भारतीय गीतकार और कवि गुलजार (Gulzaar) का जन्म 18 अगस्त 1936 को हुआ था। वह अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उन्हें साल 2004 में भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण (Padma Bhushan) से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने ‘मोरा गोरा अंग’ गाने के साथ हिंदी सिनेमा में एक गीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी।
यूनुस खान, नोएडा डेस्क। वे अपने नाम के अनुरूप संपूर्ण हैं। संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार की कलम ने दुनियाभर का सफर तय किया, नए आयाम गढ़े और साहित्य से लेकर सिनेमा तक को समृद्ध किया। आज (18 अगस्त) वो 90 वर्ष के हो रहे हैं। उनकी जन्मतिथि पर यूनुस खान का आलेख...
अपनी एक त्रिवेणी में गुलजार साहब कहते हैं-
उम्र के खेल में इकतरफा है ये रस्साकशीइक सिरा मुझको दिया होता तो इक बात थी
मुझसे तगड़ा भी है और सामने आता भी नहीं।वो नब्बे के हो रहे हैं, पर वो एक शख्स नहीं लगते मुझे। इस एक शख्स में ना जाने कितने शख्स छिपे हुए हैं। फिल्मकार, शायर-गीतकार, पटकथा और संवादलेखक, कहानीकार, उपन्यासकार जैसे उनके ज्यादातर रूपों से आप परिचित हैं पर उनकी कुछ परतें ऐसी हैं जो शायद जमाने के सामने उस तरह खुली नहीं हैं। जैसे उनके भीतर है एक शख्स जो अंतरिक्ष की खलाओं में भटकता रहता है। रिश्ता है उनका इस कहकशां से, इसके सैयारों (ग्रहों), उल्काओं, कामेट सबसे। वो ये बात कहते भी हैं और लिखते भी हैं-
मैं कायनात में, सैयारों में भटकता थाधुएं में धूल में उलझी हुई किरण की तरहमैं इस जमीं पे भटकता रहा हूं सदियों तक।।इसी तरह वो कहते हैं-चांद पे रुकना आगे खला हैमार्स से पहले ठंडी फजां है।उल्काओं से बचके निकलनाकामेट हो तो पंख पकड़नानूरी रफ्तार से कायनात से मैं गुजरा करूंगाचांद तारों से गुजरता हुआ बंजारा रहूंगा।यही नहीं, गुलजार साहब ये भी कहते हैं-
रात में जब भी मेरी आंख खुलेकुछ जरा दूर टहलने के लिए, नंगे पांव ही निकल जाता हूं आकाश उतरकेदूधिया तारों पे पांव रखता चलता रहता हूं यही सोचके मैंकोई सैयारा अगर जागता मिल जाए कहींइक पड़ोसी की तरह पास बुलाए शायदऔर कहे- आज की रात यहीं रह जाओ, तुम जमीं पर हो अकेलेऔर मैं यहां तन्हा हूं।
गुलजार के गजब के वन लाइनर
ये सब पढ़कर-सुनकर समझ आता है कि वो एक गहन दार्शनिक भी हैं। सारा ब्रह्मांड उनका है। भटकते हैं वो इसके कोने-कोने तक। वो एक दार्शनिक हैं- जिंदगी के उलझे तागों को बखूबी सुलझाने वाले और मुश्किल से मुश्किल बातों को आसान शब्दों में समझा देने वाले। जरा सोचिए कि अपनी लेखनी में कैसे-कैसे वन-लाइनर दे जाते हैं वो। ये वन-लाइनर बड़ा बुरा लफ्ज है। सूक्तियां हैं उनकी लेखनी में, मोती हैं ये-बिखरे हैं यहां-वहां। जैसे -
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं तोड़ा करते।बस एक चुप-सी लगी है, नहीं उदास नहीं।जाग जाएगा कोई ख्वाब तो मर जाएगा।कहने वालों का कुछ नहीं जाता सहने वाले कमाल करते है।खुशबू को बोतल में उड़ेलने का हुनर
उनसे बड़ा अनुवादक कोई नहीं
जमा करने चलें तो किताबें भर जाएं ढेर सारी। वो अनुवादक हैं तो ऐसे जबर्दस्त कि जाने कितने दूर-दराज के अंजान कवियों को भाषा का पुल पार करवा चुके हैं। ‘ए पोएम ए डे’ के तहत उन्होंने 34 भारतीय भाषाओं के 279 कवियों की कुल 365 कविताओं का अनुवाद कर डाला है। इससे पहले उन्होंने टैगोर का अनुवाद भी किया और कुसुमाग्रज का भी। अनुवाद का उनका इतना बड़ा काम है कि उसकी सूची देखकर भला कौन अनुवादक प्रेरित ना होगा।
गुलजार साहब कहते हैं ‘अनुवाद इत्र को एक बोतल से दूसरी बोतल में उड़ेलने का काम है। थोड़ी ना थोड़ी खुशबू छूट ही जाती है। वो कहते हैं कि अगर हमारे पास एक भाषा से दूसरी भाषा में काबिल अनुवाद नहीं हैं तो लेखक अपनी भाषा के दायरे में कैद हो जाता है।’उन्हें विज्ञान में इतनी गहरी दिलचस्पी है और विज्ञान की उनकी समझ इतनी गहरी है कि कहीं-कहीं वो उनकी रचनाओं में भी झलक जाती है-आठ ही बिलियन उम्र जमीं की होगी शायद
ऐसा ही अंदाजा है कुछ साइंस काचार अशारिया बिलियन सालों की उम्र तो बीत चुकी हैकितनी देर लगा दी तुमने आने में।सिनेमा को उतारा शीशे में
सबसे बड़ी बात ये है कि ये शख्स कमाल का शायर है। कभी बिमल राय को अपनी नज्म में उतारते हुए वो लिखते हैं-
शाम के कोहरे में बहता हुआ खामोश नदी का चेहरागंदुमी कोहरे में जलते हुए आंखों के चरागइक लगातार सुलगता हुआ सिगरेट का धुआं
नींद में डूबी हुई दूर की मद्धम आवाजऐसा लगता है ना सोएगा, ना जागेगा, ना बोलेगा कभीशाम के कोहरे में बहता हुआ खामोश नदी का चेहरा।।कभी मीना कुमारी पर वो कुछ यूं लिखते हैं-शहतूत की शाख पे बैठी मीनाबुनती है रेशम के धागेलम्हा-लम्हा खोल रही हैपत्ता-पत्ता बीन रही हैएक-एक सांस बजाकर सुनती है सौदायनएक-एक सांस को खोल के, अपने तन पर लिपटाती जाती है
अपने ही तागों की कैदीरेशम की यह शायर इक दिनअपने ही तागों में घुटकर मर जाएगी।नसीरुद्दीन शाह के लिए वो लिखते हैं-इक अदाकार हूं मैंजीनी पड़ती हैं कई जिंदगियां एकहयाती में मुझेमेरा किरदार बदल जाता है हर रोज नई सीट परमेरे हालात बदल जाते हैंमेरा चेहरा भी बदल जाता है अफ्साना-ओ-मंजर के मुताबिकमेरी आदात बदल जाती हैंऔर फिर दाग नहीं छूटते पहनी हुई पोशाकों के
खस्ता किरदारों का कुछ चूरा सा रह जाता है तह मेंइसी तरह जगजीत सिंह पर उन्होंने लिखा-एक बौछार था वो शख्सबिना बरसेकिसी अब्र की सहमी सी नमी सेजो भिगो देता थागुनगुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरहमुस्कुराहट में कई तर्बों की झनकार छुपी थीबचपन पर भी बरसा प्यारकिसी कलाकार, किसी गायक, किसी निर्देशक को अपने अल्फाज में यूं मुकम्मल तरीके से पिरो लेना एक बड़ी कारीगरी है जो सबके हिस्से में नहीं आती। इस एक शख्स में छिपे कई शख्स हैं, जिनमें से एक टेनिस खेलता रहा है जीवन भर। तमन्ना ये रही है कि जब तक सांस चले, टेनिस ना छूटे। फिर एक परत वो भी है जहां है ढेर सारा बचपना। बच्चों के लिए उमड़ता प्यार, बरसती शायरी।
एक शरीर में कितने दो हैंगिनकर देखो जितने वो हैंदेखने वाली आंखें दो हैंउनके ऊपर अबरू दो हैंऔर सूंघते हैं खुशबू को जिससेनाक तो एक है नथुने दो हैंभाषाएं हैं सैकड़ों लेकिनबोलने वाले होंठ तो दो हैंलाखों आवाजें सुनते हैंसुनने वाले कान तो दो हैंएक शरीर में कितने दो हैं।।गुलजार साहब 90 साल के हो गए है। अभी तो उनके गानों,उनकी गजलों, नज्मों, त्रिवेणियों की बातें ही कहां हुई। उनके अफसानों का जिक्र तक नहीं छिड़ा। कितना सही कहा है प्रोफेसर गोपीचंद नारंग ने-‘वो एक वर्सेटाइल जीनियस हैं’। गुलजार साहब, आप हजार बरस जिएं। आप ही के अलफाज में थोड़ी गुस्ताखी करते हुए कहें तो-महदूद हैं दुआएं मिरे इख्तियार में,हर सांस पुर-सुकून हो तू हजार बरस जिए।।