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Bhaiyya Ji Review: संवादों में सिमटकर रह गया 'भैया जी' का भौकाल, इस बार एक बंदा नहीं रहा काफी

मनोज बाजपेयी की फिल्म Bhaiyya Ji सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। लगभग 3 दशक से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय मनोज की यह 100वीं फिल्म है और पहली बार वो इस तरह के लार्जर दैन लाइफ किरदार में बड़े पर्दे पर नजर आ रहे हैं। इस फिल्म में मनोज ने जबरदस्त एक्शन किया है लेकिन क्या यह फिल्म और किरदार मनोज के अभिनय को जस्टिफाई करता है? पढ़ें रिव्यू।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 24 May 2024 02:11 PM (IST)
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भैया जी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। गैर फिल्‍मी पृष्‍ठभूमि से आए अभिनेता मनोज बाजपेयी ने अपने दमखम पर अभिनय जगत में अपनी पहचान बनाई। भैया जी उनकी सौंवी फिल्‍म है। इस फिल्‍म के वह निर्माता भी हैं। ज्‍यादातर धीर-गंभीर, सार्थक और अर्थपूर्ण सिनेमा का हिस्‍सा रहे मनोज की यह फिल्‍म प्रतिशोध ड्रामा है।

इसमें उन्‍होंने काफी एक्‍शन किया है। सीमित बजट में बनी दीपक किंगरानी और अपूर्व सिंह कार्की द्वारा लिखित यह फिल्‍म पिछली सदी के आठवें दशक की फिल्‍मों की याद दिलाती है, जब मां-बहन या भाई के साथ अन्‍याय होने पर नायक के मन में प्रतिशोध की ज्‍वाला धधकती रहती थी।

अपने दुश्‍मनों से बदला लेने के बाद ही उसके मन को शांति मिलती थी। इस दौरान अपने प्रियजन के साथ गुजारा वक्‍त, मीठी यादें उसे अतीत में ले जाती थी। सत्‍य घटना पर आधारित ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ का निर्देशन कर चुके अपूर्व सिंह कार्की 'भैयाजी' में इस घिसे-पिटे फार्मूले पर ही सिमट गए हैं। उसमें कोई ताजगी या नयापन नहीं है। समस्‍या कहानी की पृष्‍ठभूमि के साथ किरदारों के गढ़ने में भी रही है।

क्या है भैया जी की कहानी?

फिल्‍म का आरंभ बिहार में अधेड़ उम्र के रामचरण उर्फ भैया जी (मनोज बाजपेयी) और पूर्व नेशनल शूटर मिताली (जोया अख्‍तर) की शादी की तैयारियों के साथ होता है। भैया जी मोबाइल फोन पर दिल्‍ली में पढ़ रहे अपने छोटे भाई वेदांत (आकाश मखीजा) से बात कर रहे होते हैं, जो रेलवे स्‍टेशन से गाड़ी पकड़कर अपने दो दोस्‍तों के साथ घर आने वाला होता है।

अगले दिन दिल्‍ली के कमला नगर पुलिस थाने से फोन आता है कि उसके भाई का एक्‍सीडेंट हुआ है। तुरंत थाने आए। वहां पहुंचने पर भैया जी को पता चलता है कि वेदांत का निधन हो चुका है। फिर वेदांत के दोनों दोस्‍त भैया जी को कुछ सुराग देते हैं और कुछ घटनाक्रमों के बाद पता चलता है कि इलाके के दबंग चंद्रभान (सुरविंदर विक्की) के बिगड़ैल बेटे अभिमन्‍यु (जतिन गोस्‍वामी) ने उसे मारा है।

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वहां से भैया जी के अतीत की परतें खुलती हैं और उनकी असलियत सामने आती है। साधारण सा दिखने वाला भैया जी कभी अपने इलाके का दबंग था। उसके कई किस्‍से मशहूर होते हैं। दो बाहुबली आमने-सामने आते हैं और शुरू होता है रंजिश का खेल।

संवादों में सिमटा भैया जी का भौकाल

फिल्‍म के टीजर में भैया जी का भौकाल दिखाया गया था, जिसमें उन्‍हें मारने की बात ह‍ो रही है, तभी भैया जी का पैर हिलता है और आंख खुलती है सब दूर भागते हैं। हालांकि, फिल्‍म में उनका भौकाल ज्‍यादातर संवादों में ही बताया गया है।

चंद्रभान भी अपनी बेटे के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न की शिकायत दर्ज कराने वाली लड़की और उसके वकील की हत्‍या खुद करता है। इस दृश्‍य संरचना के जरिए कोशिश तो उसकी क्रूरता, निर्ममता और दबंगई दिखाने की गई थी, लेकिन वह स्‍थापित नहीं हो पाता। फिल्‍म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी और पात्र हैं।

गले नहीं उतरा चंद्रभान का रुतबा

कहानी को नई दिल्‍ली और बिहार में सेट किया गया है। दिल्‍ली में चंद्रभान का यह रुतबा गले नहीं उतरता है। जब कहानी बिहार जाती है तो उसमें स्‍थानीय भाषा का पुट नहीं मिलता। फिल्‍म कब दिल्‍ली से बिहार आती जाती है, कुछ पता ही नहीं चलता। दोनों की रंजिश में कोई कौतूहल, जिज्ञासा या तनाव नहीं है।

आपसी मुठभेड़ में तलवार, चाकू, तमंचा से लेकर किस्‍म-किस्‍म की बंदूकों का प्रयोग भरपूर है। हिंदी फिल्‍मों का नायक कभी मोटी जंजीर, हथौड़ा या लोहे की भारी रॉड लेकर दिखता रहा है, वहीं मनोज बेलचा साथ दिखते हैं, जोकि कहीं से रोमांचक नहीं लगता।

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कमजोर लेखन से असरहीन हुए पात्र

फिल्‍म का भार मुख्‍य रूप से अकेले बंदे मनोज के कंधों पर है, लेकिन वह इसे ढो पाने में सक्षम नजर नहीं आते हैं। भले ही इस समय शाह रुख खान, सलमान खान जैसे कई पचास पार अभिनेता एक्‍शन कर रहे हैं, लेकिन मनोज की अपनी एक खास पहचान और शैली रही है, जो इसमें आड़े आती है।

उ्न्हें यहां पर एक्‍शन करने का काफी मौका मिलता है, लेकिन उसमें वह प्रभावी नहीं लगते। मिताली बनी जोया एक्‍शन में ठीक लगती हैं। उनके किरदार का वजन किस वजह से बढ़ा है, वह समझ से परे है। कोहरा वेब सीरीज से सुविंदर विक्की को हिंदी दर्शकों के बीच पहचान मिली थी।

यहां लेखन स्‍तर पर उनका पात्र कमजोर है तो वह भी उसे संभाल नहीं पाते हैं। मां की भूमिका में भागीरथी बाई जरूर जंची हैं। फिल्‍म में भोजपुरी गीत संगीत का इस्‍तेमाल हुआ है। वह कहानी की पृष्‍ठभूमि के अनुकूल है, लेकिन पात्रों में वह पुट नजर नहीं आता है।