Life Finds a way Review: अंगदान की अहमियत बताती है 'लाइफ फाइंड्स ए वे' फिल्म, दमदार रोल में दिखीं रेवती
यह कहानी लखनऊ में नौकरी कर रहे 26 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर विनायक चावला (सत्यजीत दुबे) की है। वह लिवर सिरोसिस बीमारी से पीड़ित है। उसके पिता रिटायर हो चुके हैं। विनायक के पास जीने के लिए 6 महीने का समय है जब तक कि उसका लिवर ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता।
By Jagran NewsEdited By: Priti KushwahaUpdated: Thu, 13 Oct 2022 03:15 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव। अंगदान से किसी को जीवनदान दिया जा सकता है। यह बात बहुत बार सभी ने सुनी होगी पर गंभीरता से कम लोगों ने ही लिया है। दरअसल, अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियां अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। जागरूकता के अभाव में देशभर में लाखों लोग अंग नहीं मिलने से जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। जबकि जरूरतमंदों को जीवनदान देने वाले अंगों को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया जाता है। वहीं आकस्मिक दुर्घटना में मौत होने पर कुछ समय तक मानव शरीर के कई अंग दान कर सकते हैं। अंगदान की इसी अहमियत को रेखांकित करती फिल्म ऐ जिंदगी : लाइफ फाइंड्स ए वे सच्ची घटना पर आधारित है।
यह कहानी लखनऊ में नौकरी कर रहे 26 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर विनायक चावला (सत्यजीत दुबे) की है। वह लिवर सिरोसिस बीमारी से पीड़ित है। उसके पिता रिटायर हो चुके हैं। विनायक के पास जीने के लिए सिर्फ छह महीने का समय है जब तक कि उसका लिवर ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता। उसने अपनी कंपनी से अपनी बीमारी की बात छुपा रखी होती है। वह अपने इलाज के लिए चार दिन की छुट्टी लेकर हैदराबाद में काउंसलर रेवती राजन (रेवती) से मिलता है। रेवती ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को अंगदान के लिए प्रेरित करती है। कंपनी जब विनायक को निकालने का फैसला लेती है तो उसका डॉक्टर भाई कार्तिकेय (सावन टांक) आफिस में उसके साथ रहकर उसकी देखभाल की जिम्मेदारी लेता है। बीमारी का पता चलने पर विनायक की कंपनी के बड़े अधिकारी भी मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, लेकिन यह लिवर उसे कैसे मिलता है ? इसे लेकर उसे किस प्रकार का अपराध बोध होता है कहानी इस संबंध में है।
अंगदान को लेकर कई जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। यह फिल्म उस दिशा में सराहनीय प्रयास है। बतौर निर्देशक अनिर्बान बोस की यह पहली फिल्म है। वह पेशे से खुद भी डॉक्टर हैं। उन्होंने अंगदान का इंतजार कर रहे मरीज की पीड़ा को संजीदगी से दर्शाया है। उन्होंने अंगदान को लेकर यहां पर रूढिवादी सोच, मेडिकल जगत की दिक्कतों को नहीं दर्शाया है। चूंकि नायक लिवर सिरोसिस से पीड़ित है तो उस बीमारी और लिवर की जरूरत के बारे में बताया गया है। फिल्म में कई पल आते हैं जो आपको भावुक कर जाते हैं। हालांकि फिल्म में यह नहीं बताया गया है कि अंगदान के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। अंगदान के लिए आवश्यक अर्हता क्या है ? फिल्म में विनायक के पिता के पक्ष को भी बहुत सही तरीके से दिखाया गया है। विनायक की बीमारी में जिस तरह से उसका भाई चट्टान की तरह खड़ा होता है यह मर्मस्पर्शी है।
कलाकारों में विनायक की शारीरिक के साथ मानसिक मनोदशा को सत्यजीत दुबे ने बेहद संजीदगी और शिद्दत से जिया है। बीमारी के दौरान झड़ते बाल, बढ़ता पेट, जिंदगी जीने की चाह, अकेलेपन और नर्स के साथ उनकी प्रेम कहानी में मासूमियत है। काउंसलर की भूमिका में रेवती का अभिनय दिल को छू जाता है। उनके हिस्से में कई भावनात्मक दृश्य आए है जो भावविभोर कर जाते हैं। भाई के किरदार में सावन टांक जंचते हैं। नर्स की भूमिका में मृण्मयी गोडबोले और डॉक्टर की भूमिका में हेमंत खरे सहज लगे हैं। बाकी फिल्म का बैकग्राउंड संगीत कहानी के अनुरूप है। फिल्म के अंत में उस व्यक्ति के बारे में बताया गया है जिससे यह फिल्म प्रेरित है। वह वर्तमान में अंगदान के प्रति जागरूकता के लिए काम कर रहे हैं। निराशा, हताशा और कई चुनौतियों के बावजूद कैसे आशा और मानवता जीवन को खूबसूरत बनाते हैं यही इस फिल्म का सार है।
फिल्म रिव्यू : ऐ जिंदगी : लाइफ फाइंड्स ए वे (Life Finds a way)
प्रमुख कलाकार : रेवती, सत्यजीत दुबे, सावन टांक, मृण्मयी गोडबोले, हेमंत खेर,अवधि : 104 मिनटलेखक और निर्देशक : अनिर्बान बोसस्टार : तीन