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Interview: फूलन देवी ने बैंडिट क्वीन देखकर कहा था कि मुझे लगा फिल्म में गाने होंगे- शेखर कपूर

डकैत से सांसद बनी फूलन देवी की कहानी पर्दे पर आज से 25 साल पहले शेखर कपूर फिल्म बैंडिट क्वीन के जरिए लेकर आए थे। यह वह वक्त था जब फार्मूला फिल्मों का जमाना था। उससे अलग शेखर कपूर ने नए कलाकारों के साथ लीक से हटकर फिल्म बनाई थी।

By Anand KashyapEdited By: Updated: Mon, 25 Jan 2021 04:44 PM (IST)
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निर्देशक शेखर कपूर , Instagram : shekharkapur
प्रियंका सिंह । डकैत से सांसद बनी फूलन देवी की कहानी पर्दे पर आज से 25 साल पहले शेखर कपूर फिल्म बैंडिट क्वीन के जरिए लेकर आए थे। यह वह वक्त था, जब फार्मूला फिल्मों का जमाना था। उससे अलग शेखर कपूर ने नए कलाकारों के साथ लीक से हटकर फिल्म बनाई थी। 26 जनवरी, 1996 को रिलीज यह फिल्म आज भी विस्मरणीय है। फिल्म से जुड़े अनुभवों को शेखर कपूर ने साझा किया :

फूलन देवी की कहानी को फिल्म के जरिए बयां करने के बारे में कैसे सोचा?

यह मेरा ख्याल नहीं था, विदेशी टेलीविजन चैनल 4 के लोग चाहते थे कि वह फूलन देवी की डॉक्यूमेंट्री बनाएं। मैंने कहा कि मुझे डॉक्यूमेंट्री बनानी नहीं आती है। अगर आप फीचर फिल्म बनाने के बारे में सोचे, तो मैं कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि बजट सिर्फ डॉक्यूमेंट्री का है। मैंने कहा कि इसी बजट में मैं फीचर फिल्म बनाकर दे दूंगा।

यह फिल्म इंडियाज बैंडिट क्वीन : द ट्रू स्टोरी ऑफ फूलन देवी नामक किताब पर आधारित थी। फिल्म के सिलसिले में आपने फूलन देवी से मिलने की कोशिश नहीं की थी?

फूलन देवी उस वक्त जेल में थीं। मैंने उनसे मिलने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन इजाजत नहीं मिली। यह किताब हमारी फिल्म के लिए ही लिखी गई थी। किताब की लेखिका माला सेन कई बार फूलन से मिली थीं। उस आधार पर उन्होंने किताब लिखी और हमने फिल्म बनाई।

आपने जब फूलन देवी को फिल्म दिखाई थी, तब उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?

फूलन जब जेल से बाहर निकलीं, तब मेरी उनसे तीन-चार बार मुलाकात हुई थी। पहली बार जब उन्होंने फिल्म देखी तो कहा कि मैंने आपकी मासूम और मिस्टर इंडिया फिल्म देखी है, मुझे लगा कि इस फिल्म में गाने भी होंगे, लेकिन यह अलग फिल्म है।

सीमा विश्वास को फूलन देवी के किरदार के लिए कैसे कास्ट किया? तिग्मांशु धूलिया ने फिल्म की कास्टिंग की थी, कास्टिंग का ट्रेंड तब नया था...

पूरी फिल्म की कास्टिंग दिल्ली में हुई थी। फिल्म के निर्माता बॉबी बेदी दिल्ली के ही थे। मैं चाह रहा था नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और थिएटर के ही एक्टर इस फिल्म में हों। बड़े एक्टर को फिल्म में न लेने की वजह यह थी कि फिर फिल्म उनकी हो जाती है। तिग्मांशु खुद थिएटर से रहे हैं, उनसे बेहतर कास्टिंग कोई नहीं कर सकता था। मैंने सीमा को थिएटर में देखा था। तिग्मांशु ने ही उनका नाटक देखने कि लिए बुलाया था। उनसे दो-तीन बार मुलाकात हुई, उनकी तस्वीरें भी लीं। मैंने उन्हें बताया था कि फिल्म में कई ऐसे सीन्स हैं, जिनमें आपको मुश्किलात होंगी, इसलिए सोचकर जवाब दीजिए। उन्होंने तभी कहा कि मैं यह फिल्म करना चाहूंगी। लोकेशन पर जब हम शूट कर रहे थे, तब तिग्मांशु ने वहां के लोकल थिएटर ग्रुप्स के एक्टर भी गांव-गांव जाकर ढूंढे थे।

आपने सेट की बजाय चंबल के बीहड़ में शूटिंग की। वह भी दिन के उस समय जब सूर्य की रोशनी सीधे सिर पर पड़ती है?

मैंने बैंडिट क्वीन दिल से बनाई थी। मैं चाह रहा था कि एक वास्तविक फिल्म बनें। फिल्म के जरिए वहां की धरती की गर्मी दर्शकों को महसूस करवाना चाह रहा था। सूर्य जब चढ़ जाता है, तो उसकी गर्मी शरीर पर लगती है, वह दिखाना था। फिल्म देखें तो कलाकारों के आंखों के नीचे वह अंधेरा नजर आता है। हालांकि गर्मी में शूट करना कैमरामैन, एक्टर सबसे के लिए मुश्किल था। लेकिन उसकी वजह से फिल्म में वह इफेक्ट आया था कि वहां कि धरती कितनी गर्म है। अगर बीहड़ का माहौल, किरदार जैसे दिखने वाले कलाकार और मेरे साथ सिनेमेटोग्राफर अशोक मेहता न होते तो वह फिल्म न बन पाती। बीहड़ अपने आप में कहानी समेटे हुए था।

फिल्म के कुछ ऐसे हिस्से थे, जो फूलन देवी के उस दर्द को बयां करते हैं, जिसे पर्दे पर देखना आसान नहीं था। उन दृश्यों को फिल्माते वक्त क्या बतौर निर्देशक आप पर कोई असर रह गया?

बिल्कुल रह गया था। मैं पंजाब से आया हूं, मर्दानगी का एक वजन होता है। वह वजन मैं समझ गया था, जब फूलन की कहानी पढ़ी थी। हमको बचपन से सिखाया जाता है कि मर्द फलां तरीके के होते हैं। कुछ ऐसे दृश्य थे, जो शूट करने में मुझे दिक्कत हो रही थी। मेरे कैमरामैन अशोक ने कहा कि अब यह फिल्म बनाने की जिम्मेदारी ले ली है, तो इसे पूरा करना पड़ेगा। मैं उनसे कहता था कि मैं कुछ सीन शूट नहीं कर पाऊंगा, लेकिन अशोक का काफी सहारा था। कई बार मैं पीछे हट जाता था, वह कहते थे कि तुमने कहा था कि इस सीन को ऐसे ही शूट करना है, अब करो।

फिल्म को ऑस्कर के लिए चुना गया था, लेकिन रिलीज न हो पाने की वजह से वह ऑस्कर के नॉमिनेशन में नहीं पहुंची थी। क्या उसका मलाल है?

अगर ऑस्कर अवॉर्ड मिल जाता तो अच्छा होता, लेकिन फिल्म अच्छी थी, जिसने लोगों को प्रभावित किया था। भारतीय सिनेमा के लिए अलग तरह की फिल्म थी, तो कोई मलाल नहीं है। उसके बाद मेरी एलिथाबेथ फिल्म ऑस्कर के लिए गई थी, जिसने अवॉर्ड जीते। फिर भी मेरी बेहतरीन फिल्म बैंडिट क्वीन ही है। जब फिल्म को लेकर कोर्ट केस हुआ था, तो बहुत बुरा भी लगता था। लोग कहते थे कि फिल्म झूठ है। मैं सह लेता था, क्योंकि पता था कि फिल्म सच्चे तरीके से बनाई थी। अब लोग कहते हैं कि इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा का रवैया बदला है। मुझे इसके लिए नेशनल अवॉर्ड मिला। इस फिल्म से जुड़ी जो यादें हैं, वह अवॉर्ड से कहीं ज्यादा बड़ी हैं। आजकल बॉलीवुड में फिल्म नहीं प्रोजेक्ट बनते हैं। मेरे लिए यह फिल्म कोई प्रोजेक्ट नहीं थी।