Throwback Thursday: जब एक टास्क को पूरा करने के लिए कादर खान ने फुटबॉल की मार भी की थी सहन
Kader Khan हिंदी सिनेमा के एक ऐसे अभिनेता थे जिनकी फिल्में आज भी जब टेलीविजन पर आती हैं तो लोगों के चेहरों पर मुस्कान आ जाती है। कादर खान ने अपने करियर में कई बड़ी फिल्में की। हालांकि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक्टर नहीं बल्कि बतौर राइटर की थी। शुरूआती दौर में तो एक टास्क के लिए उन्होंने फुटबॉल की मार भी झेली।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। कादर खान हिंदी सिनेमा के वो अभिनेता थे, जो पर्दे पर किसी भी रूप में आ जाए अपने दर्शकों का दिल जीत ही लेते थे। उन्होंने अपने करियर में अलग-अलग तरह के किरदार निभाए। गोविंदा हो या सलमान खान या फिर शाह रुख खान (Shah Rukh Khan) जिनके साथ भी वो स्क्रीन पर दिखे, उसके साथ उनकी जोड़ी परफेक्ट फिट बैठी।
आज के दौर में भले ही इंडस्ट्री में एंट्री करने के लिए कई रास्ते खुल गए हों, लेकिन 'जोड़ी नंबर 1' एक्टर को अपने समय में काफी संघर्ष करना पड़ा था। खुद एक पुराने इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि किस टास्क को पूरा करने के लिए उन्होंने फुटबॉल की मार भी सहन की थी।
एक ड्रामे ने बॉलीवुड में कादर खान को दिलाई थी एंट्री
कादर खान ने अपने पूरे फिल्मी करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। हालांकि, वह भी थिएटर आर्टिस्ट रहे थे। बॉलीवुड में उनकी एंट्री बतौर एक्टर नहीं, बल्कि डायलॉग राइटर के तौर पर हुई थी। लहरे रेट्रो को दिए एक बहुत पुराने इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि कैसे उन्हें बॉलीवुड में एंट्री मिली।यह भी पढ़ें: क्या था कादर खान और गोविंदा की सुपरहिट फिल्मों का फॉर्मूला? आज के डायरेक्टर जान लें तो दे सकते हैं ब्लॉकबस्टर
उन्होंने कहा, "23-24 साल पहले मेरा एक ड्रामा बहुत फेमस हुआ था 'लोकल ट्रेन', जिसमें मुझे बेस्ट राइटर-एक्टर और डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला था। मुझे बैक स्टेज एक डायरेक्टर मिले थे मिस्टर नरेंद्र बेदी, उन्होंने मुझसे कहा कि मैं एक फिल्म बना रहा हूं 'जवानी-दीवानी', जिसमें रणधीर कपूर-जया बच्चन थे।
उन्होंने मुझसे कहा कि मैं चाहता हूं आप इस फिल्म के डायलॉग लिखिए। पहले तो मैंने उन्हें मना किया, लेकिन बाद में उन्होंने काफी बोला तो मैं मान गया"।
फुटबॉल की मार खाकर लिखे थे फिल्म के डायलॉग
कादर खान ने अपनी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा,"उन्होंने दूसरे दिन मुझे बुलाया स्क्रिप्ट मेरे हाथ में दी और बोला कि इस फिल्म के डायलॉग लिखकर लाओ। मेरे पास कोई जगह नहीं थी उस समय पर, तो मैं सीधा ट्रेन पकड़कर बांद्रा से मरीन ड्राइव गया और क्रॉस मैदान में लोग फुटबॉल खेल रहे थे, मैंने एक कोना पकड़ा और डायलॉग लिखने बैठ गया। कभी-कभी फुटबॉल आकर तेज से लगती थी, तो मैं मार खाता जाता था और डायलॉग लिखता जाता था"।