Yash Chopra: जानें, किसकी सलाह पर यश चोपड़ा बने थे निर्देशक, क्लासिक फ़िल्मों से रचा इतिहास
Yash Chopra ने जिन 22 फ़िल्मों का निर्देशन किया उनमें कम से कम 12 फ़िल्मों को भारतीय सिनेमा की क्लासिक फ़िल्में माना जाता है जिन्होंने सिनेमा के सफ़र की रहनुमाई की और फ़िल्मों को मनोरंजन के साथ सरोकार से जोड़ने का सबक आने वाली नस्लों को सिखाया।
#YashChopra with his leading ladies #Rakhee and #SharmilaTagore on the sets of his first film under the Yash Raj Films' banner 'Daag'. #YRF50 pic.twitter.com/dds5Gu6F3I
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यश चोपड़ा को सिर्फ़ रोमांस की हदों में समेट देना भी नाइंसाफ़ी होगी। जितनी शिद्दत से उन्होंने अपने नायक को रूमानी बनाया, उतने ही तेवरों के साथ उसे एंग्री मैन बनाया। दीवार, त्रिशूल, काला पत्थर और मशाल जैसी फ़िल्में सिस्टम और परिस्थितियों के आगे बेबस नायक की छटपटाहट के गुबार को पर्दे पर लेकर आयीं।A film which marked the beginning of an iconic era. #Daag | #YRF50 | #MadeByYRF pic.twitter.com/msk3gzH7q9
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अमिताभ बच्चन के करियर को विविधता देने में यश जी की अहम भूमिका रही। दीवार, त्रिशूल और काला पत्थर से अलग अमिताभ को उन्होंने 'कभी-कभी' में "मैं पल दो पल का शायर हूं" गाते हुए दिखाया तो 'सिलसिला' में उन्हें एक मैच्योर प्रेमी के रूप में सामने लेकर आए।A courageous battle for justice. #YRF50 | #MadeByYRF | #KaalaPatthar pic.twitter.com/r00zysGIHf
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इसी तरह नब्बे दशक से आख़िरी सालों तक उन्होंने शाह रुख़ ख़ान को उनके करियर की यादगार फ़िल्में दीं। 1993 में आयी डर, 1997 की दिल तो पागल है, 2004 की वीर ज़ारा और 2012 की आख़िरी फ़िल्म जब तक है जान, किंग ख़ान के करियर की बेहतरीन फ़िल्में मानी जाती हैं।Two legends in one frame. #YRF50 | #KaalaPatthar pic.twitter.com/lpmHdUE1BN
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हिंदी सिनेमा में उनके शानदार योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सिनेमा सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फ़िल्मों की शूटिंग के लिए यश चोपड़ा का स्विट्जरलैंड फेवरेट डेस्टिनेशन था। अक्टूबर 2010 में स्विट्जरलैंड में उन्हें स्विस एम्बेस्डर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। स्विट्जरलैंड में उनके नाम पर एक सड़क भी है और वहां पर उनके नाम से एक ट्रेन भी चलाई गई है।All aboard this nostalgic ride. #YRF50 | #JabTakHaiJaan pic.twitter.com/ulTOj9ZrFj
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