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Bastar The Naxal Story Review: नक्सलियों की कार्यप्रणाली और अत्याचारों को असरदार चित्रण, अदा की बेहतरीन अदाकारी

बस्तर द नक्सल स्टोरी शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म में Adah Sharma ने लीड रोल निभाया है। फिल्म की कहानी नक्सलियों की साजिशों और इसके जरिए होने वाली राजनीति को दिखाती है। फिल्म का निर्देशन द केरल स्टोरी फेम सुदीप्तो सेन ने किया है जिसमें अदा ने ही लीड रोल निभाया था। फिल्म कुछ वास्तविक घटनाओं से भी प्रेरित है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 15 Mar 2024 12:17 PM (IST)
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बस्तर द नक्सल स्टोरी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्‍म के शुरुआती दृश्‍य में एक नक्‍सली कहता है कि माओ शासन में भारत सरकार का झंडा फैलाने का साहस कैसे हुआ? यह सरकार के समानांतर सरकार चला रहे माओवादियों के दुस्साहस से परिचित करता है।

पिछले साल द केरल स्‍टोरी (The Kerala Story) में धर्मांतरण के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाने के बाद निर्देशक सुदीप्‍तो सेन ने अब छत्‍तीसगढ़ के पीड़ादायक अतीत को बस्‍तर: द नक्‍सल स्‍टोरी में उठाया है। इसके जरिए उन्‍होंने छत्‍तीसगढ़ से नक्‍सल हिंसा के खत्‍मे में जुटी एक पुलिस अधिकारी के असाधारण सा‍हसिक प्रयासों को चित्रित किया है।

यह फिल्‍म तकनीकी रूप से गुणवत्ता में उत्कृष्ट है। फिल्‍म की लोकेशन उसे विश्‍वसनीय बनाती है। सभी कथित साजिशों को दृश्यों और संवादों के जरिए दिखाया गया है। फिल्‍म नक्‍सलियों की कार्यप्रणाली, उनकी नृशंसता, बुद्धिजीवियों से मिलने वाले समर्थन, आदिवासियों पर होने वाले अत्‍याचारों को दर्शाती है।

इसका हिस्‍सा रहे सलवा जुडूम को भी दिखाया है, जो माओवादियों के खिलाफ सरकार समर्थित जनआंदोलन के रूप में शुरू हुआ। दंतेवाडा और बस्‍तर के आदिवासियों की गोंडी भाषा में सलवा जुडूम का अर्थ शांति मार्च होता है, लेकिन अधिकारियों द्वारा माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासी ग्रामीणों को हथियार भी दिया जाता था।

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क्या है बस्तर की कहानी?

फिल्‍म की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट में दो वकीलों नीलम नागपाल (शिल्‍पा शुक्‍ला) और उत्‍पल त्रिवेदी (यशपाल शर्मा) के बीच जिरह से होती है। नीलम, बस्‍तर आइजी नीरजा माधवन (अदा शर्मा) और उनके क‍ुछ साथियों के खिलाफ नक्‍सल विरोधी अभियान की आड़ में निर्दोष आदिवासियों की हत्‍या, मानवाधिकारों के उल्‍लंघन, सलवा जुडूम को बढ़ावा देने और इन मामलों में प्रख्‍यात लेखिका वान्‍या राय (राइमा सेन) को नक्सली हिंसा में बाहरी साजिशकर्ता होने के संदेह में बेवजह घसीटने की बात करती है। हालांकि, उत्‍पल की दलीलें यहां पर कमजोर पड़ती हैं।

उधर, अपने गांव में देश का झंडा फहराए जाने के लिए माओवादी मिलिंद कश्‍यप (सुब्रता दत्‍ता) के साथ उसकी पत्‍नी रत्‍ना (इंदिरा तिवारी), बेटे और बेटी को गुरिल्ला कैंप लेकर आते हैं। जन अदालत में सुनवाई के बाद मुखबिरी के लिए मिलिंद की नृशंस हत्‍या कर दी जाती है। उसके बेटे रमन (नमन नितिन जैन) को नक्‍सली अपने साथ ले जाते हैं।

नीरजा सलवा जुडूम के नेता राजेंद्र कर्मा (किशोर कदम) से रत्‍ना को अपने साथ जोड़ने के लिए कहती है। रत्‍ना अपने बेटे को खोजने की बात कहती है और सलवा जुड़ूम से जुड़ जाती है। माओवाद के खात्‍मे को लेकर प्रयासरत नीरजा एक नक्‍सली समर्थक को पकड़ने में कामयाब हो जाती है।

अपने समर्थक को पकड़े जाने से भड़के नक्‍सली 76 सीआरपीएफ जवानों के कैंप पर हमला कर देते हैं। सरकार के लचर रवैये के बावजूद नीरजा किस प्रकार माओवादियों से निपटती हैं? क्‍या रत्‍ना अपने बेटे को वापस लाने में सफल हो पाएगी कहानी इस संबंध में हैं।

कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?

सच्‍ची घटनाओं से प्रेरित 'बस्तर: द नक्सल स्टोरी' की शुरुआत माओवादियों के खिलाफ अखबार में छपी खबरों की क्‍लीपिंग दिखाने से होती है। वहां, से माओवादियों के अत्‍याचार से हम परिचित हो जाते हैं। माओवादी को किस प्रकार विदेश के कम्‍युनिस्‍टों से फंड मिल रहा है, कुछ बुद्धिजीवी किस प्रकार संसदीय प्रणाली को बदलकर एक पार्टी के नेतृत्‍व में देश चलाने की साजिश रच रहे हैं। उसकी झलक फिल्‍म में है।

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हालांकि, यह फिल्‍म नक्सली आंदोलन की उत्पत्ति पर ध्‍यान केंद्रित नहीं करती, नक्‍सलियों को मिलने वाले समर्थन को जरूर दिखाती है। एक दृश्य में, वान्‍या से प्रतिष्ठित प्रोफेसर नारायण बागची (पूर्णेंदु भट्टाचार्य) शिक्षाविदों और बालीवुड में वामपंथी विचारधारा की घुसपैठ करने का आग्रह करते देखा जा सकता है।

वह देश की संसदीय प्रणाली को बदलकर एक पार्टी के नेतृत्‍व में देश चलाने की साजिश रच रहे हैं। हालांकि, रत्‍ना का बेटा क्‍यों माओवादियो की ओर आकर्षित हैं? अचानक से जब मां बेटे का सामना होता है तो कैसे बेटे का एक पल में ह्रदय परिवर्तन हो जाता है? उसका कहानी में कोई जिक्र नहीं है।

लेखक आदिवासियों की उदासीनता को पकड़ने में भी सफल होते हैं, जो अक्सर खुद को पुलिस अधिकारियों और विद्रोहियों के बीच फंसा हुआ पाते हैं, क्योंकि दोनों तरफ से दबाव बढ़ रहा है। बहरहाल, फिल्‍म में कई सीन हैं, जो विचलित कर सकते हैं।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

'बस्तर: द नक्सल स्टोरी' का अहम पहलू अदा शर्मा, यशपाल शर्मा, शिल्पा शुक्ला, राइमा सेन, पूर्णेंदु भट्टाचार्य और अन्य कलाकारों का अभिनय है। उनमें से प्रत्येक ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है, खासकर इंदिरा तिवारी, अदा शर्मा और विजय कृष्ण ने। नक्सल नेता के किरदार में विजय कृष्ण की अदाकारी असरदार है। फिल्‍म की सिनेमेटोग्राफी उत्‍कृष्‍ट है। फिल्‍म का विषय गंभीर है। ऐसे में बैकग्राउंड संगीत ध्‍यान भटकाता है।