चार्ली चोपड़ा का हर एक फ्रेम बताता है कि यह विशाल भारद्वाज की सीरीज है। दृश्यों के संयोजन से लेकर कलाकारों के अभिनय का अंदाज देख विशाल के होने की गवाही देते हैं।किसी विदेशी भाषा की कहानी को अपने समाज और परिवेश में ढालना आसान नहीं होता, क्योंकि जरा बहकते ही फिसलने का जोखिम रहता है, मगर विशाल ने इसे पटरी से उतरने नहीं दिया है और एक दिलचस्प सीरीज पेश की है, जिसके पैने किरदार खास तौर पर प्रभावित करते हैं।
यह
मर्डर मिस्ट्री है, इसलिए सभी किरदारों में कोई ना कोई खोट है, जिसकी वजह से वो शक के दायरे में रहते हैं और कहानी के पेंचों को उलझाने का काम करते हैं। यह भी पढ़ें:
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क्या है चार्ली चोपड़ा की कहानी?
पहाड़ी इलाके सोलांग में एक बर्फीली रात ब्रिगेडियर मेहरबान रावत का कत्ल हो जाता है। मौका-ए-वारदात पर होटल की चाबी मिलने की वजह से कत्ल का इल्जाम ब्रिगेडियर के भांजे जिम्मी नौटियाल पर लगता है। पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। जिम्मी की गर्लफ्रेंड चार्ली चोपड़ा असली कातिल को पकड़कर जिम्मी को छुड़ाना चाहती है। उसकी तफ्तीश के बीच कुछ और कत्ल होते हैं।
कुछ और संदिग्ध सीन में आते हैं। स्थानीय चैनल का टीवी रिपोर्टर इस हाइ प्रोफाइल केस को फॉलो कर रहा है। उसकी वजह से चार्ली की मुश्किलें घटती-बढ़ती रहती हैं। उसे लगता है कि कातिल परिवार में से ही कोई है। एक-एक करके वो सभी की पड़ताल करती है और इस क्रम में उनके कुछ चौंकाने वाले रहस्य सामने आते हैं, जो कत्ल का मकसद यानी मोटिव बन सकते हैं।
कैसा है सीरीज का स्क्रीनप्ले और अभिनय?
चार्ली चोपड़ा- द मिस्ट्री ऑफ सोलांग वैली की कहानी अगाथा के नॉवल द सिटाफोर्ड मिस्ट्री का अडेप्टेशन है। यह नॉवल 1931 में आया था। विशाल ने 90 साल से ज्यादा पुरानी कहानी को आज के दौर में दिखाया है। इसे स्क्रीनप्ले में ढालने में विशाल का साथ ज्योत्सना हरिहरन और अंजुम राजाबली ने दिया है।
पहले एपिसोड की शुरुआत डॉ. राय बने
नसीरुद्दीन शाह के एक्ट से होती है, जो एक तांत्रिक है। वो एक क्रिया के बाद घोषणा करता है कि ब्रिगेडियर रावत मर गये हैं। इसके बाद चार्ली की एंट्री होती है और कहानी आगे बढ़ने के साथ एक-एक करके किरदार जुड़ते जाते हैं। पहाड़ी लोकेशन और बर्फवारी इस कहानी में किरदार की तरह है, जो ट्विस्ट्स और टर्न्स में मदद करती हैं। सीरीज की शुरुआत थोड़ा अजीब लग सकती है, मगर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, आंखें दृश्यों और किरदारों के लिए अभ्यस्त होने लगती हैं। खासकर वामिका की अदाकारी पकड़कर रखती है। हर एपिसोड में एक नया ट्विस्ट इंतजार करता है और नये किरदार को संदेह के घेरे में लेकर आता है।
मां की जासूसी विरासत को आगे बढ़ा रही चार्ली चोपड़ा के किरदार में
वामिका गब्बी पूरी सीरीज में छायी रही हैं। उनका किरदार दृश्य में मौजूद दूसरे किरदारों से बात करने के साथ कैमरे के जरिए सीधे दर्शक से भी संवाद स्थापित करता है।यह उनकी टिप्पणी होती है, जिसे वो दर्शक के साथ साझा करती हैं। इस तरह के प्रयोग फिल्मों में देखे जाते रहे हैं, जब कोई किरदार किसी परिस्थिति विशेष को लेकर दर्शक से संवाद करता है।
टीवी रिपोर्टर सीताराम बिष्ट के किरदार में
प्रियांशु पेन्युली, जानकी के किरदार में
नीना गुप्ता, विलायत हुसैन के रोल में
लारा दत्ता, मिसेज भरुचा के रोल में
रत्ना पाठक शाह, संघर्षरत फिल्म राइटर मानस डबराल के किरदार में
चंदन रॉय सान्याल, बिल्लू के रोल में
इमाद शाह और कत्ल के संदिग्ध
जिम्मी के रोल में विवान शाह जमे हैं।
डॉ. राय के किरदार में नसीरुद्दीन शाह की मौजूदगी किसी बुजुर्ग की तरह है, जिसके अभिनय की छत्रछाया सभी को शीतलता दे रही है। ब्रिगेडियर रावत के रोल में
गुलशन ग्रोवर ने किरदार को एक ठसक दी है। इस किरदार के कत्ल से कहानी शुरू होती है, इसलिए फ्लैशबैक्स में वो आते-जाते रहते हैं। निर्देशन के साथ
विशाल भारद्वाज ने संगीत की जिम्मेदारी बखूबी सम्भाली है और 'चार्ली चोपड़ा' का टाइटल म्यूजिक दिलचस्प है। लिरिक्स के तौर पर चार्ली के पटियाला वाले घर का पता इस्तेमाल किया गया है।
चार्ली चोपड़ा- द मिस्ट्री ऑफ सोलांग वैली धीरे-धीरे अपना रंग जमाती है और फिर जाने नहीं देती।
अवधि: 6 एपिसोड्स (लगभग 40 मिनट प्रति एपिसोड )यह भी पढ़ें:
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