72 Hoorain Review: खुशियां जन्नत में नहीं, इसी जिंदगी में हैं! आतंकवाद पर झकझोरने वाले सवाल पूछती '72 हूरें'
72 Hoorain Movie Review आतंकी घटनाओं से पूरी दुनिया आहत है। आखिर कैसे लोग इसके चंगुल में फंस जाते हैं और अपनी सोच से भटक जाते हैं। आखिर कैसे दूसरों के साथ वो खुद अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए तैयार हो जाते हैं फिल्म ऐसे सवालों पर रोशनी डालती है। 72 हूरें मुख्य रूप से विचारोत्तेजक फिल्म है जिसका ट्रीटमेंट सीधा रखा गया है।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 07 Jul 2023 02:21 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए आतंकी धर्म की आड़ में लोगों की मासूमियत का फायदा उठाते हैं। उनकी धार्मिक भावनाओं को भड़काकर, बड़े-बड़े सपने दिखाकर और उन्हें गुमराह करके आतंक की राह पर चलने को मजबूर करते हैं।
जिहाद के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले आखिर अपने मंसूबों में कैसे कामयाब हो रहे हैं? वो मासूम लोगों को कट्टर बनाने के लिए किस तरह का लालच देते हैं। अपनी किस विचारधारा से उन्हें प्रभावित करते हैं कि ईश्वर की दी जिंदगी के प्रति उनका मोहभंग हो जाता है। वे आतंकी बनने को तैयार हो जाते हैं।
ऐसे ही कुछ सवालों को विवादों से घिरी फिल्म 72 हूरें में खंगालने की कोशिश हुई है। पाकिस्तान पोषित आतंकवाद किस तरह से लोगों को गुमराह कर रहा है, संजय पूरण सिंह चौहान निर्देशित यह फिल्म उस पर केंद्रित है।
कहानी को दो आतंकियों के नजरिए से दिखाया गया है। यह फिल्म आतंकी बनने के कारणों पर प्रहार करती है। खास बात यह है कि यह किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करती है। फिल्म मूल रूप से ब्लैक एंड व्हाइट में बनी है।
दो मर चुके आतंकियों के नजरिए से कहानी
72 हूरें का आरंभ मौलाना सादिक (राशिद नाज) के उपदेशों से होता है। वह अपने अनुयायियों को बताते हैं कि जिहाद का उन्होंने जो रास्ता चुना है, वह सीधे उन्हें जन्नत में ले जाएगा। जन्नत में जाने पर 72 हूरें उन्हें इनाम में बख्शी जाएंगी। उनके अंदर चालीस लोगों की ताकत आ जाएगी। वहां से कहानी मुंबई आती है।
हामिद (पवन मल्होत्रा) और बिलाल (आमिर बशीर) आतंकी गतिविधियों पर बात कर रहे होते हैं। ज्यादा इंतजार न कराते हुए निर्देशक स्पष्ट कर देते हैं कि मुंबई में हुए विस्फोट में दोनों मारे जा चुके हैं। दोनों की भटकती रूहें 72 हूरों का इंतजार कर रही हैं। इनके सब्र की सीमा तब टूटती है, जब एक भी हूर उन्हें नहीं मिलती।
उन्हें लगता है कि उनके जनाजे की नमाज न होने की वजह से जन्नत के दरवाजे नहीं खुले हैं। इस तरह 169 दिन गुजरते हैं। इस दौरान दोनों की रूह किन सच्चाइयों से रूबरू होती हैं। उन्हें अपना सच कैसे समझ आता है कहानी इस संबंध में है।