Ramsay Brothers: भूतिया कहानी बनाने वाले 7 भाइयों का कुनबा, कार में बैठी 'चुड़ैल' से सीखा था हॉरर का हुनर
हॉरर कॉन्सेप्ट पर फिल्में बनाना आसान नहीं होता। इसकी कहानी ऐसी गढ़नी होती है कि देखने वाले को मजा भी आए और रूह भी कांप जाए। फिल्म इंडस्ट्री में कई तरह की भूतिया कहानियां बनी हैं। 70-80 के दशक की जेनरेशन को कभी न भूलने वाली हॉरर स्टोरीज का श्रेय जाता है उन भाइयों को जिन्होंने लीक से हटकर ऐसी कहानियां दी कि एंटरटेनमेंट के साथ खौफ भी बना रहे।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Ramsay Brothers: बॉलीवुड, हॉलीवुड, टेलीविजन और ओटीटी पर इन दिनों कई हॉरर और सुपरनेचुरल शो अवेलेबल हैं, जिसमें डर का लेवल कहानी के हिसाब से रहता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद हिंदी सिनेमा में भूतिया कहानियों को शुरू किसने किया।
'रामसे' को बनाया हॉरर का ब्रैंड
70-80 और फिर 90 के दशक में जहां रुपहले पर्दे पर एक्शन और रोमांस वाली फिल्मों का चलन तेज था, उस दौर में रामसे ब्रदर्स लोगों को भूतों की दुनिया में लेकर गए थे। उन्होंने पर्दे पर ऐसा खौफ बिखेरा कि वो इस जॉनर के मास्टर बन गए। अपने दौर में रामसे ब्रदर्स ने करीब 45 फिल्में बनाईं। इन भाइयों की कलाकारी पर्दे पर ऐसी हिट हुई कि 'रामसे' ही हॉरर ब्रांड बन गया।
आज की जेनरेशन ने 'स्त्री', 'भूल भुलैया', 'कौन' जैसी फिल्मों की कहानी देखी है, जिसे या तो पूरी तरह से हॉरर या हॉरर-कॉमेडी माना जाता है। लेकिन अगर आप पुरानी और डरावनी फिल्मों व सीरियल को देखने के शौकीन हैं, तो भूत की आहट से रोंगटे खड़े करने वाली 'रामसे' ब्रदर्स की कहानियां जरूर देखी होंगी।
हॉरर फिल्मों के किंग रामसे ब्रदर्स का कुनबा
70 और 80 के दशक में हॉरर फिल्मों से सिल्वर स्क्रीन की दुनिया पर डर बिखरने वाले रामसे ब्रदर्स सात भाई थे। इनमें तुलसी रामसे सबसे बड़े थे। इसके बाद क्रम में श्याम रामसे, गंगू रामसे, कुमार रामसे, केशु रामसे, किरण रामसे और अर्जुन रामसे का नाम है। हर भाई फिल्ममेकिंग से जुड़ी किसी न किसी एक चीज का एक्सपर्ट था और सबने एक-एक डिपार्टमेंट संभाल रखे थे। किसी ने राइटर की कमान संभाली, तो कोई एडिटर, प्रोड्यूसर बन गया।देश के बंटवारे से पहले रामसे, रामसिंघानी हुआ करते थे, जो कराची और लाहौर में इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाते थे। पिता का नाम फतेहचंद रामसिंघानी था। क्योंकि फतेहचंद रामसिंघानी का नाम लेने में अंग्रेज़ों को दिक्कत होती थी इसलिए उन्होंने रामसे नाम दे दिया। विभाजन के बाद जब परिवार मुंबई आया, तो हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाई। वह 'शहीद-ए-आजम भगत सिंह', 'रुस्तम सोहराब' और 'एक नन्ही मुन्नी लड़की थी' से शो बिजनेस में उतरे। फिल्में फ्लॉप रहीं और रामसे ब्रदर्स कर्जे में दब गए, लेकिन फिल्में बनाने का उनका जज्बा कायम रहा।
रामसे ब्रदर्स ने जब हॉरर फिल्ममेकिंग की तरफ रुख मोड़ा, तो उनकी मूवी 'दो गज जमीन के नीचे' थी। ये फिल्म 40 दिन और साढ़े तीन लाख में बनकर तैयार हुई थी। फिल्म की शूटिंग महाबलेश्वर में हुई थी। कहा जाता है कि एक्टर्स के लिए कोई कपड़े नहीं डिजाइन करवाए गए थे, बल्कि वह खुद के कपड़े पहनते थे।