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Akelli Review: अकेली लड़की की हिम्मत और हौसले की रोमांचक कहानी, नुशरत के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी

Akelli Review अकेली मूल रूप से सरवाइवल और एस्केपिंग थ्रिलर है जिसकी पृष्ठभूमि ISIS है। आतंकियों की कैद में फंसी लड़की किस तरह खुद को जिंदा रखने के साथ उनके चंगुल से बच निकलने की कोशिश करती है फिल्म की कहानी उसी पर आधारित है। नुशरत ने लीड रोल निभाया है। फिल्म में कई ऐसे पड़ाव आते हैं जब बदन में सिहरन दौड़ती है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Wed, 23 Aug 2023 06:46 PM (IST)
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अकेली 25 अगस्त को रिलीज हो रही है। फोटो- स्क्रीनशॉट्स

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। युद्धग्रस्‍त देश की खबरें विचलित करती हैं। वर्ष 2016 में रिलीज फिल्‍म 'एयरलिफ्ट’ 1990 में इराक-कुवैत युद्ध में फंसे 1,70,000 भारतीयों की सुरक्षित निकासी की सच्‍ची कहानी पर आधारित थी।

जून 2014 में, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आइएसआइएस) के अनुमानित 1500 लड़ाकों ने इराक के शहर मोसुल पर कब्जा कर लिया था। इस दौरान एक भारतीय लड़की आइएसआइएस की कैद में फंस जाती है। यह फिल्‍म उसी दौरान फंसी एक अकेली लड़की की कहानी है।

क्या है अकेली की कहानी?

कहानी का आरंभ एक इमारत के तहखाने में कई महिलाओं को जबरन कैद में धकेलने से होता है। इनमें पंजाब की ज्‍योति अरोड़ा (नुशरत भरुचा) भी होती है। आर्थिक और पारिवारिक दिक्‍कतों की वजह से वह मोसुल में गारमेंट फैक्‍ट्री में बतौर सुपरवाइजर काम करने आती है।

वहां से उसकी जिंदगी की परतें खुलती हैं। हम उसकी निजी जिंदगी से परिचित होते हैं। वह फैक्‍ट्री के पाकिस्‍तानी मैनेजर रफीक (निशांत दहिया) को पसंद करने लगती है। उनकी प्रेम कहानी परवान चढ़ती उससे पहले ही आइएसआइएस के आतंकी फैक्‍ट्री के कर्मचारियों का अपहरण कर लेते हैं।

वह महिलाओं को अपने साथ ले जाते हैं। वहां से कहानी वर्तमान में आती है। आतंकियों का कमांडर वहाब (आमिर बाउट्रोस) उससे जबदस्‍ती करने की कोशिश करता है। डरी, सहमी और साधारण सी ज्‍योति अचानक से कुछ ऐसा कर जाती है कि कमांडर मारा जाता है। यहां से ज्‍योति की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।

आइएसआइएस का सुप्रीम कमांडर असाद (साकी हलेवी) उसे अपनी चौथी बेगम बनाने का एलान करता है। ज्‍योति वहां से स्‍वदेश भागने के लिए क्‍या जतन करती है? उसमें उसे किन दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है ? कहानी इन्‍ही प्रसंगों पर आधारित है।

कैसा है स्क्रीनप्ले?

बतौर निर्देशक प्रणय मेश्राम की यह पहली फिल्‍म है। उन्‍होंने और गुंजन सक्‍सेना ने कहानी और स्‍क्रीनप्‍ले लिखा है। उन्‍होंने सच्‍ची घटना को काल्‍पनिक रूप देते हुए उसे वास्‍तविक तरीके से पेश किया है। उनका पहला प्रयास सराहनीय है।

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युद्धग्रस्‍त अनजान देश में ज्‍योति क्रूर, अमानवीय और हिंसक घटनाओं के बीच संघर्षरत है। फिल्‍म की शुरुआत रोमांचक अंदाज में होती है। शुरुआत में स्‍कूली बच्‍ची को आत्‍मघाती विस्‍फोट में उड़ाने का दृश्‍य रोंगटे खड़े करता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है स्क्रिप्‍ट में रोमांच और थ्रिल है, लेकिन लगता है कि सब आसानी से हो रहा।

आखिर में रफीक के आइएसआइएस से जुड़ने को लेकर कुछ नहीं बताया गया। दोनों के अचानक मिलने पर कोई भावनात्‍मक सीन नहीं है। रफीक को इस रूप में देखकर ज्‍योति चौंकती नहीं है। फिल्म में उसे देखकर लगता है कि वह कैसे इनसे निकलेगी है, लेकिन उन प्रसंगों को स्क्रिप्‍ट के स्‍तर पर और विकसित करने की जरूरत थी।

बहरहाल, निर्देशक और उनके सहयोगियों ने इराक के अशांत माहौल और आतंकियों की क्रूरता को पर्दे पर रचने में सफलता पाई है। फिल्‍म में बच्चियों और औरतों के साथ होने वाली अमानवीय घटनाओं के दृश्‍य देकर आप सिहर जाएंगे। कहानी में रोमांच और थ्रिल बनाए रखने के लिए कई जगह सिनेमाई लिबर्टी ली गई है।

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गोली लगने के बावजूद असाद एयरपोर्ट पर स्‍वस्‍थ दिखता है। तमाम कठिनाइयों के बावजूद ज्‍योति का मेकअप और हेयरस्टाइल बना रहता है। यह अखरता है। फिल्‍म को देखते हुए कहीं न कहीं एयरलिफ्ट, द केरल स्‍टोरी और शिद्दत जैसी फिल्‍मों के कुछ दृश्‍य जेहन में आ जाते है।

कई जगह अरेबिक भाषा का इस्‍तेमाल है। हिंदी में सबटाइटल होने से भाषाई दिक्‍कत पेश नहीं आती है। बस हिंदी में आए सबटाइटल में शाब्दिक गलतियां बहुत अखरती हैं। इस पर निर्माता निर्देशक को विशेष रूप से ध्‍यान देने की जरूरत है।

फिल्‍म के निर्माता विक्‍की सदाना हैं, जो नामचीन कास्टिंग डायरेक्‍टर हैं। हालांकि, फिल्‍म के कास्टिंग निर्देशक कियारा कपूर और रुद्र धलारिया हैं। फिल्‍म पूर्ण रूप से नुशरत भरूचा के कंधों पर है। यहां पर मिले अवसर के मुताबिक उन्‍होंने खुद का ढाला है और ज्‍योति को जीने की भरसक सफल कोशिश की है।

असर छोड़ती हैं नुशरत भरुचा

उन्‍हें हम ज्‍यादातर चुलबुली लड़की और रोमांटिक कामेडी फिल्‍मों में देखते रहे हैं। ‘अकेली’में वे अपनी परिचित दुनिया से निकलती हैं और प्रभावित करती हैं। रफीक की भूमिका में निशांत दहिया याद रह जाते हैं। उन्‍होंने मिले हुए दृश्‍यों में अपनी प्रतिभा दर्शायी है।

वहीं इस फिल्‍म में साकी हलेवी ने आइएसआइएस सरगना की भूमिका को जीवंत कर दिया है। भाषा और बॉडी लैंग्‍वेज से चरित्र के मुताबिक निभा ले जाने में कामयाब हुए हैं। रोहित कुलकर्णी का पार्श्‍व संगीत थ्रिल को बढ़ाता है। पुष्‍कर सिंह की सिनेमेटोग्राफी उल्‍लेखनीय है। उन्‍होंने इराक के परिवेश को कैमरे में बहुत खूबसूरती से कैद किया है।

अवधि: दो घंटा सात मिनट

स्‍टार: तीन