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41 साल पहले स्मिता पाटिल ने महसूस किया था तवायफों का दर्द, सिनेमा पर लगाया था जिस्म दिखाने का आरोप

स्मिता पाटिल ने अपनी फिल्मों से हर सिनेमाप्रेमी के दिलों में एक अलग छाप छोड़ी । उन्होंने 1974 में फिल्म राजा शिव छत्रपति से शुरुआत की थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने सामना और मंथन जैसी फिल्मों में काम किया। थ्रो बैक थर्सडे में हम आपको उनसे जुड़ा एक ऐसा किस्सा बता रहे हैं जहां उन्होंने तवायफों के किरदार को पर्दे पर ग्लैमराइज तरीके से दिखाने पर नाराजगी जताई थी।

By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Thu, 27 Jun 2024 12:13 AM (IST)
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स्मिता पाटिल ने औरतों को लाचार दिखाने पर रखी थी अपनी बात/ फोटो- IMDB
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। स्मिता पाटिल ने हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दी हैं। 17 अक्तूबर 1955 में जन्मी एक्ट्रेस ने पर्दे पर अलग-अलग किरदार निभाए हैं। उन्होंने अपने पूरे करियर में 80 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।

दिग्गज अभिनेत्री ने अपने करियर की शुरुआत साल 1975 में श्याम बेनेगल की फिल्म 'चरणदास चोर' से की थी। उन्होंने पैरेलल और मेनस्ट्रीम सिनेमा दोनों में ही काम किया। स्मिता पाटिल अपने दौर की साहसिक अभिनेत्रियों में गिनी जाती थीं, जिन्होंने मसाला फिल्मों में औरतों की सिनेमाई छवि के लिए अपनी आवाज बुलंद की।

खासकर, तवायफों के किरदारों के प्रति स्मिता की सहानुभूति उनके व्यक्तित्व की खूबी रही। स्मिता सिनेमा में इन किरदारों को गढ़ने और पेश करने के तरीकों की कड़ी आलोचक रहीं। उन्होंने इन किरदारों की तड़क-भड़क के पीछे दर्द की एक गाढ़ी लकीर देखी। आज थ्रो बैक थर्सडे में हम आपको स्मिता पाटिल से जुड़े इस किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं।

तवायफों के दर्द को नहीं दिखाते मेकर्स-स्मिता पाटिल

बीते महीने जब संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज 'हीरामंडी' रिलीज हुई थी तो निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और एक पाकिस्तानी यूजर ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि आखिर तवायफों की जिंदगी के असली दर्द को क्यों स्क्रीन पर नहीं उतारा जाता है, क्यों उन्हें ग्लैमराइज करके दिखाया जाता है?

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विवेक अग्निहोत्री से कई सालों पहले ही स्मिता पाटिल ने प्रसार भारती को दिए एक इंटरव्यू में वेश्याओं और तवायफों के कमर्शियल सिनेमा में प्रस्तुतीकरण पर बात की थी। उन्होंने कहा था-

"देह व्यापार को लेकर बिमल रॉय से लेकर गुरुदत्त तक, लोगों ने काफी अच्छी फिल्में बनाई हैं, लेकिन आज के समय में जो तवायफों-वेश्याओं का दर्द है कि वह इस प्रोफेशन में क्यों हैं, उस दर्द को भूलकर सिर्फ उसके बदन को एक्सपोज करने का जो तरीका बन रहा है, वो बहुत ही गलत है।"

औरतों को या तो मजबूर या वैम्प बना देते हैं-स्मिता पाटिल

स्मिता पाटिल ने इस बातचीत में ये भी बताया कि उन्होंने जिस तरह की फिल्मों से शुरुआत की थी, वह बहुत ही बेहतरीन फिल्में थीं, जिनमें महिलाओं को अगर लाचार दिखाया जाता था तो उनकी मजबूत साइड को भी स्क्रीन पर दर्शाते थे, लेकिन जब उन्होंने कमर्शियल फिल्मों की दुनिया में कदम रखा तो उसमें फॉर्मूला होने की वजह से सब फिल्मों में महिलाओं का सिर्फ एक साइड ही दिखाया जा रहा था।

बहुत सारी औरतों को या तो पतिव्रता दिखा देते थे या फिर उसको सती और बेवकूफ-कमजोर दिखाया जाता था। या फिर उन्हें फिल्मों में वैम्प बना दिया जाता था, जो नेगेटिव रोल करती हैं, ये सब चीजें उन्हें निजी तौर पर कभी अच्छी नहीं लगीं।

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