कहानी है दिल्ली की, जहां सलोनी बग्गा (तृप्ति डिमरी) की बायोपिक में काम करने के लिए अनन्या पांडे बेहद उत्सुक हैं। बायोपिक इसलिए बन रही है, क्योंकि सलोनी उन करोड़ों में से एक है, जो गर्भवती हो जाती है, लेकिन उसके गर्भ में पल रहे जुड़वां बच्चे के एक नहीं, दो पिता हैं।
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Bad News Twitter Review- 'सच में तौबा-तौबा है', विक्की-तृप्ति की मूवी देखकर दर्शकों ने सुनाई गुड या बैड न्यूज?इसी ख्वाहिश के पूरा ना होने के कारण उसने अखिल से तलाक लिया है। अब वो दोनों में से उसे जीवनसाथी बनाना चाहती है, जो उसके दोनों बच्चों का ख्याल रखने के काबिल हो।
कितनी गुड, कितनी बैड है फिल्म?
फिल्म में एक डायलॉग है कि हाथ चलाकर लड़ाई जीती जाती है और दिमाग चलाकर दिल जीते जाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि फिल्म दिल जीते तो देखते वक्त दिमाग का प्रयोग बिल्कुल ना करें, क्योंकि फिर सारी कमियां नजर आने लगेंगी।
बंदिश बैंडिट्स और लव पर स्क्वायर फुट जैसी शानदार वेब सीरीज का निर्देशन कर चुके आनंद तिवारी की बतौर अभिनेता कॉमिक टाइमिंग कमाल है। बतौर निर्देशक भी उन्होंने अपना वह अनुभव इस अनोखे कॉन्सेप्ट के साथ फिल्म में डालने का प्रयास किया है, लेकिन कई जगह वह कॉमेडी बिल्कुल सपाट चली जाती है, खासकर इंटरवल के बाद।
इंटरवल से पहले वन लाइनर्स और जिन सिचुएशंस पर फिल्म हंसाती है, इशिता मोइत्रा और तरुण डुडेजा की लिखी कहानी उसके बाद उतनी ही ऊबाऊ हो जाती है। ना जोक्स पर हंसी आती है, ना सिचुएशन पर। हेट्रोपैटरनल सुपरफेकंडेशन के बारे में कॉमिक अंदाज में ही सही, लेकिन गहराई से बात करने की जरूरत थी।कई सींस में विरोधाभास भी है, जैसे सलोनी के साथ बदतमीजी से बात करने वाले को वह चपेट लगा देता है, लेकिन जब पता चलता है कि उसकी पूर्व पत्नी ने उसके अलावा किसी और के साथ भी शारीरिक संबंध बनाया है, उस पर उसे गुस्सा नहीं आता, वह भावुक हो जाता है।
डॉक्टर का डिलीवरी के सातवें-आठवें महीने में यह कहना कि गर्भ में पल रहे एक बच्चे का विकास सही से नहीं हुआ है, जबकि दूसरा स्वस्थ है, अखरता है, क्योंकि तकनीकी तौर पर मेडिकल के क्षेत्र में इतना विकास तो हुआ है कि शुरुआती कुछ महीनों में पता चल जाता है कि बच्चे का विकास कैसा हो रहा है।कॉमेडी के लिए बीच में अखिल के मामा को डिटेक्टिव बनाकर ले आना का पूरा प्रसंग गैरजरूरी लगता है। सलोनी को इम्प्रेस करने और बेहतर पिता का टैग लेने के लिए गुरबीर और अखिल के प्रयासों में कोई नयापन नहीं, हालांकि दोनों एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए जब आमने-सामने आते हैं तो हंसी की सिचुएशन बनती है।
करण जौहर का टच फिल्म में गानों के जरिए दिखता है। पुराने गानों को कॉमिक सींस में फिट करने का आइडिया काम करता है। फिल्म की जान है, अमर मोहिले का बैकग्राउंड स्कोर, जिसके कारण ही कॉमेडी में वजन आता है।यह भी पढे़ं:
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'असल मर्दानगी औरत को सुनने और समझने में है...', 'सवाल पूछकर जवाब ना देने वालों को मैं ज्यादा जज करती हूं...', 'अच्छा है तेरा पति मारता किसी और को है और प्यार तुझे करता है, नहीं तो बगल वाला कबीर मारता भी प्रीति को है और प्यार भी उसे ही करता है...' जैसे कुछ डायलॉग्स याद रह जाते हैं।
फिल्म-दर-फिल्म निखर रहे विक्की कौशल
अभिनय की बात करें तो कॉमेडी सीन हो या इमोशनल, सारे नंबर बटोर ले जाते हैं विक्की कौशल। मुंबई में पले-बड़े विक्की दिल्ली का मुंडा बनने में कोई कमी नहीं रखते हैं। दिन-ब-दिन वह ना केवल बेहतर एक्टर बन रहे हैं, बल्कि बालीवुड के चंद डांसर अभिनेताओं में उन्होंने अपना नाम जोड़ लिया है।
एनिमल के बाद भाभी 2 के नाम से प्रसिद्ध हुईं तृप्ति डिमरी का अभिनय ठीक है, हालांकि दो लोगों के बीच झूल रहा उनका किरदार थोड़ा सा कन्फ्यूज नजर आता है, इसलिए वह भी कन्फ्यूज लगती हैं। एमी विर्क, गुड न्यूज के दिलजीत दोसांझ वाला जादू नहीं चला पाते हैं।
वह कामेडी में सहज लगते हैं, लेकिन भावुक दृश्यों में मात खा जाते हैं। नेहा धूपिया ने कोरोना मां के किरदार के लिए हां क्यों कहां, इसके बारे में दर्शकों से ज्यादा उन्हें सोचना चाहिए, क्योंकि वह अच्छी कलाकार हैं।
शीबा चड्ढा छोटे से रोल में प्रभावित करती हैं। डुप्लीकेट फिल्म के गाने 'मेरे महबूब मेरे सनम' का नया वर्जन अच्छा है। विक्की के वायरल डांस स्टेप्स को 'तौबा तौबा' गाने पर देखने के लिए थिएटर में रुकना बनता है।