Afwaah Review: यह ना 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' है और ना ही 'यह वो मंजिल तो नहीं'... यह बस 'अफवाह' है!
Afwaah Movie Review सुधीर मिश्रा निर्देशित अफवाह एक बेहद गंभीर और सामयिक मुद्दे को दिखाती है मगर इस क्रम में मनोरंजन के मोर्चे पर चूक जाती है। फिल्म टुकड़ों में असर छोड़ती है। बेहतरीन कलाकारों ने थोड़ा-बहुत माहौल बांधकर रखा।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 05 May 2023 05:55 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ जहां कथित लव जिहाद की तस्वीर दिखाती है, वहीं 'अफवाह' में दो लोगों को अनजाने में लव जिहाद में फंसा दिया जाता है। यह अफवाह कितनी घातक होती है, उस पर आधारित है सुधीर मिश्रा की फिल्म।
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी की शुरुआत राजस्थान के छोटे से शहर सावलपुर में एक राजनीतिक रैली में सत्ताधारी पार्टी के भावी उपनेता विक्की बाना उर्फ विक्रम सिंह (सुमीत व्यास) पर हमले से होती है। जवाब में उसका करीबी चंदन (शारिब हाशमी) एक स्थानीय शख्स की बेरहमी से पिटाई करता है।
चंदन से बात करते हुए और कुछ आदेश देते हुए विक्की का एक वीडियो टीवी चैनल्स और इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो जाता है। यह वीडियो देखकर उसकी मंगेतर और सत्ताधारी पार्टी के नेता की बेटी निवेदिता उर्फ निवी (भूमि पेडणेकर) भड़क जाती है। उसे विक्की की कट्टरता रास नहीं आती है।
शादी से बचने के लिए वह घर से भाग जाती है। विक्की के गुंडे उसे ढूंढकर घर चलने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहे होते हैं। इस दौरान वहां से गुजर रहा रहाब अहमद (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) उसकी मदद के लिए आता है।
अमेरिका से भारत आया रहाब अपनी पत्नी के कार्यक्रम में जाने के लिए निकला होता है। अपने राजनीतिक फायदे के लिए विक्की कार से भागते हुए निवी और रहाब का वीडियो वायरल कर देता है और उसे नाम दिया जाता है लव जिहाद। इसके बाद दोनों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? कहानी इस संबंध में है।
कैसा है कथा, पटकथा और अभिनय?
करीब पांच साल के बाद सुधीर मिश्रा की फिल्म थिएटर में रिलीज हुई है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ यह उनकी दूसरी फिल्म है। इससे पहले दोनों ने सीरियस मैन में एक साथ काम किया था। सुधीर की पिछली राजनीतिक फिल्में ये वो मंज़िल तो नहीं और ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ जमीनी मुद्दों में युवाओं की भागीदारी पर आधारित थीं।
अफवाह में उन्होंने इंटरनेट मीडिया पर जंगल में आग की तरह फैलने वाली खबरों के दुष्परिणामों पर केंद्रित किया है। हालांकि, उसके पीछे उनकी विचारधारा भी परिलक्षित होती है। फिल्म में दंगों के दौरान हाथ जोड़कर दया की भीख मांगते हुए आदमी का दृश्य जानबूझकर डाला प्रतीत होता है। यह गुजरात दंगों की प्रसिद्ध तस्वीर की याद दिलाता है, जो काफी वायरल हुई थी।फिल्म में इंटरनेट मीडिया के प्रभाव को दिखाने की कोशिश हुई है, लेकिन वह असर नहीं छोड़ता। यहां पर इंटरनेट को अपनी सुविधानुसार लेखक और निर्देशक ने ऑन-ऑफ किया है। जब रहाब और निवी को जरूरत होती है तो इंटरनेट चलता ही नहीं है।
इंटरनेट प्रभाव को लेकर लेखकों को गहन शोध करने की आवश्यकता थी। फिल्म के संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं। फिल्म में आने वाले ट्विस्ट और टर्न पूर्वानुमानित है। इंटरवल के बाद फिल्म खिंची हुई लगती है।फिल्म के लिए सुधीर को मंझे हुए कलाकार मिले हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी किसी भी किरदार में सहजता से रम जाते हैं। यहां पर भी अपने किरदार में जंचे हैं। तेजतर्रार, मुंहफट और बेबाक लड़की की भूमिका में भूमि पेडणेकर पहले भी नजर आई हैं। राजनीतिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली निवी अपनी प्रगतिशील सोच की वजह से ऊंच नीच, सामाजिक भेदभाव और धार्मिक कट्टरता की राजनीति को गलत मानती है।
विचारों में अंतर के बावजूद उसके विक्की साथ शादी करने की वजहें अस्पष्ट हैं। पिता अस्पताल में भर्ती है, लेकिन नेवी उनके साथ नहीं है। उसका कारण भी स्पष्ट नहीं है। सारे गुंडे विक्की साथ हैं। उसके पिता तो दबंग नेता हैं। उनका कोई विश्वसनीय उसके साथ क्यों नहीं है।लव जिहाद का वीडियो उसके पिता तक क्यों नहीं पहुंचता है? ऐसे कई सवाल अनुत्तरित हैं। फिल्म का खास आकर्षण सुमित व्यास हैं। सत्ता को पाने की जुगत में लगे विक्की बन्ना के किरदार को उन्होंने बेहद संतुलित तरीके से निभाया है।
भ्रष्टाचार में लिप्त इंस्पेक्टर संदीप (सुमित कौल) का किरदार भी समुचित तरीके से नहीं गढ़ा गया है। हालांकि, स्क्रिप्ट की सीमाओं में सुमित ने उसे बेहतरीन तरीके से निभाया है। विक्की के दाहिने हाथ चंदन की भूमिका में शारिब हाशमी अपने किरदार में जंचे हैं। हालांकि, फिल्म के क्लाइमेक्स को मजबूत बनाने की खास जरूरत महसूस होती है।कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, भूमि पेणडेकर, सुमित व्यास, सुमित कौल आदि।
निर्देशक: सुधीर मिश्राअवधि: दो घंटा छह मिनटस्टार: ढाई