99 Songs Movie Review 99 सॉन्ग्स के हर फ्रेम में रहमान की संगीतमय मौजूदगी साफ़ महसूस की जा सकती है। संगीत और तकनीकी मोर्चे पर तो 99 सॉन्ग्स हिट है मगर कहानी के मामले में रहमान लय मिस कर गये।
By Manoj VashisthEdited By: Updated: Sat, 17 Apr 2021 01:22 PM (IST)
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा को अपने संगीत से एक नई बुलंदी देने वाले म्यूज़िक मेस्ट्रो एआर रहमान 99 सॉन्ग्स के साथ फ़िल्म निर्माता बन गये हैं। कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच फ़िल्म शुक्रवार (16 अप्रैल) को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है। अप्रैल में कई बड़ी फ़िल्मों की रिलीज़ डेट स्थगित हुई, मगर रहमान ने अपनी तारीख़ टस-से-मस नहीं की। 99 सॉन्ग्स बहुभाषी फ़िल्म है, जो हिंदी के साथ-साथ फ़िल्म तमिल और तेलुगु में भी रिलीज़ की गयी है।
99 सॉन्ग्स के निर्माण के पीछे भी एक अलग कहानी है। यह फ़िल्म रहमान की दशकभर की मेहनत का परिणाम है। यह कहानी उनके ज़हन में दस साल पहले आयी थी और तभी से वो इसके निर्माण में जुटे थे। आख़िरकार फ़िल्म सिनेमाघरों में पहुंच गयी। बतौर संगीतकार रहमान की थाह पाना बहुत मुश्किल है और 99 सॉन्ग्स इसकी जीती-जागती मिसाल है।वैसे भी रहमान किसी फ़िल्म के निर्माता हों और जॉनर म्यूज़िकल हो तो नतीजा क्या होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। 99 सॉन्ग्स के हर फ्रेम में रहमान की संगीतमय मौजूदगी साफ़ महसूस की जा सकती है। संगीत और तकनीकी मोर्चे पर तो 99 सॉन्ग्स हिट है, मगर कहानी के मामले में दिग्गज संगीतकार लय मिस कर गये।
99 सॉन्ग्स कॉलेज स्टूडेंट जय की कहानी है, जिसकी रग-रग में संगीत बसा है। बचपन की कड़वीं यादों और पिता की चेतावनियों के बावजूद जय गायक, गीतकार और संगीतकार बनना चाहता है। जय की ज़िंदगी में दो लोग और हैं- उसका दोस्त पोलो और गर्लफ्रेंड सोफी सिंघानिया। सोफी बोल नहीं सकती।
कॉलेज में जय के म्यूज़िक कॉन्सर्ट से प्रभावित होकर सोफी के बिज़नेस टाइकून पिता जय को अपने घर पार्टी में आमंत्रित करते हैं। पार्टी में जय अपनी परफॉर्मेंस से मुख्यमंत्री का भी दिल जीत लेता है। पार्टी के बाद सोफी के पिता जय के सामने एक म्यूज़िक स्ट्रीमिंग सर्विस शुरू करने का बिज़नेस आइडिया देते हैं, जिसे जय लीड करेगा। मगर, जय संगीत की तिजारत नहीं करना चाहता और वो प्रस्ताव ठुकरा देता है।
जय का तर्क है कि किसी कलाकार की ज़िंदगी में एक गाना दुनिया बदल सकता है। जय के इनकार से आहत सोफी के पिता उसे एक नहीं 100 गाने बनाने की चुनौती देते हैं, जिसके बाद ही जय सोफी के साथ अपनी रिलेशनशिप को आगे ले जा सकता है। यह चुनौती जय की ज़िंदगी का मकसद बन जाती है, जिसमें उसकी मदद दोस्त पोलो करता है। पोलो, जय को अपने साथ होम टाउन शिलॉन्ग ले जाता है।
शिलॉन्ग में जय की मुलाक़ात क्लब सिंगर शीला से होती है। जय शीला के बैंड में पियानो बजाने लगता है। मगर, एक हादसा होता है और जय को ड्रग्स का आदी साबित करके रिहैब में दाख़िल करवा दिया जाता है। रिहैब में जाकर जय टूट जाता है और उम्मीद छोड़ देता है।
रिहैब में जय को बचपन की उस कड़वी सच्चाई का पता चलता है, जिसकी वजह से उसके पिता को संगीत से बेइंतिहा नफ़रत हो गयी थी और उस नफ़रत की वजह से जय खुलकर संगीत नहीं सीख पाता है। मगर, रिहैब संचालिका (मनीषा कोईराला) की प्रेरणा और दोस्त की मदद से जय आख़िरकार वो एक गाना बना लेता है, जिसके संगीत में पूरी दुनिया बदलने की कुव्वत होती है।
रहमान लिखित कहानी की सीमाओं में फ़िल्म के डेब्यूटेंट निर्देशक विश्वेश कृष्णमूर्ति का स्क्रीनप्ले असरदार है। कहानी सीधी और सपाट है। इसलिए स्क्रीनप्ले को रोमांचक बनाने के लिए घटनाओं के क्रम को आगे-पीछे किया गया है, जिससे फ़िल्म को एक चौंकाने वाली शुरुआत मिलती है। बीच-बीच में जय के बचपन के दृश्यों के ज़रिए उसके अतीत को दिखाया गया है। कहानी जय की है, मगर उसे सोफी के ज़रिए सुनाया गया है।
कुछ दृश्य मन को छू जाते हैं। जय की संगीत के लिए बेक़रारी पिता की सख़्त हिदायत पर भारी पड़ती है। संगीत सीखने की चाह नन्हे जय को कभी मंदिर तो कभी मस्जिद और कभी चर्च और गुरद्वारे ले जाती है, जहां गूंजने वाली प्रार्थनाएं जय की संगीत का सबक़ बनती हैं।
99 सॉन्ग्स में 14 गाने हैं, जिन्हें सिचुएशन के हिसाब से इस्तेमाल किया गया है। मगर, क्लाइमैक्स से ठीक पहले आया 'ओ आशिका' 99 सॉन्ग्स की रूह है, वहीं क्रेडिट रोल्स के साथ चलने वाला 'साथिया साथिया' क़दम थिरकाने वाला गीत है। रहमान एक बार फिर अपनी फॉर्म में दिखे हैं। गानों को बोल थोड़ा अटपटे लग सकते हैं।
संगीत के अलावा 99 सॉन्ग्स की दूसरी सबसे बड़ी ख़ूबी सिनेमैटोग्राफी है। तनय साटम और जेम्स काउली ने कैमरे के साथ सच में कमाल किया है। साधारण होते हुए भी हर एक दृश्य बेहद ख़ूबसूरत दिखता है। इन दृश्यों में कलर कॉम्बिनेशन एक अलग ही एहसास देता है। काल्पनिक दृश्यों में विजुअल इफैक्ट्स टीम की रचनाशीलता साफ़ झलकती है। रहमा ने इस फ़िल्म की मुख्य स्टार कास्ट चुनने में भरपूर समय लिया और तब तक कहानी और किरदार के हिसाब से कलाकार नहीं मिले, रहमान की खोज जारी रही। आख़िरकार, जय के लिए एहान भट्ट और सोफी के किरदार में एडिल्सी वरगस का चयन हुआ। दोनों की पहली फ़िल्म है, मगर इसका पता उन्हें अभिनय करते हुए देखने पर नहीं होता।
अपने अतीत से जूझते संगीतप्रेमी के किरदार में एहान ने अच्छा काम किया है। एहान के अभिनय में ठहराव है। डोमिनिक रिपब्लिकन मूल की एडिल्सी मॉडलिंग पृष्ठभूमि से हैं। आवाज़हीन सोफी के किरदार को एडिल्सी ने शिद्दत से जीया है। दोस्त के किरदार में तेंज़िन दल्हा, सोफी के पिता के रोल में रंजीत बरोट और मुख्यमंत्री के रोल में अश्वथ भट्ट ने अपना हिस्सा बख़ूबी निभाया है।म्यूज़िशियन राम रहीम का स्पेशल एपीयरेंस कहानी और जय के किरदार को निर्णायक मोड़ देता है। क्लब सिंगर शीला के किरदार में लीज़ा दिलकश लगी हैं। हालांकि, उनका किरदार ज़्यादा लम्बा नहीं है। रिहैब संचालिका के किरदार में मनीषा कोईराला का कैमियो जय के किरदार को सपोर्ट करता है। रहमान की यह फ़िल्म संगीतप्रेमियों के लिए बेहतरीन तोहफ़ा है।
कलाकार- एहान भट्ट, एडिल्सी वरगस, तेंज़िन दल्हा, मनीषा कोईराला, राम रहीम आदि।निर्देशक- विश्वेश कृष्णामूर्ति।निर्माता- एआर रहमानस्टार- *** (3 स्टार)अवधि- 2 घंटा 10 मिनट