Interview: 'जब मैं पैदा हुई थी, तब मेरी बड़ी-बड़ी आंखें देखकर पापा को पता चल गया था कि मैं आर्टिस्ट बनूंगी'- वामिका गब्बी
अभिनेत्री वामिका गब्बी इन दिनों अपनी कई वेब सीरीज को लेकर सुर्खियों में हैं। दर्शक उनकी एक्टिंग को काफी पसंद कर रहे हैं। अब वामिका गब्बी अपने करियर को लेकर बड़ा बात कही है। साथ ही बताया है कि उन्हें बचपन से एक्टिंग करने का शौक था।
By Anand KashyapEdited By: Updated: Sun, 01 May 2022 12:32 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव। पंजाबी फिल्मों की नामचीन अभिनेत्री वामिका गब्बी हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज वेब सीरीज ‘माई’ में मूक बधिर के किरदार में नजर आईं। उनसे स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...
‘जब वी मेट’ में छोटे से किरदार से शुरुआत करने के बाद आप पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री की ओर बढ़ गईं। क्या तब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की तरफ फोकस नहीं था?
हां, कह सकते हैं और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में बहुत ज्यादा जानती भी नहीं थी। अब इतना अनुभव लेने के बाद मैं हिंदी सिनेमा में दोबारा काम कर रही हूं। मैंने अभिनय के क्राफ्ट को और पालिश किया। मैं चंडीगढ़ से आई थी, मेरे लिए यहां काम करने से पहले अनुभव लेना जरूरी था।
‘माई’ में आपके किरदार में कई परतें दिखीं। आप ‘हीरा मंडी’ भी कर रही हैं...
‘हीरा मंडी’ पर अभी कमेंट नहीं करूंगी, लेकिन ‘माई’ को मिल रही प्रतिक्रियाओं को लेकर बहुत खुश हूं। इस साल मेरा बहुत सारा काम रिलीज होगा। काम करते वक्त पता नहीं होता कि लोग प्रोजेक्ट को कितना पसंद करेंगे। मेरे लिए सबसे बड़ी सराहना यही होती है कि मेरे परिवार और माता-पिता को काम अच्छा लग रहा है या नहीं। माता-पिता मेरे काम के आलोचक भी हैं, उन्हें कुछ पसंद नहीं आता है तो वो स्पष्ट बोल देते हैं।
‘माई’ से जुड़ने की कहानी क्या रही?
कोरोना महामारी से पहले ही मैंने ‘माई’ का आडिशन दे दिया था। लाकडाउन के चलते मेरे पास खुद पर काम करने का बहुत वक्त था। दरअसल, मैं अभिनय सीखकर नहीं आई हूं, जो भी करती हूं वह भीतर से निकलता है। मुझे इसमें साक्षी तंवर के साथ काम करने का मौका मिला। मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं। मम्मी, दादी, चाची सब साथ बैठकर उनके शो देखते थे। मेरे घरवालों के लिए बहुत बड़ी बात थी कि मैं उनके साथ काम कर रही थी।
आपने शो में साइन लैंग्वेज में बातचीत की है। वह अनुभव कैसा रहा?
मैं बहुत नर्वस थी। मैंने निर्देशक से पूछा कि आपको क्यों लगता है कि मैं साइन लैंग्वेज में बात कर पाऊंगी। उन्होंने कहा ज्यादा मत सोचो, जो तुम्हारा किरदार महसूस कर रहा है, उस पर ध्यान दो। वही हुआ, जब तक हमने शूटिंग शुरू की, मैंने साइन लैंग्वेज की क्लासेज ले ली थीं। मैंने मूक लोगों के यूट्यूब वीडियोज देखे और वास्तविक लोगों को देखकर सीखा। ऐसे किरदार हर बार करने का मौका नहीं मिलता। तमाम कलाकार इसके लिए तरसते हैं। मैं इस साल जितना भी काम कर रही हूं, सब अलग है। लकी महसूस करती हूं, क्योंकि मेरा कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है, फिर भी वह काम कर रही हूं, जो शायद दूसरे कलाकारों को नहीं मिल रहा है।
आपने कब सोचा कि आर्टिस्ट बनना है?
बचपन से ही। पापा बताते हैं कि जब मैं पैदा हुई थी, तब मेरी बड़ी-बड़ी आंखें देखकर उन्हें पता चल गया था कि मैं आर्टिस्ट बनूंगी। मुझे बचपन से ही डांस का शौक था, पापा मुझे अलग-अलग नाटक दिखाने ले जाते थे। बचपन से ही मैं स्टेज की दुनिया में रही हूं। उसने मुझे बहुत प्रभावित किया, इसलिए कभी कुछ और सोचा ही नहीं।अब तक के अनुभवों से फिल्म इंडस्ट्री को कितना समझा है?
मैं पहले यह सब कैलकुलेशन करती रहती थी। अब जिंदगी को आनंद से जीने के बारे में सोचती हूं। मैं सेट पर इस जोन में नहीं रहती कि मैं एक्टर हूं तो मुझे ये चाहिए, वो चाहिए। लोग पूछते हैं कि आप खुद को पांच साल बाद कहां देखती हैं। मैं यही कहती हूं कि मैं आज में जीती हूं। कोरोना काल ने सिखा दिया है कि जीवन में कुछ भी हो सकता है। कोशिश यही है कि अच्छे लोगों के साथ वक्त बिताऊं। गलत लोगों के साथ समय न बर्बाद न करूं।