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Who Is Nambi Narayanan: जानिए कौन हैं नंबी नारायणन, जिन्होंने जासूसी के आरोप में काटी जेल, फिर सरकार को देना पड़ा पद्म भूषण

Nambi Narayanan आर माधवन की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म रॉकेट्री द नंबी इफेक्ट को लेकर इन दिनों मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। जोकि जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है लेकिन क्या आप जानते है ये इसरो साइंटिस्ट हैं कौन जिन पर माधवन ने फिल्म बनाई है ?

By Vaishali ChandraEdited By: Updated: Fri, 01 Jul 2022 09:51 AM (IST)
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Film on ISRO Scientist Nambi Narayanan, Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। अभिनेता आर माधवन की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट' जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है, जिसे लेकर एक्टर आजकल खूब चर्चाओं में बने हुए हैं। 'रॉकेट्री' इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन के जीवन पर आधारित एक बायोग्राफिकल ड्रामा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिक नंबी नारायणन हैं कौन ? जिनकी लाइफ से माधवन इतने इंस्पायर हुए कि उन्होंने इस पर फिल्म बनाने का फैसला लिया। चलिए हम आपको बताते हैं नंबी नारायणन की इंस्पायरिंग और ड्रामैटिक जर्नी के बारे में...

नंबी नारायणन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर थे, जिन्हें जासूसी के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि, बाद में उन पर लगाए गए सारे आरोप झूठे साबित हुए और सरकार को उन्हें हर्जाना भी देना पड़ा।

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जीती नासा (NASA) की फेलोशिप

एस. नंबी नारायणन का जन्म 12 दिसंबर 1941 को एक तमिल फैमिली में हुआ। उन्होंने नागरकोल के डीवीडी स्कूल से अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी की। इसके बाद मेधावी छात्र नंबी ने केरला के तिरुवनंतपुरम के इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक की डिग्री ली। 1969 में नारायणन ने नासा की एक प्रतिष्ठित फेलोशिप जीती, जिसके बाद वे पढ़ाई करने के लिए अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी चले गए। जहां उन्हें रॉकेट की तकनीकी समझने के साथ-साथ अपना लक्ष्य समझने में भी मदद मिली।

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देश को दिया ये योगदान

भारत लौटने के बाद नंबी नारायणन ने इसरो में काम करना शुरू किया। भारत में लिक्विड फ्यूल राकेट टेक्नोलॉजी लाने वाले वे ही थे। देश में पहले राकेट टेक्नोलॉजी सॉलिड प्रोपेल्लेंट्स पर निर्भर थी, लेकिन 1970 में नंबी लिक्विड फ्यूल राकेट टेक्नोलॉजी भारत में लेकर आए और इसके साथ ही देश में ईंधन रॉकेट प्रौद्योगिकी की शुरुआत हुई। जिसका उपयोग इसरो ने अपने कई रॉकेटों के लिए किया था, जिनमें ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) शामिल हैं। नंबी नारायणन ने अपने करियर में विक्रम साराभाई, सतीश धवन और एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम किया।

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देश के लिए समर्पित वैज्ञानिक को यूं फसाया जासूसी केस में

इसरो में काम करने के दौरान साल 1994 में नारायणन पर भारतीय आंतरिक्ष प्रोग्राम से जुड़ी गोपनीय जानकारी को लीक करने का झूठा आरोप लगा। आरोप थे कि उन्होंने आंतरिक्ष प्रोग्राम की जानकारी मालदीव के दो नागरिकों को साझा की है, जिन्होंने इसरो के रॉकेट इंजनों की इस जानकारी को पाकिस्तान को बेच दी थी। इन आरोपों के बाद केरल सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 50 दिनों की जेल काटने और पुलिस के अत्याचार सहने के बाद नंबी को रिहा कर दिया गया।

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सीबीआई (CBI) ने आरोपों को बताया झूठा

अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए नांबी नारायणन ने एक लंबी कनूनी लड़ाई लड़ी। नंबी पर लगे आरोपों को 1996 में सीबीआई ने खारिज कर दिया, जिसके बाद 1998 में सप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें बेकसूर बताया और केरल सरकार को उत्पीड़न करने के लिए मुआवजा देने के लिए कहा। इस केस को जीतने के बाद केरल सरकार में गजब की उठा पटक भी देखने को मिली। अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने नमबी नरायाणन पर रचे गए इस साजिश की सीबीआई जांच करने का भी आदेश दिया।

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जीतने के बाद मिला सम्मान

जासूसी केस में जीत हासिल करने के बाद केरल सरकार ने नंबी को 1.3 करोड़ रूपये बतौर मुआवजा अदा किया। साल 2019 में नारायणन को सरकार ने भारत के तीसरे सबसे प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार से भी नवाजा।