कई स्टार किड्स की तरह ही डेविड धवन पोती और वरुण धवन की भतीजी अंजिनी धवन (Anjini Dhawan) की बॉलीवुड में एंट्री हो चुकी है। उनकी डेब्यू फिल्म बिन्नी एंड फैमिली सिनेमाघरों में लग चुकी है। अपने अंकल वरुण धवन की तरह ही पहली फैमिली ड्रामा फिल्म से अंजिनि दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही या नहीं यहां पर पढ़ें फिल्म का पूरा रिव्यू-
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कहा जाता है कि हर पीढ़ी अपने आप को पिछली पीढ़ी से ज्यादा बुद्धिमान और आने वाली पीढ़ी से ज्यादा बुद्धिमान होने की कल्पना करती है। इसी से गलतफहमी पैदा होती है। गलतफहमी से पैदा होती है दूरी।
दो पीढ़ी के बीच में जितना ज्यादा कम्युनिकेशन गैप (संवाद की कमी) होगा उतनी बड़ी दूरी होगी। महावीर जैन द्वारा निर्मित बिन्नी एंड फैमिली इसी विषय को दादा और पोती की कहानी के जरिए उठाती है।
क्या है 'बिन्नी एंड फैमिली' की कहानी?
शीर्षक के अनुरुप कहानी बाहरवीं की छात्रा बिन्नी (अंजिनि धवन) के इर्द गिर्द है। वह लंदन में अपने पिता विनय (राजेश कुमार) और मां राधिका (चारू शंकर) के साथ रहती है। बिहार में रहने वाले बिन्नी के रूढि़वादी बाबा एसएन सिंह (पंकज कपूर) और दादी शारदा (हिमानी शिवपुरी) दो महीने के लिए उनके साथ रहने को आते हैं। इस वजह से उसे अपनी कई आदतों और रहन-सहन में बदलाव करना होता है।
यह भी पढ़ें: एकता कपूर की 'बिन्नी एंड फैमिली' का पोस्टर रिलीज, वरुण धवन की भतीजी करेंगी डेब्यू, सेलेब्स ने दी बधाईबिन्नी अपने ही कॉलेज के लड़के ध्रुव को पसंद करती है, लेकिन उसका किसी और साथ अफेयर होता है। इसके बावजूद उसकी नजरों में आना चाहती है। उधर, बिहार लौटने के बाद अचानक शारदा की तबियत बिगड़ने पर विनय उन्हें लंदन आने को कहता है लेकिन बिन्नी नाराज हो जाती है। पत्नी और बेटी की नाराजगी को देखते हुए विनय उनका लंदन आना टाल देता है और खुद पटना चला जाता है। पर डाक्टर शारदा को बचा नहीं पाते हैं।
दादी के निधन से दुखी बिन्नी खुद को दोषी मानने लगती है। बाबा के दोबारा लंदन आने पर दोनों के रिश्ते में गर्माहट आती है।
आधुनिक सोच के बीच टकराव को बेहतरीन तरीके से दर्शाती है कहानी
बिन्नी एंड फैमिली के जरिए लेखक और निर्देशक संजय त्रिपाठी ने पारंपरिक और आधुनिक सोच के बीच टकराव को समुचित तरीके से दर्शाया है। मसलन बाबा-दादी अपनी आदत के मुताबिक पोते-पोतियों को पढ़ाई करने, रात में समय से घर आने जैसी कई नसीहत देने का ही काम करते हैं। बच्चे भी उसे सुनकर अनसुना कर देते हैं। उनके लाए तोहफों की कद्र नहीं करते। उनकी वापसी पर आजाद पंछी जैसा महसूस करते हैं।
उसे समुचित भावों और फैमिली ड्रामे के साथ दर्शाने में संजय सफल होते हैं। इस दौरान कई दृश्य भावुक भी कर जाते हैं। हालांकि विनय की अपने पिता के साथ दूरी संवादों में है! बेहतर होता कि उसे भी कहानी का अहम हिस्सा बनाते। ब्रिटिश स्कूल का परिवेश भी सहज नहीं लगता है।फिल्म का संवाद जिंदगी का एक्सपायरी डेट तो हो सकता है लेकिन जिंदगी जीने का कोई एक्सपायरी डेट नहीं होता है। जिंदगी फेसबुक की तरह होती है। कुछ चीजें हमें पसंद आती है। कुछ शिकायतें को आप अनफ्रेंड कर देते हैं...याद रह जाते हैं।
वरुण धवन की भतीजी का शानदार डेब्यू
गुजरे जमाने के अभिनेता अनिल धवन की पोती और अभिनेता वरूण धवन की भतीजी अंजिनी धवन की बतौर अभिनेत्री यह पहली फिल्म है। बिन्नी की भूमिका में वह आत्मविश्वास से लबरेज नजर आती हैं। बिन्नी के विद्रोही स्वभाव से लेकर बाबा की लाडली बनने को लेकर उनके व्यवहार में आए परिवर्तन को उन्होंने सहजता से जीया है। वह भविष्य में बेहतरीन अभिनेत्री बनने का माद्दा रखती हैं।
बाबा की भूमिका में पंकज कपूर सबसे सटीक कास्टिंग हैं। अंजिनी के साथ उनके कुछ दृश्य याद रह जाते हैं। पोती के प्रति लाड़ प्यार को हिमानी शिवपुरी सहजता से आत्मसात करती हैं। बिन्नी के बेस्ट फ्रेंड की भूमिका में नमन त्रिपाठी का अभिनय सराहनीय है। वह बीच-बीच में हास्य के पल लेकर आते हैं।टीवी की दुनिया से निकलने के बाद राजेश कुमार विविधि भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा को साबित कर रहे हैं। मां की भूमिका में चारू शंकर का काम अच्छा है। हालांकि उनके पात्र को थोड़ा विकसित करने की जरूरत थी। मोहित पुरी ने लंदन की खूबसूरती और पटना की सादगी के अंतर को अपने लेंस से बेहतर तरीके से दर्शाया है।
यह फिल्म पीढ़ियों के बीच सोच के अंतर के बावजूद संवाद के जरिए रिश्तों को मजबूत बनाने का अहम संदेश देती है। साथ ही अपने बाबा दादी के साथ वक्त बिताने की मार्मिक अपील भी करती है।
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