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छोटे पर्दे के बड़े प्रशंसक

हाल में आई फिल्म अग्निपथ में विजय के पिता मास्टर दीनानाथ चौहान का किरदार निभाने वाले चेतन पंडित को छोटा पर्दा हमेशा से आकर्षित करता रहा है।

By Edited By: Updated: Sat, 18 Feb 2012 11:55 AM (IST)
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हाल में आई फिल्म अग्निपथ में विजय के पिता मास्टर दीनानाथ चौहान का किरदार निभाने वाले चेतन पंडित को छोटा पर्दा हमेशा से आकर्षित करता रहा है। वे कई फिल्मों में काम कर चुके हैं। अभी वे जी टीवी के धारावाहिक पुनर्विवाह में दिख रहे हैं। बातचीत चेतन पंडित से।

पुनर्विवाह के अपने किरदार के बारे में बताएंगे?

मैं इसमें एक पिता की भूमिका निभा रहा हूं, जो बहुत गंभीर किस्म का इंसान है। अपने परिवार की अच्छी इमेज समाज में कायम रखने को लेकर वह काफी संजीदा है। वह रूढि़वादी नहीं है। प्रगतिशील विचारों की वह काफी कद्र करता है। तभी वह अपने बेटे का पुनर्विवाह एक तलाकशुदा लड़की से करने पर अपना मन बनता है।

इस सीरियल की कहानी क्या है?

यह साहसी होने, जिंदगी को दूसरा मौका देने और प्यार व खुशियों की खोज में नई शुरुआत करने की कहानी है। यह कहानी दो ऐसे लोगों की है, जो अपने पहले प्यार को खोने के बाद फिर से नई जिंदगी बनाने की तलाश में हैं। यह पुनर्विवाह के जरिए सामाजिक संदेश देने वाला शो है। इसमें यह दिखाया गया है कि किस तरह अलग-अलग मां-बाप के बच्चे एक साथ मिलकर इस असामान्य स्थिति के साथ अपना तालमेल बिठाते हैं।

आपको ठीकठाक फिल्में मिल रही हैं। ऐसे में सीरियल में काम करने की वजह?

छोटे पर्दे पर कलाकार को ज्यादा प्रशंसक मिलते हैं। दर्शकों तक इसकी पैठ बड़े पर्दे के मुकाबले ज्यादा गहरी है। इनके अलावा मेरे लिए काम और किरदार ज्यादा मायने रखता है। इसलिए फिल्मों के साथ-साथ सीरियल भी कर रहा हूं। यहां लगातार काम करते रहना आवश्यक है, वरना लोग याद नहीं रखते।

आप दोनों माध्यमों के बीच कैसे संतुलन बिठाते हैं?

जहां चाह, वहां राह..। मैं हर तरह के काम का मजा लेता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहां और किसके लिए काम कर रहे हैं। मैं अगर एक ऐड फिल्म भी करता हूं तो मुझे काम करते समय यह ख्याल नहीं रहता कि किसके लिए कर रहा हूं। मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को अपने काम में सौ फीसदी ध्यान देना चाहिए। काम करना भी एक आनंद है।

अग्निपथ में संजय दत्त के साथ काम करके कैसा लगा?

कमाल का अनुभव रहा। फिल्म में मेरी मौत का सीन फिल्माने के लिए उन्होंने मुझे बीस दिनों तक घसीटा। सीन एक खास लाइट में शूट करना था, इसलिए सेट पर हर दिन मिट्टी में लोटना पड़ता था। घसीटने के दौरान मुझे और संजू दोनों को चोटें लगीं, पर यह जरूरी था। मास्टर दीनानाथ चौहान की मौत बड़ी नहीं बनती, तो विजय का बदला बड़ा नहीं बनता।

आपने कई बड़े कलाकारों के साथ काम किया है। कभी घबराहट महसूस नहीं हुई?

ऐसा कभी नहीं हुआ। अब तक मैंने जिन लोगों केसाथ काम किया, वे सब बड़े सहयोगी और पेशेवर हैं। उनके साथ काम करते वक्त कभी डर महसूस नहीं हुआ। उलटे उन लोगों से काफी कुछ सीखने को मिला।

फिल्मों में आपके रोल छोटे रहे हैं। इससे कितना फायदा मिला?

फिल्में अगर सफल हैं, तो आपका रोल छोटा हो या बड़ा, फायदा मिलना तय है। ये सभी सफल फिल्में हैं। इसलिए इनसे मुझे खुद को स्थापित करने में काफी सहायता मिली।

क्या आप शुरू से ही अभिनय की दुनिया में आना चाहते थे?

जी हां। मेरे मन में कलाकार बनने का सपना बचपन से ही था। मेरा पारिवारिक वातावरण संगीत और साहित्य से जुड़ा रहा है। मेरे पिता ऑल इंडिया रेडियो में काम कर चुके हैं। कलाकार बनने की प्रेरणा मुझे परिवार से ही मिली। इसलिए 1994 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई की और फिर मुंबई का सफर शुरू हुआ।

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