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Commando Web Series Review: ओटीटी स्पेस की 'गदर' नहीं बन सकी 'कमांडो', कमजोर कहानी ने फीका किया एक्शन का असर

Commando Web Series Review बॉलीवुड में कमांडो का पर्यायवाची विद्युत जामवाल हैं। इस फ्रेंचाइजी के क्रिएटर विपुल अमृतलाल शाह हैं जिन्होंने कमांडो वेब सीरीज बनायी है। इस सीरीज का नायक विराट है जिसे डेब्यूटेंट प्रेम ने निभाया है। प्रेम ने एक्शन पर मेहनत की है। उनकी पंचिंग-किकिंग प्रभावित करती है। अदा शर्मा ने भी सीरीज में अपने पार्ट को ठीक से निभाया है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Sun, 13 Aug 2023 05:36 PM (IST)
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कमांडो डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो गयी है। फोटो- इंस्टाग्राम

नई दिल्ली, जेएनएन। गदर 2 इस वक्त सिनेमाघरों में धूम मचा रही है। पाकिस्तान में घुसकर अपने बेटे को वापस लाने की कहानी में डायलॉगबाजी, एक्शन और हीरो के एग्रेशन को खूब भुनाया गया है। गदर की तरह गदर 2 एक एक्सट्रैक्शन स्टोरी है। 

डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर भी वेब सीरीज की सूरत में एक एक्सट्रैक्शन स्टोरी आयी है। नाम है- कमांडो, जिसमें पाकिस्तान की हाइ सिक्योरिटी जेल में बंद एक कमांडो को छुड़ाकर लाने के मिशन की कहानी दखायी गयी है। सफल एक्शन सीरीज के सारे तत्व होने के बावजूद वेब सीरीज कमजोर रही और असर नहीं छोड़ती।

क्या है सीरीज की कहानी?

पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी आइएसआइ ने एक बेहद खतरनाक बायो वेपन बनाया है, जो एक वायरस है। यह वायरस चंद मिनटों में मौत के घाट उतार सकता है। अब इस वायरस की डिलीवरी कश्मीर के रास्ते हिंदुस्तान भेजनी है, ताकि भारी तादाद में तबाही मचायी जा सके, वो भी बिना की धमाके या खून खराबे के।

लैब में मौजूद भारतीय जासूस कमांडो क्षितिज (वैभव तत्ववादी) इस प्लान की जानकारी रॉ को भेजता है, जिसके आधार पर कमांडो विराट (प्रेम) इस कनसाइन्मेंट को रास्ते में ही खत्म कर देता है। इस बायो वेपन के मास्टरमाइंड कर्नल जाफर (अमित सियाल) को शक हो जाता है कि उनके बीच हिंदुस्तानी जासूस है। क्षितिज पकड़ा जाता है।

मगर, इससे पहले क्षितिज वायरस तक पहुंचने वाली फाइल को एक पेनड्राइव में छिपाकर एक अन्य लैबकर्मी की जेब में डाल देता है। जब कर्नल जाफर का पता चलता है कि पेनड्राइव के बिना उसका मिशन पूरा नहीं हो पाएगा तो वो क्षितिज को जमकर टॉर्चर करवाता है। क्षतिज टूटता नहीं है। साथ ही, पकड़े गये जासूस को हिंदुस्तानी आतंकवादी घोषित करके वो भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने की योजना बनाता है।

डिप्लोमैटिक चैनल के रास्ते बंद होने के बाद कमांडो विराट रॉ चीफ (तिग्मांशु धूलिया) को पाकिस्तान में कॉवर्ट ऑपरेशन के लिए राजी कर लेता है, ताकि क्षितिज को पाकिस्तान की सबसे सुरक्षित साहिवाल जेल से बाहर निकाला जा सके। विराट इस मुश्किल मिशन को कैसे अंजाम देगा। सीरीज की कहानी का मेन प्लॉट यही है।

कैसा है स्क्रीनप्ले, अभिनय और संवाद?

लगभग आधे घंटे के चार एपिसोड्स में फैली कमांडो वेब सीरीज एक्शन की हर सम्भावना को भुनाते हुए आगे बढ़ती है, इस वजह से यह बोर तो नहीं करती, मगर लेखन के स्तर पर कमजोर होने की वजह से असर भी नहीं छोड़ती।

सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट कहानी है, जिसमें कोई नयापन नहीं है। जो दिखायी गयी है, उसमें भी कई झोल हैं। एक-दो जगह सिर्फ संवादों के जरिए टेम्पो बनाने की कोशिश की गयी है।

देश में पीएनडीटी एक्ट के तहत भ्रूण के लिंग की पहचान उजागर करने पर पाबंदी है, मगर क्षितिज की पत्नी जब आने वाले बच्चे को बेटी कहकर सम्बोधित करती है तो खटकता है। हालांकि, अगली कुछ लाइंस में यह भूल सुधार कर लिया गया है और बेटी की जगह बच्चा बोला गया है।

सीरीज का नायक विराट पाकिस्तानी जेल में सुरक्षा स्टाफ की फर्जी आइडेंटिटी और कागजातों की मदद से घुस जाता है। अपने टिफिन में वो एक इंजेक्शन भी ले जाता है, जो बुरी तरह जख्मी क्षितिज को लगाना है, जिससे उसमें ताकत आये। यह दृश्य हास्यास्पद लगता है।

एक तरफ साहिवाल जेल को दुनिया की सबसे मुश्किल और सुरक्षित जेलों में दिखाया गया है, जहां से आज तक कोई कैदी फरार नहीं हो सका। दूसरी तरफ, नायक आराम से अपने खाने के डब्बे में इंजेक्शन ले जाता है, पकड़ा नहीं जाता।

जेल में यह कैसी कड़ी सुरक्षा है कि नये स्टाफ के सामान की तलाशी तक नहीं होती। अगर तलाशी हुई भी तो खाने के डब्बे में इंजेक्शन क्यों नहीं पकड़ा जा सका। पाकिस्तान में रॉ का एसेट अब्बास (मुकेश छाबड़ा) इस मिशन में दो अन्य स्थानीय सहगियों के साथ विराट की मदद कर रहा है।

अब्बास पहले क्षितिज के साथ काम कर रहा था। क्षितिज के एक्सट्रैक्शन के दृश्यों में दिखाया गया है कि अब्बास की वैन में एक पाकिस्तानी सिपाही बेहोशी की हालत में पड़ा है, मगर उसके हाथ-पैर ही नहीं बांधे हैं।

होश आने पर पाकिस्तानी सिपाही अब्बास पर हमला भी करता है। इतने इम्पोर्टेंट मिशन में, जहां पग-पग पर जान का खतरा हो, इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो सकती है। इस क्रॉस बॉर्डर स्पाइ स्टोरीज में ऐसी खामियां बहुत खलती हैं और पूरे नैरेशन को कमजोर साबित बनाती हैं।

यह लेखन के साथ निर्देशकीय पक्ष की कमजोरी भी जाहिर करता है। पूरी सीरीज का असली रोमांच आखिरी एपिसोड ही है, जिसमें क्लाइमैक्स का एक ट्विस्ट चौंकाता है। यह अगले सीजन की कहानी का रोमांच बढ़ाएगा। इसका संबंध विराट की निजी जिंदगी से है।

भारतीय सिनेमा में कमांडो नाम वैसे तो एक्शन हीरो विद्युत जामवाल का पर्यायवाची है, मगर फिल्म सीरीज बनाने वाले निर्माता-निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह की इस वेब सीरीज में 'कमांडो' प्रेम परीजा हैं, जिन्होंने इस एक्शन सीरीज के साथ अभिनय की पारी शुरू की है।

प्रेम ने कमांडो विराट के एक्शन दृश्यों में अपनी चुस्ती-फुर्ती से प्रभावित किया है। एक्शन के अनुरूप चेहरे पर भाव बदलने में भी वो कामयाब रहे हैं। एक्शन सीक्वेंसेज की कोरियोग्राफी अच्छी है, मगर जूनियर कलाकारों की शिथिलता साफ झलकती है, जिससे प्रतिक्रिया विलम्बित होती है।

साथ में अदा शर्मा हैं, जो कमांडो फ्रेंचाइजी की दो फिल्मों 'कमांडो 2' और 'कमांडो 3' में भावना रेड्डी नाम की सीनियर इंस्पेक्टर का किरदार निभाती रही हैं। कमांडो वेब सीरीज में अदा अपने उसी किरदार के साथ लौटी हैं। अपने इंट्रोडक्टरी सीन में वो हैदराबादी एक्सेंट में कहती भी हैं, हर बार कमांडो को बचाने की जिम्मेदारी मुझे ही दी जाती है।

द केरल शर्मा की जबरदस्त कामयाबी से खबरों में बनी अदा शर्मा ने एक्शन में पुरुष कलाकारों का भरपूर साथ दिया है। साहिवाल जेल के जेलर फहीम के साथ उनके एक्शन दृश्य में कमरे के सामान का इस्तेमाल दिलचस्प है।

अमित सियाल अच्छे एक्टर हैं, मगर आइएसआइ के अफसर कर्नल जाफर के किरदार में वो असर नहीं छोड़ते। इस किरदार के अंदर कारगिल युद्ध में शिकस्त और अपमान की छटपटाहट है, जो हिंदुस्तान के लिए उसकी नफरत की सबसे बड़ी वजह है। अमित के अभिनय में वो छटपटाहट दिखती है, मगर आइएसआइ अधिकारी का शातिरपन नजर नहीं आता। कुछ यही हाल रॉ चीफ बने तिग्मांशु धूलिया का भी है।

सीरीज के तकनीकी पक्ष की बात करें तो साज-सज्जा विभाग ने रॉ ऑफिस, पाकिस्तानी लैब, साहिवाल की गलियां और जेल के दृश्यों को गढ़ने में मेहनत दिखायी है। कहानी के अनुरूप वातावरण क्रिएट करने की कोशिश लगभग सफल रही है। बैकग्राउंड स्कोर ठीकठाक है।