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Angry Young Men Review: सिनेमा के जुनून से बनी सलीम-जावेद की जोड़ी, जिद से छुई बुलंदी, फिर क्यों टूटी?

सलीम खान और जावेद अख्तर ने सत्तर के दौर में कई कालजयी फिल्मों की कहानी स्क्रीनप्ले और संवाद लिखे। कई मायनों में इस जोड़ी ने हिंदी सिनेमा में चली आ रही परम्पराओं को तोड़ा और अपने लिये जगह बनाई। फिल्म के कलाकारों को परिभाषित करने वाला शब्द स्टारडम सलीम-जावेद से पहले किसी लेखक से नहीं जुड़ा था। मगर कामयाबी की बुलंदी पर पहुंचकर ये जोड़ी टूट गई।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Updated: Tue, 20 Aug 2024 06:44 AM (IST)
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एंग्री यंग मेन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। फोटो इंस्टाग्राम

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। गोल्डन एरा के सुहाने सिनेमा को सलीम-जावेद एंग्री यंग मैन के दौर में लेकर गये थे, जिसमें नायक रोने-गाने के बजाय दिल में एक आक्रोश लिये चलता था। सामाजिक विसंगतियों और सिस्टम की खामियों से जन्मा ये नायक दिल की आग से दुनिया को जलाने निकला था। 

समाज और सिस्टम से जूझ रहे आम दर्शक के मन की बात पर्दे पर आई तो सलीम-जावेद खुद भी स्टार बन गये। हीरो से ज्यादा फीस लेने का दम सलीम-जावेद की जोड़ी से पहले कोई राइटर ना दिखा सका था। 

फिल्मों के पोस्टर पर लेखक का नाम लिखे जाने के दौर का शुरू होना भी इसी जोड़ी की जिद का नतीजा था। हीरो जो भी हो, निर्देशक कोई भी हो, लेकिन फिल्म सलीम-जावेद के नाम से ही बिकती थी।

आज के दौर में किसी फिल्म लेखक के लिए ऐसे स्टारडम की कल्पना करना भी मुश्किल है। प्राइम वीडियो की डॉक्युमेंट्री सीरीज 'एंग्री यंग मेन- द सलीम-जावेद स्टोरी' इस लेखक जोड़ी के उसी सुनहरे दौर में ले जाती है।

लगभग 45 मिनट के तीन एपिसोड्स की सीरीज सलीम-जावेद के उदय, उत्थान और पतन के साथ निजी जिंदगी की झलक भी पेश करती है। सलमान खान फिल्म्स और फरहान अख्तर की कम्पनी एक्सेल एंटरटेनमेंट ने सीरीज का निर्माण किया है। 

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'एंग्री यंग मैन' और सलीम-जावेद का उदय

सलीम खान और जावेद अख्तर भले ही अलग शख्सियत थे, मगर दोनों की जिंदगी तकरीबन एक जैसी रही। सलीम फिल्मों के असफल हीरो थे तो जावेद अख्तर संघर्षरत असिस्टेंट। दोनों ने बचपन में मां को खो दिया था। फिल्मों में करियर बनाने के लिए घर से भागे और संघर्ष किया। इस बारे में बात करते हुए जावेद अख्तर की आंखें नम भी होती हैं।

'सरहदी लुटेरा' की मेकिंग के दौरान दोनों मिले। पांच हजार रुपये में पहली फिल्म के लिए घोस्ट राइटिंग की और जोड़ी बन गई। अंदाज, हाथी मेरे साथ, सीता और गीता के बाद 1973 में जंजीर आई, जिसके जरिए सलीम-जावेद ने सिनेमा को एंग्री यंग मैन दिया। दीवार और त्रिशूल जैसी फिल्मों के साथ इसे आगे बढ़ाया।

इन फिल्मों ने अमिताभ बच्चन के करियर परवान चढ़ाया और उन्हें सत्तर के दौर के सबसे सफल अभिनेता के रूप में स्थापित किया। 'जंजीर' से पहले अमिताभ फ्लॉप एक्टर थे। कोई हीरोइन उनके साथ काम नहीं करना चाहती थी। पुरुष प्रधान फिल्मों से परहेज करती रहीं जया भी निजी कारणों से ही 'जंजीर' का हिस्सा बनी थीं।

ऐसे तथ्य सीधे संबंधित कलाकार के मुंह से सुनना इसे दिलचस्प बनाता है। अक्सर ऐसा माना जाता रहा है कि सलीम-जावेद ने उस वक्त की सामाजिक चेतना को ध्यान में रखते हुए 'एंग्री यंग मैन' के किरदार गढ़े, मगर डॉक्युमेंट्री में जावेद अख्तर इस धारणा को निराधार बताते हैं। इनके पीछे सम्भवत: उनका अपना संघर्ष और आक्रोश रहा होगा, जो किरदारों के गढ़ने में काम आया। 

फिल्मों में मां के मजबूत किरदार

सलीम-जावेद की लिखी फिल्मों में नायिका की भूमिकाएं काफी अहम रही है। खासकर, मां के किरदार। चाहे 'दीवार' की निरूपा राय हों या त्रिशूल की राखी। इस विषय पर बात करते हुए अस्सीवें पड़ाव में चल रहे सलीम खान इमोशनल नजर आते हैं।

टीबी की बीमारी से अपनी मां से बचपन में ही दूर हो जाने के दौर को याद करते हुए उनके चेहरे पर दर्द महसूस किया जा सकता है। मां को लेकर मन में रही कसक सलीम के गढ़े गये किरदारों में नजर आती है। 

हॉलीवुड फिल्मों को कॉपी करने के आरोप

सलीम-जावेद की जोड़ी जब बुलंदी पर थी तो उन पर हॉलीवुड फिल्मों से कंटेंट चुराने के आरोप लगे थे। इस बारे में सलीम खान बेबाकी से बात करते हैं। वो खुद बताते हैं कि शोले का सिक्के वाला दृश्य 1954 की हॉलीवुड फिल्म गार्डन ऑफ ईविल से प्रेरित था।

शोले में जय सिक्का उछालकर फैसला करता है तो गार्डन ऑफ ईविल में ताश के पत्ते फेंटे जाते हैं। इस समानता पर सलीम कहते हैं कि उन्होंने कभी इस बात को नहीं छिपाया कि कहां से प्रेरणा ली है। हर वर्क तब तक ओरिजिनल रहता है, जब तक उसकी प्रेरणा के बारे में पता ना हो।

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क्यों टूटी सलीम जावेद की जोड़ी?

एक लेखक जोड़ी के तौर पर 22 ब्लॉकबस्टर फिल्में देने के बाद जब ये जोड़ी टूटी तो सिनेमाघर मालिकों से लेकर निर्माता और कलाकार सभी सकते में आ गये थे, क्योंकि उस वक्त फिल्मों की कामयाबी काफी हद तक इस जोड़ी पर टिकी रहती थी।

सलमान बताते हैं कि एक शाम सलीम घर पर आते हैं और मां सलमा को बताते हैं कि वो अलग हो रहे हैं। जोड़ी क्यों टूटी? इस बारे में सलीम और जावेद ने ना पहले कुछ बोला और ना ही डॉक्युमेंट्री में कुछ स्पष्ट कारण बताते हैं।     

दूसरी शादियों पर बेबाक टिप्पणी 

जिस वक्त सलीम-जावेद की जोड़ी टूटी, लगभग उसी समय हनी ईरानी के साथ जावेद अख्तर की शादी भी टूटी थी। डॉक्युमेंट्री में इस बारे में बात की गई है। शबाना आजमी उस दौर को याद करते हुए बताती हैं कि उन्हें होम ब्रेकर कहा गया था, मगर उन्होंने इस पर कुछ नहीं बोला।

हनी ईरानी की तारीफ करते हुए कहती हैं कि उन्होंने कभी बच्चों के सामने अपने पिता की नेगेटिव छवि नहीं बनने दी। सलीम खान भी हेलन के साथ अपनी दूसरी शादी के बारे में बात करते हैं। हेलन बताती हैं कि पहली बार दोनों फिल्म 'काबली खान' के सेट पर मिले थे। हेलन हीरोइन थीं और सलीम साहब विलेन। 

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इंडस्ट्री में लेखकों की बदहाली की बात

इस डॉक्युमेंट्री की सबसे अच्छी बात है कि यह फिल्म व्यवसाय में लेखकों की बदहाली की बात भी करती है। इस बारे में इंडस्ट्री के जानकारों के भी इंटरव्यूज हैं।

अंत में कुछ उभरते हुए लेखकों के जरिए उनके सामने पेश आने वाले आर्थिक संघर्ष का मुद्दा उठाती है, जिसके लिए सलीम-जावेद ने अपने दौर में अपने तरीके से लड़ाई लड़ी थी। यह विडम्बना ही है कि पूरी फिल्म स्क्रिप्ट पर टिकी होती है, मगर लेखक को ही उसकी मेहनत का पूरा सम्मान नहीं मिलता।

कुछ दिखाया, कुछ छिपाया 

इन दिग्गज लेखकों की फिल्मों और जीवन के बारे में पहले से ही इतनी ज्यादा जानकारी पब्लिक डोमेन में मौजूद है कि ऐसे मौके कम ही आते हैं, जब सीरीज देखते हुए कोई बात हैरान करे। हालांकि, इन किस्सों को जब वो बताते हैं या दूसरे सेलिब्रिटीज के इंटरव्यूज के जरिए ये बातें सामने आती हैं तो जानते हुए भी दिलचस्पी बनी रहती है।

फिर भी कुछ बातें अधूरी रह जाती हैं। हिंदी सिनेमा की ब्लॉकबस्टर जोड़ी के बीच दरार क्यों आई? इसका मुकम्मल जवाब नहीं मिलता या शायद कोई जवाब है ही नहीं। डॉक्युमेंट्री में जितना दिखाया गया है, उसमें ईमानदार रहने की पूरी कोशिश नजर आती है। 

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मसलन, बैक-टू-बैक हिट फिल्में देने के बाद सलीम-जावेद की एरोगेंस पर भी डॉक्युमेंट्री बात करती है। इस हिस्से में हनी ईरानी और जया बच्चन की बातें सुनने लायक हैं।

'एंग्री यंग मेन' में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकारों और मीडिया से जुड़े लोगों के इंटरव्यूज के जरिए सलीम-जावेद के दौर की बात की गई है।

रमेश सिप्पी, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, जया बच्चन, हेमा मालिनी, आमिर खान, ऋतिक रोशन, यश के साथ सलमान खान, अरबाज खान, फरहान अख्तर, जोया अख्तर, रीमा कागती, राजकुमार हीरानी, अभिजात जोशी और फिल्म व्यवसाय से जुड़े तमाम लोगों के इंटरव्यूज शामिल किये गये हैं। निरूपा राय और यश चोपड़ा के फाइल इंटरव्यूज हैं।

हीरो बनने आये सलीम खान के अदाकारी के सफर को दिखाते कुछ विंटेज फोटो डॉक्युमेंट्री को आकर्षक बनाते हैं। वहीं, दोनों लेखकों के पारिवारिक लम्हों के दृश्य भी डॉक्युसीरीज में देखने को मिलते हैं। 

सलीम-जावेद जैसे लेखकों की डॉक्युमेंट्री देखते समय उम्मीद रहती है कि स्क्रीनप्ले राइटिंग जैसी विधा के बारे में कुछ बारीकियां मालूम होंगी, मगर वो इसमें मिसिंग रहता है। डॉक्यु-सीरीज सिर्फ पर्दे के इस पार की बात करती है, पर्दे के पीछे की दुनिया पर ज्यादा रोशनी नहीं डालती। डॉक्युमेंट्री की एडिटिंग दिलचस्प है। दृश्यों को बातचीत के साथ जिस तरह पिरोया है, उसने सीरीज को किसी फिल्म की तरह लुक दिया है।