लिहाजा, दर्शक को बांधे रखने के लिए कलाकारों के अभिनय के साथ पटकथा के ट्विस्ट व टर्न्स बहुत मायने रखते हैं, ताकि फिल्म देखने के बाद दर्शक खुद भी 'सरवाइव' कर सकें। पश्चिम में इन ऐसी फिल्में बनाने की लम्बी परम्परा रही है और ओटीटी स्पेस में ढेरों फिल्में देखने को मिल जाएंगी, जिन्हें आप दम साधकर देख सकते हैं।
अलबत्ता, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सरवाइवल थ्रिलर जॉनर को ज्यादा एक्सप्लोर नहीं किया गया। पिछले कुछ सालों में आईं हिंदी सरवाइवल थ्रिलर्स के बारे में सोचें तो मोटे तौर पर
एनएच 10, ट्रैप्ड, पीहू और मिली के नाम जहन में आते हैं। अब इस लिस्ट में डिज्नी प्लस हॉटस्टार की
अपूर्वा भी जुड़ गयी है, जो
15 नवम्बर को प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो चुकी है।
क्या है अपूर्वा की कहानी?
बैंक कर्मी मंगेतर (
धैर्य करवा) को जन्मदिन का सरप्राइज देने अपूर्वा (
तारा सुतारिया) ग्वालियर से बस में सवार होकर आगरा के लिए निकलती है। रास्ते में चार बदमाश साइड ना देने पर बस ड्राइवर और सहायक की हत्या कर देते हैं। उनमें से एक की नजर अपूर्वा पर पड़ती है।यह भी पढ़ें:
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बस में सिचुएशन ऐसी बनती है कि लुटेरों और बदमाशों का गैंग (राजपाल यादव,
अभिषेक बनर्जी, सुमित गुलाटी) उसे उठाकर ले जाता है और एक वीरान खंडहरनुमा जगह पर बंधक बनाकर रखता है। अगली सुबह बदमाशों को एक बड़ी लूट अंजाम देना जाना है, लिहाजा उनके पास रातभर का वक्त है और अपूर्वा के पास भी अपनी जिंदगी बचाने के लिए इतना ही वक्त है।
किसी तरह वो उनके चंगुल से भाग निकलती है, मगर लोकेशन से अनजान होने के कारण भूलभुलैया जैसी जगह पर फंसकर रह जाती है। जान बचाने की जद्दोजहद में अपूर्वा कैसे एक लाचार और बेबस लड़की से खुद शिकारी बन जाती है, फिल्म का मुख्य प्लॉट यही है।
कैसा है स्क्रीनप्ले?
अपूर्वा का निर्देशन
निखिल नागेश भट्ट ने किया है। संवाद और पटकथा भी नागेश ने लिखी है। 96 मिनट अवधि की फिल्म की कहानी एक दिन और रात में फैलाई गयी है। स्क्रीनप्ले सपाट है, एक ही दिशा में आगे बढ़ता है।
अपूर्वा की प्रेम कहानी को दिखाने के लिए फिल्म बीच-बीच में अतीत का सफर करती है, मगर हिस्सा ज्यादा लम्बा नहीं है। फिल्म की शुरुआत अपराध के लिए कुख्यात चम्बल इलाके से होती है, जहां
जुगनू (राजपाल यादव), सूखा (अभिषेक बनर्जी), बल्ली (सुमित गुलाटी) और छोटा (आदित्य गुप्ता) की क्रूरता एक घटना के माध्यम से दिखायी जाती है। मुख्य घटनाक्रम तक आने से पहले कथानक चम्बल से ग्वालियर और आगरा के बीच सफर करता रहता है।
अपूर्वा जिस जॉनर की फिल्म है, उसमें रोमांच और दहशत दिखाने की भरपूर सम्भावना थी, मगर फिल्म देखते हुए इन भावाओं का एहसास नहीं होता। इन भावों को जाहिर करने के लिए दृश्य गढ़े गये हैं, मगर वो टुकड़ों में असर नहीं छोड़ते। मिसाल के तौर पर, चारों बदमाश मिलकर अपूर्वा के साथ बारी-बारी से दुष्कर्म करने की योजना बनाते हैं और तय करते हैं कि कौन पहले जाएगा। हैवानियत से भरे इस दृश्य को देखकर सिहरन होनी चाहिए, मगर जिस तरह दृश्य सामने आता है, उसमें एक हास्य का भाव जागता है।
बस के अंदर
अपूर्वा के प्रेमी के साथ फोन पर सूखा का संवाद उसे जिस तरह उकसाता है, प्रभावित करता है। अपूर्वा के पकड़े जाने के बाद कथानक की एकरूपता भी रोमांच को कम करती है। इस दौरान ऐसे दृश्य बहुत कम आते हैं, जो रोमांच को चरम पर ले जाएं। यहां आते-आते फिल्म प्रैडिक्टेबल हो जाती है।प्लॉट को ट्विस्ट देने के लिए ज्योतिषी वाला दृश्य कोई मदद नहीं करता। अपराध से भरी जगह पर पुलिस को इतना नकारा दिखाना समझ नहीं आता। अपूर्वा की लोकेशन मिलने पर भी वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है।
कैसा है कलाकारों का अभिनय?
अभिनय की बात करें तो बिल्कुल नये तरह के किरदार में
तारा सुतारिया की मेहनत पर्दे पर साफ नजर आती है। अब तक उन्होंने जिस तरह के ग्लैमरस किरदार निभाये हैं, उनसे अलग इस बार अभिनय करने का मौका उन्हें नागेश की स्क्रिप्ट ने दिया, जिसे तारा ने हाथ से जाने नहीं दिया।
मिडिल क्लास फैमिली की सीधी-सादी लड़की किस तरह हालात बदलने पर घातक और हिंसक हो जाती है, इसे उन्होंने सफलता के साथ दिखाया है। मगर, जिस सिचुएशन में अपूर्वा फंसी है, उसे देखते हुए इस किरदार से सहानुभूति नहीं बन पाती। तारा पर स्क्रिप्ट का सारा फोकस इसकी कमजोरी भी बना है।अन्य कलाकारों में
अभिषेक बनर्जी प्रभावित करते हैं। निर्दयी और साइको जैसे किरदार में अभिषेक ने किरदार की नकारात्मकता को खुलकर उभारा है। हालांकि, पाताललोक का
हथौड़ा त्यागी अभी भी उनका नम्बर वन नेगेटिव किरदार है। सूखा उसके पास भी नहीं पहुंच सका।
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सुमित गुलाटी बहुत नेचुरल लगते हैं। ऐसा लगता है, सुमित इस तरह के किरदार निभाने में माहिर हो चुके हैं। बदमाशों की टुकड़ी के लीडर जुगनू के किरदार में
राजपाल यादव ने अपनी सिनेमाई छवि से अलग करने की कोशिश की है। हालांकि, इस किरदार में उनकी जो दहशत दर्शक तक पहुंचनी चाहिए, उसमें कामयाब नहीं हो सके। सूखा के सामने यह किरदार कहीं-कहीं बेबस नजर आता है। अपूर्वा के मंगेतर के रोल में
धैर्य करवा के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं है। रोमांटिक दृश्यों में दोनों कलाकारों की केमिस्ट्री अच्छी लगती है। तारा के किरदार की वजह से इसे उभरने का मौका नहीं मिलता। तारा को ढूंढने की उसकी कोशिशों वाले दृश्यों में धैर्य को कुछ करने का मौका मिल सकता था, मगर उसे लेखन में तरजीह नहीं दी गयी। अपूर्वा उन फिल्मों में शामिल हो गयी है, जिसका एक दृश्य उम्मीद जगाता है, मगर अगले ही पल निराश होना पड़ता है। कमजोर लेखन ने एक बेहतरीन सरवाइवल थ्रिलर फिल्म की सम्भावनाओं का खत्म कर दिया।