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कितनी थी दारा सिंह की खुराक? कहानी एक ऐसे पहलवान की, जिसे अखाड़े में देखकर बड़े-बड़े रेस्लर्स के छूट जाते थे पसीने

दारा सिंह ने अपने करियर की शुरुआत 1952 में आई फिल्म संगदिल से की थी। ये उनकी डेब्यू फिल्म थी। साल 2007 में उन्होंने फिल्म ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का रोल किया था। दारा सिंह की हाइट और पर्सनैलिटी की वजह से हीरोइनें उनके साथ काम करने से डरती थीं। दारा सिंह को बचपन से ही कुश्ती का शौक था।

By Surabhi Shukla Edited By: Surabhi Shukla Updated: Thu, 11 Jul 2024 09:28 PM (IST)
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Dara Singh Unknown facts about his diet and life
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। पंजाबी और हिंदी फिल्मों के अभिनेता दारा सिंह अपनी पहलवानी और अभिनय के लिए आज भी याद किए जाते हैं। दारा सिंह ने रामायण में हनुमान का किरदार निभाया था। उन्हें बचपन से ही कुश्ती करने का शौक था।

19 नवंबर को पंजाब के अमृतसर धरमूचक गांव में बलवन्त कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर एक बेटे का जन्म हुआ। बेटे का नाम रखा गया दीदार सिंह रंधावा यानी दारा सिंह। मां ने स्कूल में दाखिला करवाया, लेकिन दादाजी को ये पसंद नहीं था कि दारा सिंह स्कूल जाएं। इस वजह से उन्होंने उनका स्कूल से नाम कटवा दिया।

मां ने पढ़ाई में की मदद

एक बार एक पंडित दारा सिंह के घर आए, जो उनकी मां के ही गांव से थे। उन्होंने दारा सिंह की मां बलवन्त कौर से कहा कि वो दारा सिंह को उनके साथ भेज दें। पंडित ने अपनी बात से मां को मनाया कि वो बच्चों को पढ़ाते हैं और उचित शिक्षा भी देते हैं। इस पर मां राजी हो गईं और किसी तरह से दादाजी को भी मना लिया। दारा सिंह ने जो भी पढ़ाई की वो इन पंडित के यहां पर की। एक समय ऐसा भी था, जब दारा सिंह अपने गांव मे उन चुनिंदा लोगों में से थे, जिन्हें पत्र पढ़ना आता था।

9 साल की उम्र में हो गई थी शादी

दारा सिंह की 9 साल की उम्र में शादी हो गई थी। हालांकि, उनकी पत्नी उम्र में उनसे बड़ी थीं। उम्र में बड़ी होने के कारण दारा सिंह की पत्नी उनसे ह्रष्ट-पुष्ट लगती थीं। वहीं, उनकी मां को लगता था कि बेटा बहू से कमजोर है। इस वजह से उन्होंने उन पर मेहनत करनी शुरू की। खेत में काम करने और मां के प्यार की वजह से दारा सिंह की डाइट काफी अच्छी हो गई थी। 17 साल की उम्र में वो एक बच्‍चे के पिता भी बन गए थे।

परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी भी बढ़ी। चाचा से जिद करके कुछ समय के लिए दारा सिंह सिंगापुर चले गए। वहां कुछ साथियों ने उनकी लंबाई-चौड़ाई को देखकर पहलवानी करने की सलाह दी।

कैसे कुश्ती चैंपियन बने दारा सिंह?

दारा सिंह ने वहीं से कुश्ती लड़ना शुरू किया और इन कुश्तियों से ही उनका रहने का खर्चा भी निकलने लगा। तीन साल में फ्री स्टाइल वर्ग में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी। वहीं पर उनकी पहली प्रोफेशनल कुश्ती इटली के पहलवान के साथ हुई। ये मुकाबला बराबरी पर रहा।

इसके लिए उन्हें 50 डॉलर मिले। यहीं पर रहते हुए दारा सिंह ने जाने माने पहलवान तारलोक सिंह को हराया। यहीं से उन्हें प्रसिद्धि हासिल हुई। इस कुश्ती में एलान किया गया था कि जो कुश्ती जीतेगा, वो पूरे मलेशिया का चैंपियन होगा। दारा सिंह मलेशिया के नए कुश्ती चैंपियन बन गए।

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दारा सिंह की पहलवानी के दांव-पेंच देख बड़े-बड़े पहलवानों के पसीने छूट जाते थे। उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में 200 किलो के किंग कॉन्ग को हरा कर इतिहास रच दिया था।

कितनी थी दारा सिंह की डाइट?

खुद दारा सिंह की आत्माकथा में भी इस बात का जिक्र है। दारा सिंह ने बताया कि वो एक दिन में 100 ग्राम शुद्ध घी, दो किलो दूध, 100 ग्राम बादाम की ठंडई, दो मुर्गे या आधा किलो बकरे का गोश्त, 100 ग्राम आंवले सेब या गाजर का मुरब्बा, 200 ग्राम मौसमी फल, दो टाइम चार रोटी, एक वक्त सब्जी और एक वक्त गोश्त खाते थे।

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