पाकिस्तान से भारत आए विनोद खन्ना की कद-काठी, तेज दिमाग और तौर- तरीका ध्यान खींचने वाला था। बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखने के बावजूद उन्होंने संघर्ष की राह चुनी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अपनी मंजिल बना ली। हालांकि, सफलता मिलने के बावजूद वो रुके नहीं।
दौलत, शौहरत और रुतबे से आगे है जिंदगी
विनोद खन्ना तमाम स्टार्स से बिल्कुल अलग थे। वो जिंदगी को दौलत, शौहरत और रुतबे से कहीं आगे देखते थे। यही कारण था कि जब वो अपने करियर के पीक पर थे, उन्होंने सब कुछ छोड़ने का मन बना लिया। विनोद खन्ना के आगे फिल्मों की लाइन लगी थी, डायरेक्ट- प्रोड्यूसर के बीच उन्हें साइन की करने की होड़ मची थी। यहां तक कि एक वक्त पर उन्होंने अमिताभ बच्चन की चमक को भी फीका कर दिया था, लेकिन सुपरस्टार बन चुके विनोद खन्ना का मन शांत नहीं था।
पीक पर जाता करियर, खुशहाल परिवार और सोसाइटी में रुतबा, अभिनेता के पास सब कुछ था, लेकिन उन्होंने एक दिन ये सब कुछ छोड़ दिया और संन्यासी बनने का एलान कर दिया।
असल जिंदगी में जीये कई किरदार
उन्होंने अपनी जिंदगी में कई किरदारों को जीया- एक अभिनेता, राजनेता और संन्यासी।
विनोद खन्ना ने शानदार फिल्मी करियर देखा। सन्यासी बने और इसके बाद एक बार फिर लाइमलाइट की दुनिया में वापसी की। विनोद खन्ना ने राजनीति में भी हाथ आजमाया और सफल रहे। आइए अभिनेता की बर्थ एनिवर्सरी पर उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से जानते हैं...
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बड़े कारोबारी परिवार से ताल्लुक
विनोद खन्ना का जन्म पेशावर (पाकिस्तान) के एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता का कपड़ों से जुड़ा कारोबार था, लेकिन बटवारे के बाद उनका परिवार सब कुछ छोड़कर मुंबई आ गया। इसके कुछ समय बाद विनोद खन्ना का परिवार दिल्ली में शिफ्ट हो गया। एक्टर ने इस बात का खुलासा 2002 में दिए अपने एक इंटरव्यू में किया था।
बेहद पढ़े-लिखे थे विनोद खन्ना
विनोद खन्ना एक्टर होने के साथ-साथ पढ़ाई में भी अच्छे थे। उन्होंने मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था। अच्छी -खासी डिग्री होते हुए भी उन्होंने फिल्मी दुनिया में जाने का फैसला किया।
विलेन बनकर फिल्मों में की एंट्री
विनोद खन्ना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे हैंडसम एक्टर्स में गिने जाते थे, लेकिन फिर भी करियर की शुरुआत उन्होंने हीरो नहीं, बल्कि विलेन के तौर पर की थी और अपने काम के लिए खूब प्रशंसा बटोरी।
हैंडसम विलेन बन खींचा ध्यान
विनोद खन्ना ने 1968 में 'मन का मीत' से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म में लीड हीरो सुनील दत्त थे। विनोद खन्ना ने इसके बाद 'आन मिलो सजना', 'पूरब और पश्चिम', 'मेरा गांव मेरा देश', 'एलान', 'सच्चा झूठा' और 'मस्ताना' जैसी फिल्मों में भी नेगेटिव रोल प्ले किया। इन फिल्मों के साथ उन्होंने डाकू के किरदार निभाने के लिए पहचान पाई।
डाकू बन किया राज
'मेरा गांव मेरा देश' में
विनोद खन्ना का रोल डाकू जब्बर सिंह इतना चर्चित हुआ कि बॉलीवुड में डाकुओं की कहानी का एक दौर आ गया। इनमें शोले के डाकू गब्बर सिंह का किरादर भी शामिल है। एक्टर ने खलनायक बनकर भी जबरदस्त शोहरत कमाई।
गुलजार ने बनाया हीरो
विनोद खन्ना पर गुलजार की नजर पड़ी और उन्होंने अपनी फिल्म मेरे अपने और अचानक में एक्टर को लीड रोल में साइन कर लिया। इन दोनों फिल्मों ने उनकी परफॉर्मेंस को काफी पसंद किया गया, खासकर अचानक में। विनोद खन्ना ने अपने करियर में रिस्क भी लिआ और कई ऑफबीट रोल निभाए। इनमें शौक (1976) उनकी यादगार फिल्म है।
करियर के पीक पर पहुंचे विनोद खन्ना
विनोद खन्ना ने 1971 से 1982 को बीच लगभग 47 मल्टी हीरो फिल्म में काम किया। इनमें 'एक और एक ग्यारह', 'हेरा फेरी', 'खून पसीना', 'अमर अकबर एंथोनी', 'जमीर', 'परवरिश' और 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी हिट फिल्में शामिल हैं।
'कुर्बानी' ने बनाया रातों- रात स्टार
विनोद खन्ना के करियर में 'कुर्बानी' एक ऐसी फिल्म है, जिसके लिए फैंस उन्हें आज भी याद करते हैं। इस फिल्म का मिलना भी एक्टर के लिए किस्मत की बात थी, क्योंकि पहले 'कुर्बानी', अमिताभ बच्चन को ऑफर हुई, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। इसके बाद ये विनोद खन्ना की झोली में जा गिरी और उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म बनी।
अमिताभ बच्चन को दे दिया अपना स्टारडम
स्टारडम के पीक पर बैठे विनोद खन्ना ने अचानक अध्यात्म के रास्ते पर चल पड़े। उन्होंने बॉलीवुड को अलविदा कहा, जिसका फायदा अमिताभ बच्चन को मिला और वो इंडस्ट्री के नए सुपरस्टार बनकर उभरे।यह भी पढ़ें-
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फिल्म इंडस्ट्री को कह दिया अलविदा
पैसा, ग्लैमर और शोहरत, विनोद खन्ना के पास ये सब था, लेकिन उनके दिमाग में आया अब आगे क्या ? मन की शांति की खोज में वो आध्यात्मिक गुरु ओशो की शरण में जा पहुंचे। शुरुआत में उन्होंने ओशो के पुणे स्थित आश्रम में जाना शुरू किया। फिर वो अपनी शूटिंग भी वहीं रखने लगे।
सन्यास का किया एलान
इसके बाद विनोद खन्ना ने एलान कर दिया कि वो फिल्म इंडस्ट्री से रिटायरमेंट ले रहे हैं, ताकि ओशो के साथ जाकर अमेरिका में उनके आश्रम में रह सकें। जब विनोद खन्ना ने इस बात की घोषणा की, तो किसी को भी उन पर यकीन नहीं हो हुआ था।
लग्जरी लाइफ छोड़ बने टॉयलेट क्लिनर
1982 में विनोद खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कहने के बाद अमेरिका में ओशो के बसाए शहर रजनीशपुरम में शरण ली। वहां, उन्होंने अपनी लग्जरी लाइफ से एकदम अलग दुनिया देखी। विनोद खन्ना ने ओशो के आश्रम में माली बनने लेकर बर्तन धोने और टॉयलेट साफ करने जैसे काम किए।
पांच सालों बाद की वापसी
ओशो के साथ पांच साल बिताने के बाद विनोद खन्ना ने फिल्म इंडस्ट्री में वापसी की। वो भी 'इंसाफ' और 'सत्यमेव जयते' जैसी दो हिट फिल्मों के साथ। हालांकि, विनोद खन्ना, ओशो को छोड़ खुश नहीं थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि बॉलीवुड में लौटना उनके लिए आसान था, लेकिन ओशो को छोड़ने का फैसला बेहद मुश्किल था। ओशो ने विनोद खन्ना को अपने पुणे आश्रम को चलाने का भी ऑफर दिया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और ये उनकी जिंदगी की सबसे मुश्किल न थी।
विनोद खन्ना ने जीते कई अवॉर्ड
राजनीति में बनाया करियर
विनोद खन्ना 1997 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। नेता से राजनेता बने विनोद खन्ना ने वहां भी अपनी काबिलियत साबित की। उन्होंने पंजाब के गुरदासपुर से चार बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। विनोद खन्ना अपने राजनीतिक करियर में केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्य मंत्री और विदेश मामलों के राज्य मंत्री के तौर भी काम किया।
विनोद खन्ना का निधन
विनोद खन्ना एडवांस ब्लैडर कैंसर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। डिहाइड्रेशन होने के कारण उन्हें मुंबई के गिरगांव में सर एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां कुछ हफ्तों के इलाज के बाद 27 अप्रैल, 2017 को उन्होंने जिंदगी को अलविदा कह दिया और हमेशा के लिए नींद की आगोश में चले गए।