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Prithviraj Kapoor Birth Anniversary: कभी पंडित नेहरू को कहा ना, कभी झोली फैलाकर मांगे पैसे... ऐसे थे पृथ्वीराज कपूर

Prithviraj Kapoor Birth Anniversary कपूर खानदान की फ़िल्मी विरासत को शुरू करने वाले पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) आज ही के दिन यानी 3 नवंबर को जन्म लिया था। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ रोचक फैक्ट्स ...

By Rajat SinghEdited By: Updated: Tue, 03 Nov 2020 02:53 PM (IST)
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पृथ्वीराज कपूर ( फोटो क्रेडिट - फाइल ) .
नई दिल्ली, जेएनएन। Prithviraj Kapoor Birth Anniversary: फ़िल्म इंडस्ट्री की अगर बात की जाए, तो कपूर खानदान का नाम जरूर सामने आता है। राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने एक्टिंग या फ़िल्ममेकिंग की दुनिया में काम किया। लेकिन इन सबकी शुरुआत दिग्गज अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने की थी। कपूर खानदान की फ़िल्मी विरासत को शुरू करने वाले पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) ने आज ही के दिन यानी 3 नवंबर को जन्म लिया था। पाकिस्तान में पले-बढ़े पृथ्वीराज कपूर ने मुंबई में अपनी किस्तम आजमाई। खुद थिएटर खड़ा किया, फ़िल्में बनाई, एक्टिंग की। यहां, तक जब जरूरत हुई, झोली भी फैलाकर खड़े हो गए। अदाकारी की दुनिया में एक विरासत खड़ी की। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ फैक्ट्स-

पाकिस्तान में हुए पैदा, मुंबई कमाया नाम

पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर, 1906 में पाकिस्तान में हुआ था। उनके पिता पेशावर में पुलिस वाले थे। उस दौर में मात्र 17 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर की शादी हो गई थी। बहुत जल्दी वह तीन बच्चों के पिता बन गए। लेकिन बचपन से उन्हें एक्टिंग का शौक था, इसलिए वह सबको छोड़कर मुंबई आ गए। शुरुआती दौर में उन्होंने छोटे-छोटे रोल किए। 'सिनेमा गर्ल','आलम आरा', 'शेर ए पंजाब' जैसी फ़िल्मों में काम मिला लेकिन सफलता नहीं मिली।

पहली बोलती फ़िल्म का बने हिस्सा

शुरुआती दौर में पृथ्वीराज ने थिएटर्स में काम किया। इसके साथ वह मूक फ़िल्मों का भी हिस्सा बने। लेकिन साल 1931 में पहली हिंदी बोलती फ़िल्म आलम आरा बनी। जब सिनेमा आवाज़ मिली, तो उसे ज़ुबान देने के लिए पृथ्वीराज कपूर वहां मौजूद थे। मास्टर विट्ठल, ज़ुबैदा और पृथ्वीराज कपूर ने मुख्य भूमिका निभायी। फ़िल्म को देखने के लिए इतनी भीड़ जमा हो गई कि पुलिस बुलानी पड़ी।

थिएटर कंपनी के झोली फैलाकर मांगते थे पैसा

एक्टिंग के लगाव के चलते सन् 1931 में शेक्सपियर के नाटक पेश करने वाली 'ग्रांट एंडरसन थिएटर कंपनी' से  पृथ्वीराज कपूर जुड़ गए। इसके बाद पैसा जमा किया और 1944 में उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी पृथ्वी थिएटर की स्थापना में लगा दी। उनके पास इसको लेकर गज़ब का जुनून था। वह थिएटर कंपनी के लिए खुद ही झोली फैलाकर पैसा मांगते थे। इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान शो करने के बाद पृथ्वीराज खुद गेट पर खड़े होकर गमछा फैलाते थे और लोग उसमें पैसे डालते थे।

जब पंडित के निमंत्रण को किया ना

पृथ्वीराज कपूर उस दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी माने जाते थे। हालांकि, एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने नेहरू का निमंत्रण ठुकरा दिया। दरअसल, एक बार पीएम नेहरू ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। इस पर पृथ्वीराज कपूर ने इनकार कर दिया और कहा कि वह अपनी थिएटर टीम के साथ हैं। इसके बाद पंडित नेहरू ने पृथ्वी थिएटर की पूरी टीम के दावत पर बुलाया। ऐसे में पृथ्वीराज कपूर पूरी टीम के साथ पहुंचे।

इन फ़िल्मों के लिए किए जाएंगे याद

पहली बोलती फ़िल्म आलम आरा और 9 मूक फ़िल्मों समेत कई बार पर्दे पर पृथ्वीराज कपूर ने अपना जादू बिखेरा। लेकिन कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। ये फ़िल्में है-'विद्यापति' (1937), 'सिकंदर' (1941), 'दहेज' (1950), 'आवारा' (1951), 'जिंदगी' (1964), 'आसमान महल' (1965), 'तीन बहूरानियां' (1968) और मुगल-ए-आजम (1960)। पृथ्वीराज कपूर को पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया था। इसके अलावा उन्हें निधन के बाद से दादा साहब फाल्के अवॉर्ड भी दिया गया।