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Bambai Meri Jaan Review: डोंगरी के दारा की बंबई शहर से इश्क की कहानी, डॉन के रोल में अविनाश तिवारी की ताजपोशी

Bambai Meri Jaan Review अमेजन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई सीरीज का निर्देशन शुजात सौदागर ने किया है। इसकी कहानी मशहूर क्राइम राइटर एस हुसैन जैदी ने लिखी है जिनकी किताबों पर बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड फिल्में बनी हैं। इस सीरीज की कहानी कुख्यात डॉन दाऊद इब्राहिम के जीवन से प्रेरित है। केके मेनन अविनाश तिवारी कृतिका कामरा सौरभ सचदेवा ने प्रमुख किरदार निभाये हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Thu, 14 Sep 2023 12:48 AM (IST)
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बंबई मेरी जान प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गयी है। फोटो- प्राइम वीडियो
नई दिल्ली, जेएनएन। अंडरवर्ल्ड, फिल्मकारों का पसंदीदा विषय रहने के साथ कहानियों की खान भी रहा है। मुंबई के अंडरवर्ल्ड को फिल्मों में समय-समय पर खूब भुनाया गया है। डॉन्स पर बनने वाली फिल्मों में अमिताभ बच्चन, कमल हासन, अजय देवगन, ऋतिक रोशन से लेकर मनोज बाजपेयी, जॉन अब्राहम, संजय दत्त और विवेक ओबेरॉय तक नजर आ चुके हैं।

इनमें से ज्यादातर कहानियों के तार कुख्यात डॉन हाजी मस्तान, वरदराजन मुदलियार और दाऊद इब्राहिम से जुड़ते रहे हैं। कभी कहानी सीधे रियल लाइफ के इन किरदारों पर आधारित थी तो कभी इनसे जुड़ी घटनाओं से प्रेरित रही... और अब इस कड़ी में अमेजन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज बंबई मेरी जान का नाम भी जुड़ गया है।

यह एक गैंगस्टर के बंबई शहर से इश्क की कहानी है। डोंगरी के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाला लड़का कैसे अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बनता है, बंबई मेरी जान उसी दुस्साहस की कहानी है। यह मुंबई के अंडरवर्ल्ड में डी-कम्पनी बनने की कहानी है।

हिंदी सिनेमा में इतनी गैंगस्टर फिल्में बन चुकी हैं कि बंबई मेरी जान के कई हिस्से देखे हुए लगते हैं, मगर शुरुआती झटकों के बाद सीरीज रफ्तार पकड़ती है और दर्शक को अपनी गिरफ्त में लेने लगती है।

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क्या है 'बंबई मेरी जान' की कहानी? 

इस्माइल कादरी (केके मेनन) मुंबई पुलिस का इंस्पेक्टर है। रत्नागिरि से ट्रांसफर होकर डोंगरी थाने में आता है। ईमानदार और उसूलों वाला आदमी है। बंबई पर हैदराबाद से आये डॉन सुलेमान मकबूल यानी हाजी साहब (सौरभ सचदेवा) का राज है, जो स्मगलिंग से लेकर ड्रग्स, एक्सटॉर्शन समेत तमाम गैरकानूनी धंधे करता है।

इसमें उसके जोड़ीदार अजीम पठान (नवाब शाह) और उसका भाई बिलावल हैं। पठान अफगानिस्तान से फरार होकर मुंबई पहुंचा है और हाजी की 'मसल' है। यह 60 का वो दौर है, जब मुंबई पुलिस भी हाजी के इशारों पर नाचती थी। हाजी की शोहरत दिल्ली तक पहुंचती है और गृहमंत्री बंबई को हाजी और अंडरवर्ल्ड की पकड़ से आजाद करवाने का हुक्म एक वरिष्ठ अधिकारी को देते हैं। 

हाजी और पठान के सफाये के लिए सीनियर अधिकारी इस्माइल कादरी के नेतृत्व में स्पेशल टास्क स्क्वॉड का गठन किया जाता है, जिसका नाम पठान स्क्वॉड रखा जाता है। इस बीच हाजी और पठान तमिल डॉन अन्ना राजन मुदलियार से हाथ मिला लेते हैं। इससे उनकी ताकत और बढ़ जाती है। 

अपने धंधों और आदमियों पर इस्माइल के ऑपरेशंस से परेशान होकर हाजी उसे खरीदने की कोशिश करता है, मगर इस्माइल ऑफर ठुकरा देता है। आखिरकार, एक साजिश के तहत इस्माइल को साथी इंस्पेक्टर की हत्या के केस में फंसा दिया जाता है। इससे हुई भारी बदनामी के बाद हाजी के दबाव में पठान स्क्वॉड को खत्म करना पड़ता है। इस्माइल को निलम्बित कर दिया जाता है।

इस्माइल परिवार पालने के लिए कुछ नौकरी करने की कोशिश करता है, मगर हाजी हर जगह रोड़ा बन जाता है। परिवार का पेट भरने का कोई दूसरा उपाय ना देख इस्माइल आखिरकार हाजी के साथ काम करने लगता है। इधर, इस्माइल के बेटे दारा (अविनाश तिवारी), सादिक और बब्बन (अज्जू) अपराध के रास्ते पर चलने लगते हैं। पठान के साथ दारा की पुरानी रंजिश है, मगर हाजी की वजह से वो कुछ कर नहीं पाता।

पठान गैंग से अदावत के बीच दारा अंडरवर्ल्ड में अपनी जगह बनाने लगता है और धीरे-धीरे हाजी और पठान के धंंधों पर अपनी बादशाहत कायम करने लगता है। हाजी को किसी भी हाल में खत्म करने की कोशिश कर रही पुलिस दारा को खुली छूट देती है। दारा धीरे-धीरे अक्खा मुंबई का बादशाह बन जाता है। उसकी सत्ता डोंगरी से दुबई तक फैल जाती है। मगर, इसके लिए उसे अपनी निजी जिंदगी से बहुत कुछ खोना पड़ता है?  

कैसा है बंबई मेरी जान का स्क्रीनप्ले और संवाद?

बंबई मेरी जान की कहानी मशहूर क्राइम जर्नलिस्ट और लेखक एस हुसैन जैदी ने लिखी है, जिस पर समीर अरोड़ा और रेंसिल डिसिल्वा ने स्क्रीनप्ले लिखा है, जबकि संवाद अब्बास और हुसैन दलाल के हैं। रेंसिल डिसिल्वा ने निर्देशक शुजात सौदागर के साथ मिलकर इसे क्रिएट भी किया है। 

10 एपिसोड्स में फैली कहानी इस्माइल कादरी के नजरिए से दिखायी गयी है और केके मेनन के वॉइसओवर के साथ आगे बढ़ती है। सीरीज में 40 से लेकर 80 के दौर तक के बॉम्बे (मुंबई) को दिखाया गया है। यह वो दौर था, जब सपनों के शहर ने करीम लाला, हाजी मस्तान से लेकर दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन और मान्या सुर्वे समेत कई गैंगस्टरों को फलते-फूलते और बंबई को लाल होते हुए देखा था।

पहले दो एपिसोड्स इस्माइल कादरी की अंडरवर्ल्ड के खिलाफ लड़ाई और सरेंडर को दिखाते हैं। इस हिस्से का लेखन तमाम क्लीशेज से भरा हुआ है।

अपनी ईमानदारी और उसूलों पर अड़ा पुलिसवाला, उसे तोड़ कर अपनी तरफ मिलाने के लिए हर पैंतरा आजमाता डॉन, पैसे-पैसे को मोहताज ईमानदार इंस्पेक्टर का टूटना... ऐसे तमाम दृश्य सत्तर और अस्सी के दशक की फिल्मों में नजर आते रहे हैं। इन दृश्यों को देखते हुए कुछ नया नहीं मिलता। बस केके की अदाकारी समां बांधे रखती है। 

सीरीज तीसरे एपिसोड से रफ्तार पकड़ती है। इमरजेंसी के दौरान जब सीनियर इंस्पेक्टर मलिक (शिव पंडित) हाजी, पठान और मुदलियार को जेल में डाल देता है तो जवान हो चुका दारा अपने भाइयों के साथ डोंगरी में अपने पांव और हसरतें पसारने लगता है।

विदेशी घड़ियों की स्मगलिंग और हफ्ता वसूली जैसे छोटे अपराधों के साथ वो अपने क्रिमिनल करियर का बिस्मिल्लाह करता है। दारा की महत्वाकांक्षा वक्त के साथ बढ़ती जाती है। सीरीज दारा के क्रिमिनल करियर के साथ उसकी निजी जिंदगी और रिश्तों को रेखांकित करते हुए चलती है।

आगे के एपिसोड्स में दारा के अंडरवर्ल्ड की दुनिया में आगे बढ़ने, दुबई से सोने की स्मलिंग के लिए डी-कम्पनी के निर्माण, हाजी-पठान से दुश्मनी और बड़े भाई सादिक की मौत के बाद पठान गैंग का नाम मिटाने तक जाती है। अपराध के रास्ते पर जाने के कारण इस्माइल कादरी की बेटे से नाराजगी भी साथ-साथ चलती रहती है।  

संवादों की बात करें तो किरदारों को उनकी आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के हिसाब से लाइनें दी गयी हैं, मगर अंडरवर्ल्ड की इस कहानी को दिखाने में लेखकों ने गालियों का भरपूर इस्तेमाल किया है। कहीं-कहीं यह ज्यादा महसूस होता है। गम, खुशी या गुस्सा जाहिर करने में गालियों का भरपूर प्रयोग किया गया है। बेहतर है कि हेडफोन लगाकर देखें। 

कुछ दृश्य हिंसक हैं, मगर भावानत्मक तौर पर हिलाकर रख देते हैं। दारा के पत्रकार दोस्त नासिर की सुहागरात पर पठान के आदमियों का उसकी बीवी के साथ दुष्कर्म करना, दोनों को तड़पाना और फिर उनकी मौत का बदला लेने वाले दृश्यों में दारा की क्रूरता, विरक्त करती है।   

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

बंबई मेरी जान में सभी कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। अभिनय इस सीरीज का सशक्त पक्ष है। खासकर, केके मेनन ने इस्माइल कादरी के किरदार को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पहले दो एपिसोड्स में केके का अभिनय कमाल है। सिनेमैटोग्राफर ने भी उनके क्लोजअप्स लेने का मौका नहीं छोड़ा है, जिनमें भावों का उतार-चढ़ाव शानदार है। इस्माइल कादरी के शारीरिक और भावनात्मक ट्रांसफॉर्मेशन को उन्होंने बखूबी पर्दे पर पेश किया है। 

नेटफ्लिक्स की सीरीज खाकी- द बिहार चैप्टर के साथ अविनाश तिवारी ने गैंगस्टर बनने का जो सफर शुरू किया, उसे 'बंबई मेरी जान' में मंजिल तक पहुंचा दिया है। इस किरदार के लिए जिस गुस्से और तेवर की जरूरत थी, अविनाश ने उसे पर्दे पर कामयाबी के साथ पेश किया है।

डॉन की बहन हबीबा के किरदार में कृतिका कामरा जंची हैं। यह किरदार शो के क्लाइमैक्स तक बेहद मजबूत हो जाता है। बच्चों की आपराधिक जिंदगी और पति के उसूलों के बीच पिस रही मां सकीना के रोल में निवेदिता भट्टाचार्य प्रभावित करती हैं। ठंडे दिमाग से काम लेने वाले डॉन सुलेमान मकबूल के किरदार में सौरभ सचदेवा असरदार हैं। इस किरदार को निभाने में उन्होंने अपनी शारीरिक भाषा का इस्तेमाल जिस तरह किया है, वो काबिले तारीफ है।

अजीम पठान के किरदार में नवाब शाह, एक्सप्रेशन और फिजीक, दोनों लिहाज से फिट लगते हैं। दारा की प्रेमिका परी के रोल में अमायरा दस्तूर को ज्यादा मौका नहीं मिला, मगर जितना दिखीं, अच्छी लगती हैं।

आखिरी एपिसोड्स में आदित्य रावल की एंट्री शार्प शूटर छोटा के रूप में होती है। आगे चलकर इस किरदार को विस्तार मिलने की सम्भावना है। दारा के भाई सादिक के कत्ल के मास्टरमाइंड के तौर पर सुमीत व्यास का स्पेशल एपीयरेंस सरप्राइज है। 

कैसा है सीरीज का तकनीकी पक्ष?

बंबई मेरी जान के दृश्यों को विभिन्न कालखंडों के हिसाब से दिखाने में प्रोडक्शन विभाग की मेहनत दिखती है। कॉस्ट्यूम से लेकर सिनेमैटोग्राफी के जरिए 60 से 80 का बॉम्बे दिखाया गया है। एरियल दृश्यों में मुंबई के साउथ बॉम्बे इलाके की इमारतों को इस तरह कैप्चर किया गया है कि उस दौर को महसूस किया जा सके। संपादन और कलर स्कीम के जरिए दृश्यों को उस समय सीमा में स्थापित किया गया है।

अवधि: 10 एपिसोड्स, लगभग 50 मिनट प्रति एपिसोड