Vikrant Massey के मन-मस्तिष्क में बस गई है देव आनंद की फिल्म 'गाइड', बताया- कैसी फिल्मों को देते हैं तवज्जो
12वीं फेल और मिर्जापुर जैसी फिल्मों और सीरीज से विक्रांत मैसी (Vikrant Massey) ने सिनेमा जगत में अपनी पहचान बना ली है। वह बेहतरीन कलाकारों में गिने जाने वाले अभिनेता हैं। हाल ही में उन्होंने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में बताया कि वह किस तरह की फिल्में करना पसंद करते हैं। उन्होंने देव आनंद की फिल्म गाइड का भी जिक्र किया।
प्रियंका सिंह, मुंबई। लाकार का काम अगर वर्षों बाद भी याद रखा जाए, तब जाकर लगता है कि कुछ अच्छा काम किया है। फिल्म 12वीं फेल अभिनेता विक्रांत मैसी (Vikrant Massey) भी चाहते हैं कि उनकी फिल्मों में कुछ ऐसा हो जो नई-पुरानी पीढ़ियों को आने वाले वर्षों में समान रूप से आकर्षित करे।
बदले हुए सिनेमा पर बोले एक्टर
विक्रांत मैसी कहते हैं, "दस वर्ष पहले तक जो वैकल्पिक या कला (आर्ट) सिनेमा हुआ करता था, वह अब नहीं रहा। मसाला मनोरंजन और कला फिल्मों के बीच की रेखा मिट चुकी है। जो भूमिकाएं पहले नहीं लिखी जाती थीं, वे आज इसलिए लिखी जा रही हैं, क्योंकि लोग उन्हें देखना पसंद कर रहे हैं। बहुत से कलाकार हैं, जो हीरो की छवि से हटकर अपरंपरागत अभिनय कर रहे हैं। ऐसी फिल्में मुख्यधारा वाले सिनेमा का हिस्सा बन गई हैं। हम एक बदले हुए दौर में हैं।"
इन फिल्मों से मिली प्रेरणा
वह आगे कहते हैं, "विरासत एक बहुत बड़ा शब्द है। काम करते हुए यह शब्द ध्यान में नहीं रहता है। मैं ऐसी फिल्मों को करने की महत्वाकांक्षा रखता हूं, जिनका आकर्षण समयकाल से परे हो। जो फिल्में मैंने बचपन में देखी हैं या जो मेरे घर का माहौल रहा है, अच्छी फिल्में देखने को लेकर, उससे मेरा सोच विकसित हुआ है। जब भी परिवार के साथ बैठते हैं, पिछली सदी के छठवें और सातवें दशक की फिल्में देखते हैं। वक्त, गाइड फिल्में देखी हैं, जो बचपन से मन-मस्तिष्क में बस गई हैं।"यह भी पढ़ें- मिर्गी से जूझ रहे लड़के को Vikrant Massey ने मार दिया था घूंसा, बाद में उसकी हालत देख सकपका गए थे एक्टर
ऐसी फिल्में करना चाहते हैं विक्रांत मैसी
फिर आई हसीन दिलरुबा एक्टर ने आगे कहा, "कमर्शियल सफलता, बाक्स आफिस पर बड़े नंबर्स सब अच्छी चीजें हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात है कि यह अच्छी कहानियों को कहने का माध्यम है। कला किसी भी स्वरूप चाहे, किताब हो, गाने या फिल्में, उनका मूल्य सदाबहार होना चाहिए। वह कला समयकाल से परे होनी चाहिए। 10 वर्ष बाद उसे कोई देखे या सुने, तो उससे जुड़ पाए। कोशिश यही रहती है कि ऐसी फिल्में करें, जो याद रह जाएं।"
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