Bullet Train Review: बुलेट ट्रेन का जटिल और थकाऊ है ये सफर, हिंदी डब में वही घिसे पिटे डायलॉग्स
Bullet Train Review ब्रैड पिटजोई किंग स्टारर हॉलीवुड फिल्म बुलेट किंग का हिंदी डब सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया गया। जोकि बहुत ही जटिल और थकाऊ है। अगर आप ब्रैड पिट के फैन हैं और इस फिल्म को सिनेमाघर में देखने का मन बना रहे हैं तो पढ़ें पूरा रिव्यू।
By Tanya AroraEdited By: Updated: Thu, 04 Aug 2022 05:56 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्म की शुरुआत से स्पष्ट होता है कि इस बुलेट ट्रेन की सवारी में लगातार हिंसा, कॉमेडी के साथ एक्शन का मसाला होगा। डेडपूल 2, ‘फास्ट एंड फ्यूरियस प्रेजेंट्स: हॉब्स एंड शॉ’ जैसी हॉलीवुड फिल्मों के निर्देशक डेविड लिच आपको शुरुआत से ही इसके लिए तैयार कर देते हैं। यह फिल्म जापानी उपन्यासकार कोतारो इसाका द्वारा लिखित उपन्यास मारिया बीटल (Mariabeetle) पर आधारित है। अंग्रेजी मं इसका अनुवाद बुलेट ट्रेन के तौर पर हुआ है। उपन्यास पढ़ने वाले ही उसके सफर के बारे में बता सकते हैं, लेकिन स्क्रीन पर बुलेट ट्रेन के भीतर की गतिविधियों को देखकर उम्मीदें धूमिल होती हैं।
कहानी यूं है कि शांति की तलाश में निकले भाड़े के हत्यारे (ब्रैड पिट) को उसकी बॉस (सैंड्रा बुलक) कोडनेम लेडी बग देती है। लेडी बग को लगता है कि उसके काम बिगड़ने की वजह उसकी खराब किस्मत है। हालांकि उसकी याददाश्त बहुत तेज है। लेडी बॉस उसे बुलेट ट्रेन में नकदी से भरे सूटकेस लाने का काम सौंपती है जिस पर खास ट्रेन का लोगो लगा है। यह सूटकेस इस ट्रेन में जुड़वा भाई के तौर पर विख्यात लेमन (ब्रायन टायरी हेनरी) और टेंजरीन (एरन टेलर-जॉनसन) के पास है जिन्होंने माफिया डान व्हाइट डेथ (माइकल शेनन ) के अपहृत बेटे को मुक्त कराया है। सूटकेस में फिरौती की रकम भी है जिसे उन्हें देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इसी ट्रेन में प्रिंस (जोई किंग) भी सफर कर रही है, जो देखने में गुडि़या सी लगती है। उसने जापानी हत्यारे कीमूरा (एंड्रयू कोजी ) के मासूम बेटे को ट्रेन से धक्का दिया होता है। वह कीमूरा को ट्रेन में बुलाती है ताकि सूटकेस के लॉक को खोल सके। इसी ट्रेन में एक जहरीला सांप भी है। उसके जहर से तीस सेकेंड में इंसान का काम तमाम हो जाता है। अगर इंसान के खाने में मिल जाए तो आंखों से खून निकलने लगता है। यह अलग बात है कि ट्रेन में रेंगने के दौरान किसी को भी काटता नहीं है। बहरहाल, लेडी बग को सूटकेस मिल जाता है, उसे अगले स्टेशन पर उतरना होता है। लेडी बग कहता है कि काम जितना आसान दिख रहा है उतना है नहीं। होता भी वैसे ही है। वह अगले स्टेशन पर उतर नहीं पाता है। फिर ट्रेन के अंदर कई हत्याएं होती हैं। सभी हत्यारे पाते हैं कि उनका काम एकदूसरे से ही संबंधित है। इनकी आपसी दुश्मनी भी है।
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अमेरिका में रिलीज से एक दिन पहले ही फिल्म बुलेट ट्रेन आज (गुरुवार) को भारत के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। जैक ओल्केविक्ज द्वारा लिखित इस स्क्रीन प्ले में बुलेट ट्रेन की रफ्तार जैसा कोई रोमांच नहीं हैं। ट्रेन में प्रसंगवश कई हत्याएं होती हैं पर इन हत्याओं को देखकर कोई टीस नहीं होती है। फिल्म देखते हुए कई किरदारों की बैकस्टोरी दिखाई जाती है। यह कहानी का मजा बेमजा करती है। कई बार लगता है कि लाइव एक्शन कार्टून फिल्म देख रहे हैं। हिंदी में डब इस फिल्म को देखते हुए संवाद बेहद सतही और घिसेपीटे लगते हैं। दरअसल, हिंदी में डब फिल्मों में ह्यूमर के लिए बीडू, येड़ा जैसे शब्दों के प्रयोग काफी समय से हो रहा है। इन पर विराम देने की बेहद आवश्यकता है। उसके स्थान पर अन्य मनोरंजक शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। फिल्म में बीच-बीच में किरदारों के बीच की आपसी झड़प, उनके बीच टकरार को लेकर एक्शन है। उसे काफी रियल रखने की कोशिश हुई है। कलाकारों में ब्रैड पिट को कॉमेडी करने के लिए बीच-बीच में वनलाइनर मिले हैं। प्रिंस की भूमिका में गिरगिट की तरह रंग बदलने वाली जोई किंग प्रभावित करती हैं। बाकी कलाकारों ने स्क्रिप्ट के दायरे में अपने किरदार को निभाया है।
फिल्म रिव्यू: बुलेट ट्रेनप्रमुख कलाकार: ब्रैड पिट, जोई किंग, एरन टेलर-जॉनसन, ब्रायन टायरी हेनरी, एंड्रयू कोजी, सैंड्रा बुलक
निर्देशक: डेविड लीच
अवधि: दो घंटा नौ मिनट
स्टार: दो