दिल्ली में बसे स्टील व्यवसायी बलबीर सिंह (
अनिल कपूर) काम में बेहद व्यस्त रहते हैं। उनका बेटा रणविजय (
रणबीर कपूर) पिता को अपना हीरो मानता है। उसे लगता है कि पिता के बाद घरेलू जिम्मेदारियों का भार उस पर है। बड़ी बहन रीत (
सलोनी बत्रा) की कालेज में रैंगिंग होने पर वह कॉलेज में बंदूक लेकर पहुंच जाता है।
इस घटना से नाराज पिता उसे बोर्डिंग स्कूल भेज देता है। लौटने पर अपने स्कूल की सहपाठी गीतांजलि (
रश्मिका मंदाना) के साथ नाटकीय घटनाक्रम में शादी कर लेता है। गीतांजलि और रणबीर की छोटी बहन रूप (अंशुल चौहान) आपस में दोस्त होती हैं। रणबीर की अपने जीजा वरूण (सिद्धार्थ कार्णिक) से नहीं बनती।
देश के सबसे अमीर व्यवसायी बलबीर को गोली लगने की खबर मीडिया में सुर्खियों में आती है। (बस यहां पर कोई पुलिस नहीं आती ना ही कोई तफ़्तीश होती है)। घटना की जानकारी होने पर आठ साल बाद रणविजय अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ घर लौटता है। वह पिता के हमलावरों की खोज में लगता है।
अपने साथ गांव में रह रहे अपने चचेरे भाइयों को भी अपने साथ जोड़ लेता है। पिता के दुश्मन को मारने के दौरान उसे छह गोली लगती हैं। वह बच जाता है, लेकिन उसके सुनने की क्षमता चली जाती है। उसके बाद कहानी में ट्विस्ट आता है।
कैसा है एनिमल का स्क्रीनप्ले?
बहुप्रतीक्षित फिल्म एनिमल मूल रूप से
हिंसा प्रधान फिल्म है। इन फिल्मों का अपना ढांचा होता है। उसके मुताबिक ही चलती हैं। यहां पर पिता के साथ समय बिताने की पुत्र की बचपन से अधूरी चाहत है। मूल सवाल यह है कि फिल्म कहती क्या है और पहुंचती कहां है?
शुरुआत पिता-पुत्र की कहानी से होकर रिवेंज ड्रामा में परिवर्तित हो जाती है। मध्यांतर से पहले कहानी तेज गति से आगे बढ़ती है। इंटरवल के बाद कहानी फिसलती है। फिल्म में यौन संबंधी अनावश्यक संवाद और दृश्य भी हैं। खास तौर पर बॉबी के किरदार का सरेआम पत्नी के साथ सोफे वाला दृश्य।यह भी बढ़ें:
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निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा कहानी पर पकड़ बनाए रखते हैं, लेकिन चुस्त एडिटिंग से फिल्म की अवधि को कम करने की पूरी संभावना थी। 'पापा पापा' करने वाला रणविजय आठ साल पिता से कैसे दूर रहा? उस दौरान उसे पिता की कमी कैसे नहीं खली? हिंदी फिल्में खास ढर्रे पर चलती हैं।यहां पर कब कौन कहां से आता-जाता है, पता ही नहीं चलता। बलबीर के दुश्मनों का पक्ष बेहद कमजोर है। इतने सालों बाद बलबीर को मारने का उन्होंने क्यों सोचा? असरार हक (
बब्लू पृथ्वीराज) के दो भाई उसके साथ क्यों नहीं आए? रणविजय खुद भी पिता है। वह तो अपने पिता की तरह व्यस्त नहीं, फिर भी बच्चों के साथ समय नहीं बिताता।
दादा और पोते-पोतियों के बीच लगाव का कोई दृश्य नहीं है। कहानी बीच-बीच बिखरी हुई लगती है। फिल्म में सिर के बालों से लेकर उपांग तक के बालों पर बेबाकी से बात हुई है। स्वास्थ्य लाभ ले रहे रणविजय का वजन बढ़ रहा होता है। उस पर चर्चा भी है। हास्यास्पद यह है कि अचानक से वह बढ़ा वजन गायब भी हो जाता है।बहरहाल, फिल्म का एक्शन शानदार है। आम हिंदी फिल्मों से इतर यहां पर गोली चलती नहीं, झमाझम बरसती हैं। रनवे पर रणविजय और अबरार हक (
बॉबी देओल) के बीच फाइट सीन रोमांचक है। फाइट के आखिर में रक्त रंजित दृश्य कुछ लोगों को विचलित कर सकते हैं।
कैसा है रणबीर कपूर का अभिनय?
फिल्म का दारोमदार रणबीर कपूर के कंधों पर हैं। नि:संदेह रणबीर बेजोड़ अभिनेता हैं। यहां पर भी पिता के प्रति जुनूनी बेटे की भूमिका में वह जंचे हैं। उन्होंने रणविजय की मानसिकता, जुनून और जज्बे को पूरी शिद्दत से आत्मसात किया है। खलनायक की संक्षिप्त भूमिका में
बॉबी दओल जंचते हैं। उनके किरदार के साथ उनके पारिवारिक मसलों को थोड़ा विस्तार देने की आवश्यकता थी।
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अपनी संक्षिप्त भूमिका में उपेंद्र लिमये याद रह जाते हैं। जोया (
तृप्ति डिमरी) का पात्र कहानी में ट्विस्ट लाता है, लेकिन उसके बारे में भी ज्यादा जानकारी नहीं है। रणविजय की छोटी बहन रूप (अंशुल चौहान) का पात्र अनुपयोगी है। फिल्म के आखिर में सीक्वल का जिक्र है। शायद इस वजह से बहुत सारे सवालों के जवाब अनुत्तरित छोड़ दिए गए हैं। फिल्म का संगीत पंजाबी पृष्ठभूमि के अनुकूल है और कर्णप्रिय है।