जब चुनाव लड़ने के बाद राजेश खन्ना ने लिया था ये फैसला, अमिताभ बच्चन ने इस बड़े कारण से पॉलिटिक्स से किया था किनारा
फिल्मी सितारे जब चमचमाती गाड़ियों से उतरते हैं तो उनसे मिलने वालों की भीड़ पहुंच जाती है। किसी को सेल्फी चाहिए. तो कोई हाथ मिलाकर खुश है। मगर राजनीति में सिर्फ चमक काम नहीं आती यहां तो काम बोलता है। कई उदाहरण हैं जहां राजनीति की लपट में हाथ जला चुके हैं फिल्म जगत के सितारे। ऐसे सितारों पर बात करतीं स्मिता श्रीवास्तव का आलेख...
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद विपत्ति में सच्चे साथी की तरह बालीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने अपने दोस्त राजीव गांधी का साथ दिया था। उस साल आम चुनाव की घोषणा के बाद राजनीति में तजुर्बेकार हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से अमिताभ बच्चन के चुनाव लड़ने का प्रस्ताव अरूण नेहरू ने प्रस्तावित किया था।
'जंजीर' का यह अभिनेता अपने दोस्त का साथ निभाने का निर्णय ले चुका था। अमिताभ के चुनाव लड़ने से उनकी मां तेजी और पत्नी जया खुश थीं, लेकिन पिता हरिवंशराय बच्चन आशंकित थे। उन्हें लग रहा था कि बेटा गलती करने जा रहा है। उनकी आशंका बाद में निर्मूल साबित नहीं हुई। चुनाव में भारी जीत अर्जित करने के बाद अमिताभ अभिनेता के साथ नेता भी बन चुके थे। उस समय 'मर्द' सहित उनकी कई फिल्में हिट रहीं, लेकिन वो राजनीति से दूर होते जा रहे थे।
अमिताभ ने इस कारण छोड़ी थी राजनीति
राजीव गांधी के साथ बोफोर्स घोटाले के आरोपों में अमिताभ भी दागदार हो गए। यह दबाव अमिताभ झेल नहीं पाए और उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। फिर किसी पार्टी के हाथ में हाथ नहीं दिया। उनके अलावा भी कई कलाकारों ने राजनीति में अपना भाग्य आजमाया, लेकिन सिनेमा की तरह अपनी चमक नहीं बिखेर सके और राजनीति को अलविदा कह दिया।रास न आया राजनीति का अखाड़ा
बालीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने कांग्रेस की तरफ से साल 1991 का लोकसभा चुनाव भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ लड़ा था। इसमें 'आनंद' अभिनेता हार गए। आडवाणी ने गांधी नगर से भी चुनाव लड़ा था। ऐसे में उन्होंने नई दिल्ली की सीट छोड़ दी थी। उपचुनाव में राजेश को दूसरा मौका मिला। उनके स्टारडम का जलवा दिखा और वे सांसद बन गए।उपचुनाव में उनके सामने भाजपा के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा थे। 1996 में बीजेपी के उम्मीदवार जगमोहन से हारने के बाद राजेश कांग्रेस के लोकप्रिय प्रचारक रहे, मगर उन्हें पार्टी की ओर से कोई पद नहीं मिला। लिहाजा, उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली।
पर्दे पर खलनायकों को धूल चटाने वाले हिंदी सिनेमा के हीमैन धर्मेंद्र ने साल 2004 में राजस्थान की बीकानेर सीट से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता था। हालांकि राजनीति उन्हें रास नहीं आई। उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। साल 2019 में उनके बेटे सनी देओल भाजपा के ही टिकट पर पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट से जीते थे। इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला है।