जब हाथ मिला लेते हैं दिमाग के दबंग, तब बनती है ब्लॉकबस्टर फिल्में...
नो टाइम फार लव सनम तेरी कसम सहित कई फिल्मों का निर्देशन किया है। विनय बताते हैं ‘कहानी के मामले में राधिका जी बेहतर हैं वह काम वो करती हैं स्क्रीनप्ले मैं करता हूं और डायलाग हम दोनों मिलकर लिखते हैं।
By Priti KushwahaEdited By: Updated: Fri, 09 Dec 2022 12:38 PM (IST)
मुंबई। दो बेहतरीन दिमाग मिल जाएं तो परिणाम जबर्दस्त ही होगा, निर्देशन में ऐसा ही प्रयोग कर शानदार फिल्में दी हैं अब्बास-मस्तान, राज एंड डीके, गायत्री और पुष्कर समेत कई जोड़ियों ने। आज प्रदर्शित हो रही फिल्म वध को जसपाल सिंह संधू व राजीव बरनवाल की जोड़ी ने निर्देशित किया है। आगामी दिनों में योद्धा और यारियां 2 समेत कई फिल्में आएंगी, जिनकी बागडोर निर्देशक जोड़ियों ने संभाली है। मिलकर निर्देशन के फायदों व चुनौतियों की पड़ताल कर रहे हैं दीपेश पांडेय...
पिछली सदी के पांचवें, छठवें और सातवें दशक में आर कृष्णन और एस पंजू की निर्देशक जोड़ी कृष्णन पंजू के नाम से प्रख्यात हुई। इस जोड़ी ने तमिल और तेलुगु फिल्मों के साथ हिंदी में भाभी (1957), बरखा (1959), लाडला (1966) और शानदार (1974) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया था। रामसे बंधुओं श्याम रामसे और तुलसी रामसे की निर्देशक जोड़ी ने दरवाजा (1978), पुराना मंदिर (1984), वीराना (1988) और बंद दरवाजा (1990) जैसी कई मनोरंजक हारर फिल्मों का निर्देशन किया। इसी बीच दिनेश-रमणेश के नाम से प्रख्यात एच दिनेश और रमणेश पुरी की निर्देशक जोड़ी ने रफ्तार (1975), आखिरी कसम (1979) और तेजा (1990) फिल्मों का निर्देशन किया। अब्बास-मस्तान की निर्देशक जोड़ी ने खिलाड़ी, बाजीगर, ऐतराज और रेस समेत कई हिट फिल्में दी। आगामी दिनों में सागर अंब्रे और पुष्कर ओझा की निर्देशक जोड़ी की फिल्म योद्धा, राधिका राव और विनय सप्रू की जोड़ी निर्देशित यारियां 2 और राज एंड डीके निर्देशित गो गोवा गान 2 सिनेमाघरों में आएंगी। अब्बास-मस्तान की जोड़ी हो या पुष्कर-गायत्री की या फिर राज एंड डीके की, अिधकांश जोड़ियां पेशेवर जीवन के शुरुआती दौर से ही बनी हैं।
लेखन से निर्देशन तक साथ
निर्देशन के साथ कई जोड़ियां पटकथा और संवाद लेखन का काम भी मिलकर करती हैं। फिल्म वध को जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल की जोड़ी ने निर्देशित किया है। जसपाल कहते हैं, ‘राजीव से मेरी मुलाकात बतौर लेखक हुई थी। हमने साथ में एक फिल्म लिखी थी, जिसे नाना पाटेकर साथ करने वाले थे, लेकिन किन्हीं कारणों से वह फिल्म नहीं बन पाई। फिर वध फिल्म का विचार आया। हम दोनों साथ ही लिखते हैं। हमने तय किया कि साथ में ही निर्देशित करते हैं।’ इस संदर्भ में राज निदिमोरू कहते हैं, ‘हमारी सोच एक-दूसरे से मिलती है। फिर भी रचनात्मक मतभेद तो होते ही रहते हैं। हम दोनों मिलकर लिखते हैं तो 90 प्रतिशत मतभेद लेखन के स्तर पर ही निपट जाते हैं।’दोहरे फायदे
निर्देशक जोड़ियों के साथ काम करते हुए निर्माता और टीम को दो रचनात्मक लोग मिलते हैं। विनय सप्रू कहते हैं, ‘निर्देशक जोड़ी में प्रत्येक की अपनी विशेषताएं होती हैं, जिनका लाभ काम में दिखता है। किसी एक की अनुपस्थिित में निर्माता और टीम के लिए उसी जवाबदेही और जिम्मेदारी के साथ दूसरा व्यक्ति उपलब्ध होता है।’ इस विषय में कृष्णा डीके कहते हैं, ‘फिल्म निर्माण पूरी टीम का काम होता है। अगर दो लोग मिलकर एक ही दिशा में काम कर रहे हैं तो भी उनके विचारों में कुछ अंतर होता ही है। दोनों अपने-अपने विचारों को मिलाकर एक बेहतर परिणाम की तरफ काम कर सकते हैं। ऐसे में वह अंतर उनके लिए कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बन जाता है।’
कलाकारों के लिए भी सहजता
अगर निर्देशक जोड़ियों के बीच अच्छा तालमेल है तो उनके साथ काम करना कलाकारों के लिए भी सहज होता है। राज एंड डीके निर्देशित फिल्म अ जेंटलमैन में काम करने के बाद अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा फिल्म योद्धा में सागर अंब्रे और पुष्कर ओझा की निर्देशक जोड़ी के साथ काम कर रहे हैं। वह बताते हैं, ‘मेरी फिल्म अ जेंटलमैन में राज और डीके की जोड़ी थी। उसके बाद योद्धा से सागर और पुष्कर की निर्देशक जोड़ी डेब्यू कर रही है। जब फिल्म में एक निर्देशक होता है तो सब कुछ सिर्फ उस पर निर्भर करता है। दो निर्देशक होने पर उनकी अपनी एक टीम बन जाती है। इससे दोनों एक साथ अलग-अलग विभाग देख सकते हैं। बतौर कलाकार दोनों से आपको अलग-अलग राय मिलती है और बेहतर काम सामने आता है।’साथ से सफर हुआ आसान
राज निदिमोरू और कृष्णा डीकेकी जोड़ी ने शोर इन द सिटी, गो गोवा गान और वेब सीरीज द फैमिली मैन समेत कई प्रोजेक्ट का निर्देशन किया है। गो गोवा गान 2 पर दोनों काम कर रहे हैं। राज निदिमोरू बताते हैं, ‘हम कालेज से ही दोस्त हैं। हम दोनों ने एक साथ ही शार्ट फिल्मों के निर्माण से अपना सफर शुरू किया था। हमारा इस फिल्म इंडस्ट्री से कोई नाता नहीं था। हमने अपने अनुभवों के आधार पर फिल्म निर्माण सीखा। हमें एक-दूसरे से सीखना पड़ा। पटकथा लिखनी हो या निर्देशन करना, हम दोनों ने साथ-साथ ही किया। हम दोनों एक दूसरे के साथ रहे, इसलिए यह सफर थोड़ा आसान लगा।’