'मैं जिंदगी में हर घेरे को तोड़ना चाहती हूं, अपनी इमेज में बंधी नहीं हूं', जागरण संवादी में बेबाक बोलीं कंगना
कंगना रनौत ने हिंदी सिनेमा में अपनी अदाकारी और बेबाक अंदाज से एक अलग मुकाम हासिल किया है। वह एक ऐसी अभिनेत्री हैं जो अपनी इमेज में बंधकर नहीं रहतीं। हाल ही में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित दैनिक जागरण के हिंदी हैं हम अभियान के अंतर्गत आयोजित जागरण संवादी के मंच पर अपनी जिंदगी के कई पहलुओं पर खुलकर बात की।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हिंदी फिल्मों की ऐसी अभिनेत्री जिसने अपनी कला और हुनर से चमकते सितारों को चुनौती दी। उनके अभिनय में वो गहराई है जो किसी भी पात्र को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर देती है। हिमाचल प्रदेश के एक कस्बे से निकलकर मुंबई की मायानगरी में कंगना ने अपने दम जो ख्याति अर्जित की उसकी मिसाल दी जा सकती है। फिल्मी दुनिया में अपनी सफलता के झंडे गाड़कर जब वो राजनीति के मैदान में उतरी तो मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज उम्मीदवार को पराजित कर दिया।
अपनी बेबाक बोल के लिए जानी जानेवाली कंगना के व्यक्तित्व का एक दूसरा आयाम भी है। दिल्ली में आयोजित दैनिक जागरण के हिंदी हैं हम अभियान के अंतर्गत आयोजित जागरण संवादी के मंच पर कलाविद यतीन्द्र मिश्र के साथ बातचीत में एक अलग ही कंगना दिखी, जो किसी भी मुद्दे पर संजीदगी से अपनी बात रख रही थीं।
सवाल: एक बड़े फिल्मकार ने कहा कि कैमरे के बाहर जीवन है और कैमरे के अंदर जो है वह सिनेमा है। कैमरे के अंदर की जिंदगी आपने जी। क्या आप कैमरे के बाहर की उस जिंदगी को मिस करती हैं?
कंगना: मैंने बहुत छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया था। खैर, वह तो बचपन था। क्या इस उम्र में उस समय को मिस करती हूं। अक्सर तो नहीं, लेकिन जब मेरी जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव चल रहे होते हैं, उस समय जब मैं कुछ सहेलियों से मिलती हूं ...जो पारिवारिक जिंदगी में हैं। जिनके बच्चे हैं, पति है और वह एक सामान्य जीवन जी रही हैं। एकदम नर्चर्ड और प्रोटेक्टिव लाइफ जी रही हैं...कभी-कभी मन में विचार आता है कि क्या होता यदि मैंने यह रास्ता चयन नहीं किया होता।सवाल: सिनेमा में आप आईं, शुरुआती फिल्में खासतौर पर 'गैंगस्टर', 'फैशन', 'वंस अपन अ टाइम इन मुंबई'। एक बिगड़ी-सी लड़की, नशे में...थोड़ी-सी बिगड़ी हुई थी। जिसे देखकर दर्शकों को लगा कि यह पड़ोस में एक लड़की हो, जो परेशानी में गुजर रही है, गलत सोहबत में पड़ गई...तो वह ऐसी ही होगी। क्या इन किरदारों को निभाते वक्त आपने किसी सहेली या दोस्तों को केरिकेचर किया है?
कंगना: बहुत ही हैरानी की बात है। मैंने हमेशा ही अपने साक्षात्कारों में कहा कि मैं पैदाइशी दु:खी आत्मा हूं। मैं छोटी-सी उम्र से ही गालिब को सुनती थी। मात्र नौ-दस साल की उम्र में। मुझे पैथोस (दुखभरी गाथा)..मैलंकली (उदासी) बहुत अच्छा लगता था। मैं खुद भी कविताएं लिखती थी। मुझे सब कहते थे कि तुम्हें क्या गम है। पांचवीं-छठी कक्षा में पढ़ने वाली...मैं किशोरावस्था तक ही नहीं पहुंची थी' लेकिन दु:खी गाने पसंद आते थे। (हंसते हुए...इस पर मेरे मीम्स भी बनते हैं कि मैं दु:खी गाने सुनती हूं)। मेरे जो डायरेक्टर थे... उस समय मेरी आंखों में होल-सोल मलंकली थी, जबकि उस समय मैं टीन एजर थी। उस वक्त मेरे साथ कोई हादसा नहीं हुआ था। (हंसते हुए... हां, उसके बाद फिल्म इंडस्ट्री में बड़े हादसे हुए)। मैं बहुत आरामदेह जिंदगी जी रही थी। हां, एक संघर्ष का दौर था। मुझे काम नहीं मिल रहा था। मैं मारी-मारी फिरती थी, लेकिन दु:खी लोग या उनका जीवन मुझ पर काफी असर डालते हैं। यही वजह है मैं पीड़ित महिलाओं का कैरेक्टर, सिमरन... या फिर वो लम्हें...जिसमें स्कीजोफ्रेनिक परवीन बाबी का कैरेक्टर। और फैशन में दु:खों का अंबार था। एक अकेली युवती, जो सड़क पर पहुंच जाती है... मुझे इस नोड से बहुत सिम्पैथी (सहानुभूति) है। मेरे ड्रंक कैरेक्टर (नशे में धुत किरदार) कैरिकेचर्स नहीं है। जैसे मैं अभी बात कर रही हूं, संभवतः मेरे किरदारों में एक सुर ज्यादा लगा होगा। मैंने कभी भी नशे में रहने या नशीली दवाओं के प्रभाव में रहने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। यहां तक कि 'फैशन' की तरह वह कहां घूमती थीं, कहां ड्रग्स लेती थीं और रैंप पर वॉक करती थीं, लेकिन आप बता नहीं सकते। यह पूरा विचार है ताकि आप उन लोगों को जज न करें बल्कि उनसे आइडेंटिफाई करें।
सवाल: जो लड़की मैलंकली में जीती है, जो गालिब को पढ़ती है। वह स्कूल-हॉस्टल लाइफ में ओशो को पढ़ती है। ओशो तो सबको लिबरेट करते हैं? ओशो तो बहुत जगह से चीजों को बटोरकर लाते हैं। ऐसा नहीं लगता है कि गालिब, ओशो और कंगना कुछ इम्बैलेंस (असंतुलित) था?
कंगना: नहीं....ओशो ने मेरे जीवन में बहुत प्रभाव डाला। ओशो ने भी एक व्यक्ति के रूप में मेरी जागृति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह जो चीजों को लेकर डिसइल्यूशनमेंट है। जो भी सांसारिक चीजें हैं, उनको लेकर वह ब्लेटेंट है। वह आपको जस का तस बता देते हैं कि क्या है दुनिया की सच्चाई है? क्या है रिश्तों की सच्चाई? क्या है जीवन की परिवर्तनशील प्रकृति? कैसा हर चीज में लेन-देन है...चाहे वह परिवार है, भाई-बहन है, चाहे रिश्ते हैं या फिर अभिभावक हैं?...आप परफार्म नहीं करेंगे, आप कमा नहीं पाएंगे, तो चीजें बदल जाएंगी। शायद प्यार नहीं बदलता। लोगों का आपके साथ व्यवहार करने का तरीका... बदल गया। यदि कोई बच्चा उनको बचपन से यह सब पढ़ ले, समझ ले तो मैलंकली उसकी जिंदगी का हिस्सा बन ही जाएगा। जैसे दुनिया की सच्चाई आपको समझ आ जाए तो वह ऐसा ही हो जाएगा। जैसे उदाहरण के लिए मेरी पसंदीदा फिल्म है 'प्यासा'... यह फिल्म वैसी ही है, जैसा मेरा बचपन है, जिसे मैं ठीक से शब्द नहीं दे पाई। मैं जिंदगी की सच्चाई को कुछ समझ रही थी और कुछ चीजें नहीं समझ पा रही थी...यह वह मैलंकली थी। मैं कुछ-कुछ थिंकर टाइप थी।सवाल: आपने बताया कि आपकी पसंदीदा फिल्म है 'प्यासा'। 'प्यासा' रीमेक हो तो आप माला सिन्हा जी या वहीदा रहमान जी का रोल प्ले करना चाहेंगी?
कंगना: निश्चित रूप से वहीदा रहमान जी।