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अपने 27 साल के करियर में ख़ुद में क्या बदलाव देखते हैं मनोज बाजपेयी, बोले- ‘अब ज्यादा अच्छा कलाकार बन गया हूं’

डिजिटल प्लेटफॉर्म जी5 पर आज रिलीज हुई फिल्म ‘डायल 100’ में मनोज बाजपेयी पुलिस अधिकारी निखिल सूद का किरदार निभा रहे हैं। 31 अगस्त को साल 1994 में रिलीज हुई मनोज की डेब्यू फिल्म ‘द्रोहकाल’ के 27 वर्ष पूरे हो जाएंगे।

By Nazneen AhmedEdited By: Updated: Fri, 06 Aug 2021 01:25 PM (IST)
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Photo Credit - Manoj Bajpayee Instagram Account Photo
दीपेश पांडेय, जेएनएन। डिजिटल प्लेटफॉर्म जी5 पर आज रिलीज हुई फिल्म ‘डायल 100’ में मनोज बाजपेयी पुलिस अधिकारी निखिल सूद का किरदार निभा रहे हैं। 31 अगस्त को साल 1994 में रिलीज हुई मनोज की डेब्यू फिल्म ‘द्रोहकाल’ के 27 वर्ष पूरे हो जाएंगे। हिंदी सिनेमा में ढाई दशक से भी अधिक के सफर के अनुभवों, इस फिल्म और उनके व्यक्तिगत जीवन को लेकर मनोज से बातचीत के अंश:

सवाल : इस फिल्म में आपके लिए खास आकर्षण क्या रहा?

जवाब : इस फिल्म का नाम ‘डायल 100’ सुनते ही मुझे अंदाजा लग गया था कि यह कोई बढ़िया थ्रिलर फिल्म है। यह नाम बहुत ही अनोखा और आकर्षक था। थ्रिलर के अलावा यह फिल्म एक सामाजिक विषय पर भी बात करती है कि कैसे अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करें और उनको किसी गलत चक्कर में फंसने से बचाएं। आज इससे सभी माता-पिता जूझ रहे हैं। इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक 15-16 साल का बच्चा अपने माता-पिता को क्यों विलेन मानकर चलता है।

सवाल : आप बच्चों की किस तरह की परवरिश में यकीन करते हैं?

जवाब : नैतिक मूल्य और संस्कार बच्चों की परवरिश में होने जरूरी हैं। बच्चों को यह संस्कार देना जरूरी है कि समाज का हर वर्ग समान है। उनमें वे भेद न करें। समानता में विश्वास करें। हमेशा व्यक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, उसका ओहदा या पैसा नहीं। इन्हीं चीजों में मैं यकीन करता हूं और अपनी बेटी को भी यही सब सिखाने का प्रयास करता हूं।

सवाल : फिल्म की कहानी एक फोन कॉल के इर्दगिर्द घूमती है, क्या आप भी कभी अनचाहे या अनजाने फोन कॉल का शिकार बने हैं?

जवाब : अब तो मैं अनजान फोन कॉल उठाता ही नहीं हूं। पहले सभी के फोन कॉल रिसीव कर लिया करते थे। कई लोग सिर्फ मजे लेने के लिए फोन करते थे। कुछ लोग तो सिर्फ मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए फोन पर धमकियां भी देते थे कि देखते हैं इस पर मनोज बाजपेयी क्या कहेंगे। अब तो मैं रात सात बजे के बाद किसी का भी फोन नहीं उठाता हूं।

सवाल : यह फिल्म बदले की भावना पर भी केंद्रित है। आप इस पर कितना यकीन करते हैं?

जवाब : मैं बदले की भावना से प्रेरित शख्स नहीं हूं। मैं अपने रास्ते चलता रहता हूं, जिसको जो कहना है कहे, जो बोलना है बोले, जो समझना है समझे। मेरे साथ अगर कुछ गलत हुआ है तो भी मैं उस शख्स को माफ कर देता हूं, लेकिन हां, अगर कोई ज्यादा उत्पात या गलत करता है तो आपको उसके खिलाफ खड़ा होना पड़ता है। वो बदले की भावना नहीं होती है। वो प्रतिक्रिया किसी को सबक सिखाने के लिए होती है ताकि वह समझ जाए कि वह जो कर रहा था वह गलत था।

सवाल : पुलिस के इर्दगिर्द बुनी कहानियों में निर्माताओं और दर्शकों की दिलचस्पी बरकरार रहने का आप क्या कारण मानते हैं?

जवाब : पुलिस का काम बहुत चुनौती भरा होता है। इस काम की जिम्मेदारियों और समय की कोई सीमा नहीं होती है। इतनी जिम्मेदारियों के साथ-साथ वो लोगों के विश्वास और अविश्वास के बीच से होकर अपना काम करते हैं। इसलिए उनके बीच से कहानियां बहुत निकलती हैं। आप किसी पुलिसकर्मी के पास बैठ जाएं, उसके अपने कम से कम ऐसे 40 अनुभव होंगे, जिन पर फिल्में बन सकती हैं। इस डिपार्टमेंट से जुड़ा कोई शख्स आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है और जांच के घेरे में भी आ सकता है। पूरे पुलिस विभाग में नाटकीयता बहुत होती है। इसलिए लोगों की दिलचस्पी ऐसी कहानियों में बनी रहती है।

 

 

 

 

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सवाल : अपने 27 साल के सफर में सिनेमा के साथ-साथ खुद में क्या बदलाव देखते हैं?

जवाब : सिनेमा लगातार बदलता रहा है और अब भी बदल रहा है। इसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है, लेकिन अगर हम उसका सामना करते हैं तो उससे हमारी अपनी कला का विकास होता है। अपनी बात करूं तो मैं पहले से ज्यादा अच्छा कलाकार बन गया हूं। बीतते वक्त के साथ मैंने जीवन को ज्यादा देखा। अपनी कला पर लगातार काम करता रहा, उससे मेरा भी विकास हुआ। आगे भी मैं इसी तरीके से एक अभिनेता और इंसान के तौर पर अपने विकास के लिए काम करता रहूंगा। बस इसी मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा हूं।