Exclusive: 'ऐसी फिल्में नहीं करती, जिन्हें जबरन सनसनीखेज बनाया जाए', OMG 2 में अपने किरदार पर बोलीं यामी गौतम
Yami Gautam Exclusive Interview On OMG 2 यामी गौतम ने फिल्म में लॉयर का किरदार निभाया है। उनके अधिकतर दृश्य पंकज त्रिपाठी और पवन मल्होत्रा के साथ हैं। ओह माय गॉड 2 एडल्ट एजुकेशन पर आधारित फिल्म है जिसमें अक्षय कुमार ने शिव के दूत का किरदार निभाया है। फिल्म में पंकज अपने बेटे के लिए अदालत में केस करते हैं।
OMG 2 बॉक्स ऑफिस पर बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है। आपके लिए इस सफलता के क्या मायने हैं?
यामी: मनोज जी, इसे मैं आभार की तरह देखती हूं। बहुत खुश हूं। अगर, आपने किसी काम में मेहनत की हो और ईमानदार रहे हों तो उसका फल जरूर मिलता है। 'ओएमजी 2' थिएटर में जैसा प्रदर्शन कर रही है, यह बहुत बड़ी बात है।क्या आपको लगता है कि अड़चनों की वजह से फिल्म ठीक से प्रमोट नहीं हो सकी?
फिल्म को ए सर्टिफिकेट नहीं मिलता तो वाइडर ऑडिएंस तक पहुंचती... यामी: इसका जो टारगेट ऑडिएंस है, वो 12 प्लस है, जिन्हें हम टीनेजर कहते हैं। ए सर्टिफिकेट जिस भी कारण से हुआ, उस पर हमारा कोई जोर नहीं है।इसके बावजूद लोगों का थिएटर में जा रहे हैं और पसंद कर रहे हैं। फिल्म का जो टॉपिक (एडल्ट एजुकेशन) है, उसे पैरेंट्स घर जाकर बच्चों के साथ शेयर कर सकते हैं। हम लोग हालात को अब इस तरह देखते हैं।विश्वास था कि अगर फिल्म अच्छी बनी है तो किसी ना किसी तरह ऑडिएंस तक पहुंच ही जाएगी। ओएमजी 2 को लेकर कितना कुछ हुआ, हमारे प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर के लिए काफी तनाव वाली स्थिति रही। पर अंत में, जो ऑडिएंस का फैसला सिर-आंखों पर होता है और ऑडिएंस ने इस फिल्म को जैसे अपना लिया है। लोग इसके बारे में बात कर रहे हैं, जो एक एक्टर के कानों के लिए संगीत की तरह है।
आपको नहीं लगता है, सीबीएफसी में बैठे लोगों को अब अपनी एप्रोच बदलने की जरूरत है?
यामी: (मुस्कुराते हुए) इसका जवाब तो आप भी जानते हैं, लेकिन बोर्ड (सीबीएफसी) के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी तो है। इतना बड़ा देश है, इतनी विभिन्नताएं हैं। सबको बैलेंस करके चलना है। सुधार की पॉसिबिलिटी तो है। शायद और कैटेगरीज हो सकती हैं, जैसे OMG 2 को यूएई में 12 प्लस सर्टिफिकेशन मिला है, बिल्कुल करेक्ट है। उस तरह से भविष्य में हमारे यहां भी कैटेगरीज बढ़ जाएं, जहां और डिटेल में सर्टिफिकेशन मिलेगा तो शायद इंडस्ट्री, फिल्मों, दर्शकों और सेंसर बोर्ड के बीच संतुलन बिठाना ज्यादा आसान होगा।फिल्म की रिलीज से पहले सोशल मीडिया में बायकॉट और बैन की मांग करने लगभग चलन-सा बन गया है। इससे किस तरह निपटा जा सकता है?
यामी: मुझे सच में नहीं पता। बहुत दुख की बात है। आप सब मीडिया फ्रेटर्निटी को यही कह सकती हूं कि इस तरह के वीडियो सर्कुलेट ना करें। फिल्म देखे बिना आप भी इस तरह के कंटेंट को आप (मीडिया) भी तवज्जो ना दें। मैं तो यही गुजारिश कर सकती हूं।फिल्म चुनते वक्त किन बातों का ध्यान रखती हैं?
यामी: तीन बातें हैं, जो मैं हर फिल्म के समय ढूंढती हूं- बतौर एक्टर और ऑडिएंस स्क्रिप्ट अच्छी लगनी चाहिए। एक्टर के तौर पर मेरे लिए करने को कुछ नया हो, सिर्फ उतना काफी नहीं है, ओवरऑल पोटेंशियल उसमें होना चाहिए, ताकि ऑडिएंस को पसंद आये। हर बार नया जॉनर ट्राइ करती हूं। जैसे, अब मेरी अगली फिल्म एक कॉमेडी है। दूसरा, मेरा किरदार कैसा है? कहानी के लिए कितना जरूरी है? कितनी डेप्थ से लिखा हुआ है और तीसरा- डायरेक्टर। जब स्क्रिप्ट और मेरा किरदार अच्छा हो तो मैं डायरेक्टर से एक बार बात जरूर करना चाहती हूं कि फिल्म को लेकर उनकी क्या सोच है? खासकर, जब आप जानते हैं कि इस तरह का सब्जेक्ट (एडल्ट एजुकेशन) है, जो काफी नया है, काफी इम्पोर्टेंट है। इसे बहुत संवेदनशीलता के साथ बनाना पड़ेगा, सनसनीखेज नहीं लगना चाहिए।मैं इस तरह की फिल्में नहीं करती, जिन्हें जबरदस्ती सेंसेशनलाइज किया गया हो। डायरेक्टर की सोच से समझ में आ जाता है कि फिल्म बनाने के पीछे उनका इंटेंशन क्या है। अच्छी फिल्म बनाना या सिर्फ सेंसेशन क्रिएट करना। अमित राय (निर्देशक) बहुत ही साफ दिल के हैं। शिव भक्त हैं और उन्हें वाकई लगा कि यह फिल्म बननी चाहिए।
फिल्म जब ऑफर हुई तो इस विषय के मद्देनजर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
यामी: कोविड का समय था। हम लोग दूसरी वेव से लड़ रहे थे। सबसे पहले अक्षय जी का कॉल आया, साथ में कॉल पर डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी (क्रिएटिव प्रोड्यूसर) और अमित (निर्देशक) थे। अमित ने कहा कि मेरी लाइफ की वन अच्छी स्क्रिप्ट्स में से एक है। बनाने के लिए मैं बहुत पैशनेट हूं।डॉ. द्विवेदी को हम सब जानते हैं कि हिंदी साहित्य के कितने बड़े विद्वान हैं। इन नामों का मतलब भरोसा है। जब इस तरह के नाम किसी प्रोजेक्ट से जुड़े हों तो संदेह नहीं रहता। ऐसे विषयों को उठाना जरूरी है। जैसे आप पिछले सवाल में इंटरनेट की बात कर रहे थे, जहां आप कुछ भी सवाल डालो, लाखों जवाब आ जाएंगे।हर कोई डॉक्टर बना हुआ है। हर कोई ज्ञान दे रहा है। उस उम्र में मिसगाइड और मिसइन्फॉर्म्ड होना कितना आसान हो जाता है। स्कूल में पढ़ा हुआ हम कभी नहीं भूलते। इसीलिए हम सबको लगा कि यह फिल्म बहुत जरूरी है। मुझे लगा कि कुछ नया करने का मौका मिला है। इस किरदार में बहुत बोलना है, उसका लहजा क्या है, क्या वैरिएशन हो सकता है, मुझे लगा कि इसमें वो सारी अपॉरच्युनिटी हैं, जो मैं ढूंढती हूं।पंकज त्रिपाठी उम्दा एक्टर हैं। उनके साथ आपके काफी दृश्य हैं। जिरह करने का अनुभव कैसा रहा?
यामी: पंकज जी के साथ काम करना बहुत अच्छा लगा। वो थिएटर के एक्टर हैं। एक टाइम पर एक्टिंग की वर्कशॉप लिया करते थे। उनका काम करने का तरीका भी सरल है। मुझे अपना पूरा होमवर्क करके जाना पसंद है। मेरे जो भी सवाल होते हैं, सभी फिल्मों में सेट पर जाने से पहले डायरेक्टर के साथ बैठकर पूछती हूं। कुछ जोड़ना है तो डिस्कस करती हूं। मुझे तैयार रहना पसंद है।जब फिल्म का शूट कर रहे थे तो लग रहा था कि इतनी लम्बी-लम्बी लाइनें हैं। अब देखते हैं तो लगता है कि सीन कितनी तेजी से गुजर रहे हैं। पंकजी जी के साथ एक और नाम मैं लेना चाहूंगी, पवन जी (मल्होत्रा) का। उन्होंने जज के किरदार में बहुत अच्छा काम किया है। दृश्यों को दिलचस्प बनाने में सभी कलाकारों ने अपना योगदान दिया है। हम अपना क्राफ्ट इतने सीनियर कलाकारों के साथ काम करके ही बेहतर करते हैं।आपको इंडस्ट्री में एक दशक से अधिक हो चुका है। सिनेमा में क्या बदलाव पाती हैं?
यामी: राइटिंग बेहतर हुई है। खासकर, महिला किरदारों का चित्रण बेहतर हुआ है। कलाकार अधिक जागरूक हुए हैं। 2012 (यामी का डेब्यू उसी साल 'विक्की डोनर' से हुआ) एक अच्छा साल था, जब बहुत सारी अच्छी फिल्में आयी थीं। अब अचानक, ऐसा लग रहा है, वो वक्त लौट आया है।बीच में मुझे भी काफी अच्छी-अच्छी फिल्में मिलीं औरों ने भी कीं, लेकिन अब हम प्री-पैनडेमिक और पोस्ट पैनडेमिक बोलते हैं। पोस्ट पैनडेमिक काल में हमारे लेखकों, निर्देशकों और हम कलाकारों को ज्यादा मेहनत करनी होगी, ताकि लोग जुड़े रहें। जिस तरह से फिल्में (गदर 2 और ओएमजी 2) थिएटर्स में प्रदर्शन कर रही हैं, उससे जाहिर है कि लोग सिनेमाघरों में जाने के लिए तैयार हैं।कोई भी जॉनर हो (जोर देकर), हमें उनको बार-बार ऐसा कंटेंट देना होगा, जिसे हम कहते हैं We Have Grown Up Watching Cinema, वो लगाव रहे। चाहे थिएटर में हो या ओटीटी पर हो। एक्सपीरिएंस उन्हें देना होगा। यह एक सिनेमा है, एक बिल्कुल अलग दुनिया है। वो हमारा काम है और भी ज्यादा लगन के साथ मेहनत करनी चाहिए। मुझे ऐसा लगता है।