत कांस्पिरेसी आर एक्सीडेंट गोधरा व विक्रांत मेसी अभिनीत द साबरमती रिपोर्ट भी प्रदर्शन की कतार में हैं।

गौरतलब है कि गत जनवरी में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया गया। इसके कुछ माह के भीतर ही राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कथित कारसेवकों की साबरमती ट्रेन में दर्दनाक मृत्यु की पड़ताल करती फिल्मों का आना मात्र संयोग नहीं। वास्तव में कहानी जब सही समय पर प्रदर्शित की जाती है तो दर्शक भी जुड़ते हैं। चुनाव से जुड़ती पटकथा, चुनाव पूर्व राजनीतिक मुद्दों पर बनी फिल्मों का प्रदर्शन पहले भी होता रहा है।

2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले प्रदर्शित फिल्म 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' भारतीय जवानों के बलिदान का बदला लेने के लिए पाकिस्तान में घुसकर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक पर थी। फिल्म का संवाद हाउ इज द जोश राजनीतिक रैलियों में जोश जगाने का माध्यम बन गया था। इस वर्ष की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक मैं अटल हूं से हुई।

उसके बाद आर्टिकल 370 और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर बनी फिल्में फाइटर, ऑपरेशन वैलेंटाइन प्रदर्शित हुईं। देश से जुड़े ये मुद्दे अहम हैं, पर अक्सर प्रोपेगेंडा फिल्में बताकर इनका विरोध किया जाता है। सच दिखाने का कोई वक्त नहीं होता। बस्तर- द नक्सल स्टोरी फिल्म के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह अपनी फिल्म को लेकर प्रोपेगेंडा का टैग झेल चुके हैं।

बकौल विपुल, अगर लोग सोच रहे हैं कि चुनाव से पहले बस्तर फिल्म से किसी पार्टी को लाभ होगा तो यह अतार्किक है। क्या बस्तर में 76 जवान बलिदान नहीं हुए थे? नक्सली इलाकों में विकास कार्य बाधित किए जा रहे हैं। सच को दिखाने का कोई समय नहीं होता है। विषय इतना अहम है कि यह प्रतीक्षा नहीं कर सकता है। पांच अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था।

इसकी कहानी निर्माता आदित्य धर ने फिल्म 'आर्टिकल 370' में दिखाई। 'उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक' का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। आदित्य कहते हैं कि भारतीय दर्शक बहुत स्मार्ट हैं। उन्हें पता होता है कि कौन-सी प्रोपेगेंडा फिल्म है और कौन नहीं। कश्मीर में जो दिक्कतें रही हैं, उसके मुख्य कारणों में से एक आर्टिकल 370 भी था। उसकी आड़ में अलगाववादी गलत चीजें करके भी बच जाते थे। मैं स्वयं कश्मीर से हूं।

वहां के लोग शांति चाहते हैं। आर्टिकल 370 हटने के बाद आतंकी गतिविधियां कम हुई हैं। स्कूल बंद नहीं होते हैं, होटल खुल गए हैं, लोगों को नौकरियां मिल रही हैं, इस दृष्टि से यह कहानी भारत के लिए अहम है। ऐसी कहानियां सामने आनी चाहिए। विवादों का साया भी रहा आने वाले दिनों में कंगना रनोट भारतीय राजनीति में काले अध्याय आपातकाल पर फिल्म इमरजेंसी लेकर आ रही हैं।

उनका लुक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलता-जुलता है। इससे पूर्व भी कुछ ऐसी फिल्में आईं जिनकी कथावस्तु के साथ ही राजनीतिज्ञों से साम्य के कारण विवाद खड़े हुए। कुछ प्रमुख फिल्मों की बात करें तो गुलजार निर्देशित आंधी पर तब की कांग्रेस सरकार ने यह कहकर प्रतिबंध लगा दिया था कि इससे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि धूमिल होगी। यही हाल फिल्म किस्सा कुर्सी का भी रहा। इसके प्रिंट जला दिए गए थे। इंदु सरकार और द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर पर विपक्ष ने विवाद खड़े किए थे।

यह भी पढ़ें: राजनीति में शामिल होने के लिए तैयार हैं Kangana Ranaut? बोलीं- 'अपने देश के लिए जो करना चाहती हूं, उसके लिए...'