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Chandu Champion Review: 'चंदू' के जुनून को जीने में कार्तिक ने लगा दी जान, यहां छिपा है 'विजय' का असली 'राज'

चंदू चैम्पियन शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इसका निर्देशन कबीर खान ने किया है। चंदू चैम्पियन पैरालम्पिक में पदक जीतने वाले मुरलीकांत पेटकर के जज्बे और जुनून की कहानी है जिसमें कार्तिक आर्यन ने शीर्षक भूमिका निभाई है। रोमांटिक फिल्मों के बाद एक्शन में हाथ आजमाने वाले कार्तिक की यह पहली बायोपिक फिल्म है। कार्तिक उम्मीदों पर कितना खरा उतरे जानने के लिए पढ़ें रिव्यू।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 14 Jun 2024 01:04 PM (IST)
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चंदू चैम्पियन सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। सफलता के पीछे तमाम संघर्ष होते हैं। इन संघर्षों में तपा इंसान ही हीरा बनकर सामने आता है। हेलसिंकी में साल 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में स्वतंत्र भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले एथलीट खाशाबा दादासाहेब जाधव के अपने गांव लौटने पर जुटी भीड़ और उनके प्रति लोगों में आदर-सम्‍मान देखकर बचपन में ही मुरलीकांत राजाराम पेटकर इतना प्रभावित हुए कि उन्‍होंने ओलम्पिक में पदक जीतने का निर्णय कर लिया था।

हालांकि, जीवन ने ऐसा मोड़ लिया कि उनका सपना साल 1972 में पैरालम्पिक में तैराकी में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय के तौर पर साकार हुआ। उनकी जिंदगी पर कबीर खान ने ही फिल्‍म चंदू चैंपियन बनाई है। यह अपनी क्षमता को पहचानने, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने और अपने सपने पर अड़े रहने की सच्‍ची कहानी है।

बचपन की जिद बनी जीत का जुनून

फिल्‍म साल 2017 में महाराष्‍ट्र के सांगली में पुलिस स्‍टेशन से आरंभ होती है। मुरलीकांत पेटकर भारत के राष्‍ट्रपति पर धोखाधड़ी के लिए मुकदमा करने की बात कहते हैं। वह सरकार से अर्जुन पुरस्‍कार चाहते हैं, ताकि उनके गांव को सड़क, बिजली और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल सकें।

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वहां से कहानी उनके बचपन में जिद्दी मुरलीकांत से परिचय करवाती है। उनके सपने का पता चलता है। वह ओलम्पिक में पद जीतना चाहता है। उसके इस सपने पर सहपाठी और गांव के लोग हंसते हैं। उसे चंदू चैंपियन कह कर बुलाते थे। यह शब्‍द उसे कचोटता है।

बड़े भाई के कहने पर मुरलीकांत अखाड़े के साथ जुड़ जाता है। वहां पहलवानों को देखकर दांवपेंच सीखने की कोशिश करता है। युवावस्‍था में जीवन में ऐसा मोड़ आता है कि उसे अपने गांव से भागना पड़ता है। गांव से गुजरती ट्रेन में वह करनैल की मदद से ट्रेन में चढ़ जाता है। यहां से उसके जीवन का नया अध्‍याय आरंभ होता है।

दारा सिंह को माना अपना उस्ताद

रुस्‍तम ए हिंद दारा सिंह को अपना उस्‍ताद मानने वाला मुरलीकांत फौज में भर्ती हो जाता है। वहां से बॉक्सिंग सीखने, टोक्‍यो में खेलों में हिस्‍सा लेने, सफलता के बाद मीडिया की चकाचौंध में वह सपने के करीब पहुंचता है, लेकिन जीत नहीं पाता है। इस सफर में पदक जीतने को लेकर आंखों में जुनून और जज्‍बे को देखकर कोच टाइगर (विजय राज) उसे प्रशिक्षित करता है।

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साल 1965 में पड़ोसी मुल्‍क के कायाराना हमले में मुरलीकांत को नौ गोली लगती हैं। वहां से पेटकर की जिंदगी का रुख बदलता है। निराशा और हताशा में जी रहे मुरलीकांत की जिंदगी में टाइगर उम्‍मीद बनकर आता है। वह उसे स्‍वीमिंग में पैरालम्पिक में हिस्‍सा लेने को प्रेरित करते हैं।

देश के लिए पदक जीतने की ललक में मुरलीकांत जीजान से जुटता है। हालांकि, पैरालम्पिक में भेजने को लेकर सरकार का ढुलमुल रवैया, म्‍यूनिख में साल 1972 में ओलम्पिक आयोजन पर हुआ आतंकी हमला और फिर मुरलीकांत की जीत के सफर पर फिल्‍म ले जाती है।

कार्तिक दमदार, सहयोगी कलाकार असरदार

साल 1983 में भारतीय किक्रेट टीम के वि‍श्‍व विजेता बनने पर फिल्‍म 83 बनाने के बाद कबीर खान ने इस बार बायोपिक फिल्‍म चुनी है। मुरलीकांत की कहानी प्रेरणादायक है। जीवन में आई तमाम दुश्‍वारियों के बावजूद उन्‍होंने हिम्‍म्‍त नहीं हारी। पदक जीते की लालसा ने ही उन्‍हें जीवन में फिर उठ खड़े होने की शक्ति दी।

उस जज्‍बे को वह फिल्‍म में शुरू से अंत तक कायम रखते हैं। बचपन में पहलवानी, फौज में आने के बाद बॉक्सिंग और फिर स्‍वीमिंग को लेकर मुरलीकांत के समर्पण, जुनून और उत्‍साह को पूरे मनोयोग से कार्तिक आर्यन ने जीया है। उनकी मेहनत पर्दे पर साफ झलकती है।

हालांकि, इन खेलों पर हिंदी में दंगल, मैरी कॉम, सुल्‍तान जैसी सफल फिल्‍में आ चुकी हैं। उनमें खेल को बारीकी से दिखाया गया है। यहां पर पहलवानों के बीच कुश्‍ती और रिंग में बॉक्सिंग के कई दृश्‍य हैं, लेकिन रोमांच नहीं है।

मुरलीकांत पेटकर का परिवेश मराठी है, लेकिन कार्तिक उस उच्‍चारण को पकड़ नहीं पाते, जबकि सहयोगी भूमिकाओं में आए कई कलाकार मराठी भाषी उस कमी को पूरा करते हैं। फिल्‍म में सिनेमाई लिबर्टी भी काफी ली गई है।

मसलन, कार्तिक को बॉक्सिंग में कोच करने वाले टाइगर ही उन्‍हें स्‍वीमिंग के लिए प्रशिक्षित करते हैं। इसी तरह 1965 की जंग का दृश्‍य भी विश्‍वसनीय नहीं बन पाया है, जबकि यह उनकी जिंदगी का रुख पलट देता है। यह दृश्‍य भावनाओं को जगा पाने में नाकाम रहता है।

यशपाल शर्मा, विजय राज और राजपाल यादव जैसे मंझे कलाकारों की मौजूदगी फिल्‍म को बांधकर रखने में मददगार रही है। करनैल की भूमिका में भुवन अरोड़ा का काम सराहनीय है। टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने से लेकर मुरलीकांत का हौसला बढ़ाने को लेकर उन्‍हें अच्‍छे संवाद और दृश्‍य मिले हैं। मुरलीकांत के बचपन के किरदार में बाल कलाकार अयान खान प्रभावित करते हैं।

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प्रेरक हैं फिल्म के संवाद

फिल्‍म के कुछ संवाद भी प्रेरक है। मसलन, 'तुझे गांव से नहीं भगाया गया, तेरे सपने की ओर दौड़ाया है।' बैकग्राउंड में चलने वाला गीत 'फलक सितारे तोड़' कर्णप्रिय है। 'मौज करे पड़ोसी' गाना फिल्‍म मिल्खा सिंह के गाने 'हवन करेंगे' की याद ताजा करता है। यह ठूसा गया लगता है।

क्‍लाइमेक्‍स में जब मुरली अपने लक्ष्‍य की ओर बढ़ रहा होता है, उस समय रिवर्स में दिखाई गई उसकी जिंदगी का शॉट बेहतरीन है। फिल्म की अवधि 2 घंटा 23 मिनट है।