जवाहरलाल नेहरू को ‘ना’ कहने की हिम्मत रखते थे Prithviraj Kapoor, ठुकरा दी थी ये पेशकश
Prithviraj Kapoor death anniversary Prithviraj Kapoor की पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको बताते हैं उनकी जिंदगी जुड़ी कुछ अनसुनी बातें।
By Nazneen AhmedEdited By: Updated: Wed, 29 May 2019 04:05 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। कपूर खानदान की फिल्मी विरासत को शुरू करने वाले पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) आज ही के दिन यानी 29 मई को इस दुनिया से अलविदा कह गए थे। 29 मई 1971 में पृथ्वीराज कपूर का निधन हो गया था। उनका जन्म 3 नवंबर, 1906 में पाकिस्तान में हुआ था। पृथ्वीराज कपूर एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने कपूर खानदान में एक्टिंग को जन्म दिया। रौबदार आवाज और कड़क स्वभाव वाले पृथ्वीराज ने अपने अभिनय से लोगों के दिलों पर ऐसी छाप छोड़ी की उन्हें आज भी याद किया जाता है। उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको बताते हैं उनकी जिंदगी जुड़ी कुछ अनसुनी बातें।
पृथ्वीराज को बचपन से था एक्टिंग शौक
मात्र 17 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर की शादी हो गई थी। छोटी उम्र में ही वो तीन बच्चों के पिता बन गए थे। चूंकि, पृथ्वीदराज को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था इसलिए वो सबको छोड़कर मुंबई आ गये। करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने कई फिल्मों में कुछ छोटे मोटे रोल किए। जैसे, 'सिनेमा गर्ल','आलम आरा', ''शेर ए पंजाब'। लेकिन उन्हें वो सफलता नहीं मिली। थिएटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे
पृथ्वीराज को थिएटर से बेहद लगाव था। इसलिए 1931 में वो शेक्सीपीयर के नाटक पेश करनेवाली ग्रांट एंडरसन थियेटर कंपनी से जुड़ गये। इसके बाद 1944 में उन्होंने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। कहा जाता है कि थिएटर से पृथ्वीराज को ऐसा लगाव था कि वो प्ले खत्म होने के बाद वो थिएटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे और दर्शक उनके अभिनय से खुश होकर कुछ पैसे उसमें डाला करते थे।
मात्र 17 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर की शादी हो गई थी। छोटी उम्र में ही वो तीन बच्चों के पिता बन गए थे। चूंकि, पृथ्वीदराज को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था इसलिए वो सबको छोड़कर मुंबई आ गये। करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने कई फिल्मों में कुछ छोटे मोटे रोल किए। जैसे, 'सिनेमा गर्ल','आलम आरा', ''शेर ए पंजाब'। लेकिन उन्हें वो सफलता नहीं मिली। थिएटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे
पृथ्वीराज को थिएटर से बेहद लगाव था। इसलिए 1931 में वो शेक्सीपीयर के नाटक पेश करनेवाली ग्रांट एंडरसन थियेटर कंपनी से जुड़ गये। इसके बाद 1944 में उन्होंने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की। कहा जाता है कि थिएटर से पृथ्वीराज को ऐसा लगाव था कि वो प्ले खत्म होने के बाद वो थिएटर के बाहर झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे और दर्शक उनके अभिनय से खुश होकर कुछ पैसे उसमें डाला करते थे।
जवाहरलाल नेहरू के थे करीब, लेकिन...
पृथ्वीराज एक ऐसे अभिनेता थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी माने जाते थे। वो न केवल कट्टर कांग्रेसी थे बल्कि पंडित नेहरू के समर्थक और विश्वासपात्र भी थे। हालांकि एक ऐसा वक्त भी आया जब पृथ्वीराज ने जवाहरलाल नेहरू से मिलने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल, एक बार पंडित नेहरू ने पृथ्वीराज कपूर को मिलने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की वह अपनी थिएटर टीम के साथ हैं। पंडित नेहरू, पृथ्वीराज की इस बात का इशारा समझ गए। इसके बाद उन्होंने पृथ्वी थिएटर की पूरी टीम को अपने यहां दावत के लिए बुलाया। पृथ्वीराज भी अपनी पूरी टीम के साथ खुशी-खुशी जवाहरलाल नेहरू के घर पहुंचे। फिल्म इंडस्ट्री को दीं ये यादगार फिल्में
'विद्यापति' (1937), 'सिकंदर' (1941), 'दहेज' (1950), 'आवारा' (1951), 'जिंदगी' (1964), 'आसमान महल' (1965), 'तीन बहूरानियां' (1968) पृथ्वीराज की वो फिल्में हैं जिन्हें उनकी दमदार एक्टिंग ने यादगार बना दिया। 1969 में पृथ्वी'राज कपूर को पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मािनित भी किया गया था। उनके निधन के बाद उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्काफर से भी नवाजा गया।
ये भी पढ़ें : ससुर Veeru Devgan के निधन के बाद अब बिगड़ी काजोल की मां Tanuja की तबीयत
पृथ्वीराज एक ऐसे अभिनेता थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के करीबी माने जाते थे। वो न केवल कट्टर कांग्रेसी थे बल्कि पंडित नेहरू के समर्थक और विश्वासपात्र भी थे। हालांकि एक ऐसा वक्त भी आया जब पृथ्वीराज ने जवाहरलाल नेहरू से मिलने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल, एक बार पंडित नेहरू ने पृथ्वीराज कपूर को मिलने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की वह अपनी थिएटर टीम के साथ हैं। पंडित नेहरू, पृथ्वीराज की इस बात का इशारा समझ गए। इसके बाद उन्होंने पृथ्वी थिएटर की पूरी टीम को अपने यहां दावत के लिए बुलाया। पृथ्वीराज भी अपनी पूरी टीम के साथ खुशी-खुशी जवाहरलाल नेहरू के घर पहुंचे। फिल्म इंडस्ट्री को दीं ये यादगार फिल्में
'विद्यापति' (1937), 'सिकंदर' (1941), 'दहेज' (1950), 'आवारा' (1951), 'जिंदगी' (1964), 'आसमान महल' (1965), 'तीन बहूरानियां' (1968) पृथ्वीराज की वो फिल्में हैं जिन्हें उनकी दमदार एक्टिंग ने यादगार बना दिया। 1969 में पृथ्वी'राज कपूर को पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मािनित भी किया गया था। उनके निधन के बाद उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्काफर से भी नवाजा गया।
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