Move to Jagran APP

Chalti Rahe Zindagi Review: इस जिंदगी में ना तड़प है ना दर्द, लेखन में डगमगाई कोरोना काल की कहानी

चलती रहे जिंदगी जी5 पर रिलीज हो गई है। फिल्म में सीमा बिस्वास इंद्रनील सेन गुप्ता सिद्धांत कपूर बरखा बिष्ट प्रमुख किरदारों में हैं। फिल्म की कहानी कोरोना काल में दिखाई गई है। मुंबई के एक अपार्टमेंट में परिवारों के बीच रिश्तों की कहानी दिखाई गई है। हालांकि फिल्म उस कालखंड को विश्वसनीयता के साथ पेश करने में सफल नहीं रहती।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 26 Jul 2024 05:39 PM (IST)
Hero Image
चलती रहे जिंदगी जी5 पर रिलीज हुई है। फोटो- इंस्टाग्राम

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। चार कहानियों वाली एंथोलॉजी फिल्म इंडिया लॉकडाउन, अनपॉज्‍ड- नया सफर, भीड़... कोरोना काल की कहानियों पर आधारित रहीं। उनमें महामारी के दौरान की मुश्किलों से लेकर इंसानी रिश्‍तों के बनने-बिगड़ने की कहानियां दिखाई गई थीं।

जी5 पर रिलीज हुई आरती एस बागदी निर्देशित फिल्‍म चलती रहे जिंदगी भी कोराना की आहट की खबरों के बाद लॉकडाउन लगने पर आधारित है। यह वह दौर था, जब मानवता की कुछ कहानियां उम्‍मीद जगाने वाली रहीं, वहीं कुछ रोंगटे खड़े करने वाली। ‘चलती रहे जिंदगी’ में जिंदगी बहुत आसानी से चलती दिख रही है। फिल्म वहीं पर डगमगा जाती है।

क्या है चली रहे जिंदगी की कहानी?

कहानी मुंबई की एक सोसाइटी में रहने वाले तीन अलग-अलग परिवारों की है। उस बिल्डिंग में कृष्‍णा भगत (सिद्धांत कपूर) घर पर ब्रेड और खाने-पीने का सामान बेचने आता है। आरू (बरखा बिष्‍ट सेनगुप्‍ता) के पति का उसी सोसाइटी में रहने आए अर्जुन (इंद्रनील सेनगुप्‍ता) की पत्‍नी बरखा के साथ लॉकडाउन के दौरान संबंध बनता है।

यह भी पढे़ं: Tribhuvan Mishra CA Topper Review: कहीं नहीं मिलेगा ऐसा 'सीए टॉपर', गोली और गाली के बीच राजा भैया ने भरी मिठास

आरू को पति की बेवफाई पता चलती है। फिर भी पुणे से लौटे अर्जुन को अपने घर में रहने की इजाजत देती है। इस बिल्डिंग में रहने वाला देश न्‍यूज टीवी चैनल का एंकर आकाश (रोहित खंडेलवाल) घर से अपना कार्यक्रम संचालित करता है। उसकी मां सुषमा (फ़्लोरा जैकब) ने कृष्‍णा को पचास हजार रुपये उधार दे रखे होते हैं।

लॉकडाउन के दौरान आकाश मां पर उन पैसों को कृष्‍णा से वापस लेने के लिए दबाव बनाता है। इस बीच काम कम होने और कर्ज से परेशान कृष्‍णा सपरिवार अपने गांव जाने का फैसला करता है, ताकि जमीन बेचकर पैसों का इंतजाम कर सके। उस सफर में रेल की पटरी पर सोने के दौरान कृष्‍णा समेत 12 लोगों की मौत हो जाती है।

वहीं, नैना (मंजरी फडनीस) अपनी सास लीला (सीमा बिस्‍वास ) और बेटी सिया (अनाया) साथ रहती है। 70 साल की सास को किसी दूसरे से बीमारी लगने का डर हरदम सताता रहता है।

नैना ऑनलाइन डांस क्‍लास लेती है, लेकिन धीरे धीरे सभी छात्राएं उसे बंद कर देती हैं। जब दुनिया थम जाती है तो सभी कैसे अपने रिश्‍तों को पुर्नमूल्‍यांकन करते हैं? दूसरों के दर्द को कैसे समझते हैं? कहानी उस संबंध में हैं।

कहां चलती रही, कहां ठिठकी फिल्म?

फिल्‍म की शुरुआत में ही बताया गया है कि इसे महामारी के दौरान जटिल परिस्थितियों में शूट किया गया। यही वजह है कि फिल्‍म के कई दृश्‍यों में दोहराव भी है। शुरुआत में गौरव और बरखा के चेहरे को नहीं दिखाया गया है। वह अटपटा लगता है।

संवादों में पात्रों के जीवन में तनाव बताया गया है, लेकिन कहानी देखते हुए कहीं महसूस नहीं होता। सिद्धांत का पात्र ज्‍यादातर बिना मास्‍क पहने ही दिखता है। बिल्डिंग में उसे कोई कुछ नहीं कहता। सब बेफिक्र होकर सामान ले रहे हैं, जैसे उन्‍हें कोरोना का कोई डर नहीं है।

बस घर की चाहरदीवारी में ही उसकी बातें हो रही हैं। यह हजम नहीं होता। फिल्‍म गौरव और बरखा की बेवफाई के कारणों में भी नहीं जाती। पति की बेवफाई से आरू आहत दिखती है, लेकिन अर्जुन पर खास प्रभाव नहीं दिखता। इस कहानी का लॉकडाउन से कोई जुड़ाव समझ नहीं आता।

यह भी पढ़ें: 36 Days Review: चौंकाते हैं क्लाइमैक्स के ट्विस्ट एंड टर्न्स, नेहा शर्मा स्टारर सीरीज में चमकीं शरनाज पटेल

यह रिश्‍ते तो महामारी नहीं होती तो भी संभव हो सकते थे। इसी तरह रेल की पटरी पर सोते कृष्‍णा की दर्दनाक मौत देखकर आपके रोंगटे खड़े नहीं होते। भावनाओं का ज्‍वार नहीं उमड़ता। वर्षा खड़ीदाहा, आरती एस बागदी, शाकिर खान और अरुण भुत्रा की लिखी कहानी में कसावट का अभाव है। कहानी कहीं से भी आपके दिल को छूती नहीं है।

इंद्रनील सेनगुप्‍ता और बरखा सेनगुप्‍ता मंझे कलाकार है, लेकिन उनके पात्र लेखन स्‍तर पर कमजोर है। उनका अभिनय भी उसे साध पाने में नाकाम रहता है। टीवी एंकर के तौर रोहित खंडेलवाल अपनी भूमिका साथ न्‍याय करते हैं।

आकाश की मां बनीं फ्लोरा जैकब का बिल्डिंग की सारी औरतों की खबर रखने का किरदार दिलचस्‍प है। हालांकि उनकी पारिवारिक कहानी अधूरी लगती है। डांसर की भूमिका में मंजरी फडणीस अच्‍छी लगी हैं।

फिल्‍म का आकर्षण सीमा बिस्‍वास हैं। उनकी तुनकमिजाजी और पोती से अनबन वास्‍तविक लगती है। शायरी के साथ ब्रेड बेचने के पात्र में सिद्धांत कपूर का अभिनय सराहनीय है। उनकी पत्‍नी बनीं त्रिमाला अधिकारी का काम उल्‍लेखनीय है। फिल्‍म का गीत-संगीत साधारण है।