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रुढ़िवादी सोच तोड़कर रचा था इतिहास, कैसे स्टेज एक्टर से हिंदी सिनेमा की पहली महिला डायरेक्टर बनीं फात्मा बेगम?

हिंदुस्तान का इतिहास हमेशा से खास रहा है। समाज में महिलाओं का हमेशा से अहम योगदान रहा है खासकर हिंदी फिल्मों में। आज की फिल्मों की कल्पना किसी एक्ट्रेस या फीमेल डायरेक्टर के बिना अधूरी है। मगर पहले वह दौर था जब महिलाओं के रोल भी पुरुष किया करते थे। उस जमाने में फात्मा बेगम ने बॉलीवुड में एंट्री ली और एक के बाद एक कई इतिहास रच डाले।

By Karishma Lalwani Edited By: Karishma Lalwani Updated: Mon, 04 Mar 2024 06:40 PM (IST)
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हिंदी सिनेमा की पहली महिला डायरेक्टर फात्मा बेगम. फोटो क्रेडिट- जागरण
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय फिल्मों में एक वक्त ऐसा था, जब महिलाओं का यहां काम करना ठीक नहीं माना जाता था। ये वो वक्त था, जब कुछ ही महिलाओं को पर्दे पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल पाता था। फिर वक्त बदलता गया और फिल्मों में हीरोइन के लिए हीरो के बराबर रोल लिखे जाने लगे।

आज भारतीय सिनेमा की कल्पना किसी भी अभिनेत्री या फीमेल डायरेक्टर के बिना भी अधूरी है। लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें, तो पाएंगे कि ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने में लेडी ऐसी थीं, जिन्होंने बंदिशों को तोड़कर फिल्म इंडस्ट्री को नया आयाम दिया। इनका नाम था फात्मा बेगम (Fatima Begum)

कौन थीं फात्मा बेगम?

फात्मा बेगम फिल्म इंडस्ट्री की वो चर्चित पर्सनालिटी रही हैं, जिन्होंने फिल्मों में काम करने के साथ-साथ जब फिल्में बनानी भी शुरू की, तो उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वुमन्स डे की स्पेशल कवरेज में हम आपको बताएंगे हिंदी सिनेमा की इस महिला डायरेक्टर के बारे में, जिनके एक फैसले ने बॉलीवुड का इतिहास ही बदल दिया।

1892 में मुस्लिम परिवार में जन्मीं फात्मा बेगम ने स्टेज एक्टिंग से करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने फिल्मों का रुख किया। उनकी पहली फिल्म 'वीर अभिमन्यु' थी। उस दौर में महिलाओं के फिल्म में काम करने पर पाबंदी थी। मगर फात्मा ने इस परंपरा को तोड़ा और पहली ही फिल्म से स्टार बन गईं। उस दौर में महिलाओं के किरदार पुरुष ही निभाते थे। अभिनेत्रियों की कमी के दिनों में फात्मा के फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया था। इसके बाद कई सालों तक फात्मा ने अभिनेत्री के तौर पर ही काम किया।

ऐसे बनीं हिंदी सिनेमा की पहली महिला डायरेक्टर

फात्मा एक्ट्रेस के तौर पर खुद को स्थापित कर चुकी थीं, लेकिन वह सिर्फ अभिनेत्री ही बनकर नहीं रहना चाहती थीं। यह कुछ अलग करने की चाह ही थी, जो फात्मा को डायरेक्शन के क्षेत्र में खींच लाई। उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस 'फात्मा फिल्म्स' की नींव रखी, जिसके बैनर तले बनने वाली फिल्म का वह न सिर्फ डायरेक्शन करती थीं, बल्कि उसकी कहानी, निर्माण और यहां तक कि एक्टिंग भी खुद करती थीं। यहीं से फात्मा को हिंदी सिनेमा की First Woman Director का नाम मिला।

खुद डिजाइन किए अपनी फिल्म के वीएफएक्स

फात्मा बेगम के डायरेक्शन में बननी वाली पहली फिल्म 'बुलबुल-ए-पेरिसतान' थी। इस तरह फात्मा भारतीय सिनेमा के साथ-साथ एशिया की भी पहली महिला डायरेक्टर बन गईं। कमाल की बात ये है कि फिल्मों को लेकर फात्मा का जुनून यहीं नहीं रुका। फात्मा चाहती थीं कि उनकी मूवी को सालों साल याद किया जाए। 

एक तरफ इस बात की तारीफ हो रही थी कि फिल्म को किसी महिला ने डायरेक्ट किया है, तो दूसरी ओर इसमें दिखाए गए वीएफएक्स को लेकर वाहवाही हो रही थी। 'बुलबुल-ए-पेरिसतान' भारतीय सिनेमा की पहली साइंस फिक्शन फिल्म भी थी। बताया जाता है कि इस मूवी के लिए फात्मा ने मोटा खर्च किया था। मूवी बनाने में कुछ लाखों लगे थे, जिसे आज के अनुसार देखें, तो यह करोड़ों का आंकड़ा हो सकता है।

बेटियों को भी किया लॉन्च

अपनी पहली फिल्म में फात्मा ने वीएफएक्स की विदेशी तकनीक इस्तेमाल की थी। बताया जाता है कि ट्रिक फोटोग्राफी की मदद से खुद ही फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स डिजाइन किए थे। यही नहीं, स्क्रीनप्ले भी उन्होंने खुद की लिखा था। फात्मा बेगम ने जो काम किया, उसने हिंदी सिनेमा का नक्शा ही बदल कर रख दिया था। इसी विरासत को उन्होंने आगे भी जारी रखा।

फात्मा ने अपनी बेटियों-जुबैदा, सुल्ताना और शहजादी को भी लॉन्च किया। ये तीनों ही साइलेंट एरा की सुपरस्टार रहीं।

(Fatima Begum Daughter Zubaida. Photo Credit: Film History Pics)

1983 में हुआ था निधन

फात्मा बेगम ने जो आखिरी फिल्म डायरेक्ट की थी, वो 1929 में रिलीज हुई थी। उसका नाम Goddess of Luck था। 1983 में फात्मा ने 91 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।

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